प्रश्न: “तबकात-ए-नासिरी” की विषयवस्तु का मध्यकालीन इतिहास के स्त्रोत के रूप में मूल्यांकन कीजिए ?

प्रश्न: “तबकात-ए-नासिरी” की विषयवस्तु का मध्यकालीन इतिहास के स्त्रोत के रूप में मूल्यांकन कीजिए ?

उत्तर की रूप रेखा:

1-'मिनहाजुद्दीन सिराज” का व्यक्तित्व

2- मुहम्मद गोरी की भारत विजय

3- सिराज की नजर से दिल्ली सल्तनत

4- गुलाम वंश के शासक नसीरुद्दीन महमूद की सादगी

 'मिनहाजुद्दीन सिराज ने, जो सुल्तान नसिरुद्दीन महमूद के शासनकाल में मुख्य क़ाज़ी के पद पर था, अपना ग्रन्थ 'ताबकात-ए-नासिरी' उसे समर्पित किया। तबकात-ए-नासिरी पुस्तक 'मिनहाजुद्दीन सिराज” (मिनिहाजुद्दीन अबू-उमर-बिन सिराजुद्दीन अल जुजियानी) द्वारा रचित है।

  • इस पुस्तक मेंमुहम्मद गोरी की भारत विजय तथा तुर्की सल्तनत के आरम्भिक इतिहास की लगभग 1260 ई. तक की जानकारी मिलती है।
  • मिनहाज ने अपनी इस कृति कोगुलाम वंश के शासक  नसीरुद्दीन महमूद को समर्पित किया था।

                                                                 “तबकात-ए-नासिरी” की विषयवस्तु

मुहम्मद गोरी की 

भारत विजय

सिराज के अनुसार शहाबउद्दीन मुहम्मद ग़ोरी 12वीं शताब्दी का अफ़ग़ान योद्धा था, जो ग़ज़नी साम्राज्य के अधीन ग़ोर नामक राज्य का शासक था। मुहम्मद ग़ौरी 1173 ई. में ग़ोर का शासक बना था। जिस समय मथुरा मंडल के उत्तर-पश्चिम में पृथ्वीराज और दक्षिण-पूर्व में जयचंद्र जैसे महान् नरेशों के शक्तिशाली राज्य थे, उस समय भारत के पश्चिम उत्तर के सीमांत पर शहाब-उद-दीन मुहम्मद ग़ोरी (1173-1206 ई.) नामक एक मुसलमान सरदार ने महमूद ग़ज़नवी के वंशजों से राज्याधिकार छीन कर एक नये इस्लामी राज्य की स्थापना की।

 मुहम्मद ग़ोरी महान विजेता और कुशल सैन्य संचालक था। 1175 ई. में उसने मुल्तान और अगले ही वर्ष उच्च पर विजय प्राप्त कर ली। 1178 ई. में गुजरात के चालुक्य शासक भीमदेव द्वितीय द्वारा वह खदेड़ दिया गया। राजपूत वीरों की प्रबल मार से वह पराजित हो गया। इस प्रकार भारत के हिंदू राजाओं की ओर मुँह उठाते ही उसे आंरभ में ही चोट खानी पड़ी। किंतु वह महत्त्वाकांक्षी मुस्लिम आक्रांता उस पराजय से हतोत्साहित नहीं हुआ। उसने अपने अभियान का मार्ग बदल दिया। वह तब पंजाब होकर भारत विजय का आयोजन करने लगा। उस काल में पेशावर और पंजाब होकर वह भारत विजय का अपना सपना साकार करने में लग गया।  उसने 1186 ई. में ख़ुसरो मलिक को पराजित करके पंजाब पर अधिकार कर लिया। उसने पंजाब के अधिकांश भाग को ग़ज़नवी के वंशजों से छीन लिया और वहाँ पर अपनी सृदृढ़ क़िलेबंदी कर भारत के हिन्दू राजाओं पर आक्रमण करने की तैयारी करने लगा।

मुहम्मद ग़ोरी के राज्य की सीमा तब दिल्ली के चाहमान वीर पृथ्वीराज चौहन के राज्य से जा लगी थीं; अतः आगे बढ़ने के लिए उसे एक पराक्रमी शत्रु से मोर्चा लेना था। उससे पहले महमूद के वंशज ग़ज़नवी शासकों से हिन्दू राजाओं के भी कई संघर्ष हुए थे; किंतु वे छोटी-मोटी स्थानीय लड़ाइयाँ थीं और उनमें प्रायः हिन्दू राजाओं की ही विजय हुई थी। मुहम्मद ग़ोरी ने पृथ्वीराज के विरुद्ध जो अभियान किया, वह एक प्रबल आक्रमण था। इसलिए महमूद ग़ज़नवी के बाद मुहम्मद ग़ोरी ही भारत पर चढ़ाई करने वाला दूसरा मुस्लिम आक्रांता माना गया है।

 

सिराज की नजर से दिल्ली सल्तनत

ग़ुलाम वंश दिल्ली में कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा 1206 ई. में स्थापित किया गया था। यह वंश 1290 ई. तक शासन करता रहा। इसका नाम ग़ुलाम वंश इस कारण पड़ा कि इसका संस्थापक और उसके इल्तुतमिश और बलबन जैसे महान् उत्तराधिकारी प्रारम्भ में ग़ुलाम अथवा दास थे और बाद में वे दिल्ली का सिंहासन प्राप्त करने में समर्थ हुए। कुतुबद्दीन (1206-10 ई.) मूलत: शहाबुद्दीन मोहम्मद गौरी का तुर्क दास था और 1192 ई. के 'तराइन के युद्ध' में विजय प्राप्त करने में उसने अपने स्वामी की विशेष सहायता की। उसने अपने स्वामी की ओर से दिल्ली पर अधिकार कर लिया और मुसलमानों की सल्तनत पश्चिम में गुजरात तथा पूर्व में बिहार और बंगाल तक, 1206 ई. में ग़ोरी की मृत्यु के पूर्व में ही, विस्तृत कर दी।

गुलाम वंश के शासक नसीरुद्दीन महमूद की सादगी

नसिरुद्दीन महमूद (1246-1266 ई.) इल्तुतमिश का कनिष्ठ पुत्र तथा ग़ुलाम वंश सुल्तान था। यह 10 जून 1246 ई. को सिंहासन पर बैठा। उसके सिंहासन पर बैठने के बाद अमीर सरदारों एवं सुल्तान के बीच शक्ति के लिए चल रहा संघर्ष पूर्णत: समाप्त हो गया। नसिरुद्दीन विद्या प्रेमी और बहुत ही शांत स्वभाव का व्यक्ति था। शासन का सम्पूर्ण भार 'उलूग ख़ाँ' अथवा ग़यासुद्दीन बलबन पर छोड़कर वह सादा जीवन व्यतीत करता था। बलबन की पुत्री का विवाह नसिरुद्दीन के साथ हुआ था।

 

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