शवासन लाश की मुद्रा के रूप में भी जानी जाती है। यह पूरी तरह से चेतनात्मक मुद्रा है जिसका उद्देश्य खुद को जागृत करना है पर शिथिलता के साथ। संस्कृत शब्द ‘शव’ का अर्थ है ‘लाश’। यह मुद्रा एक नींद की मुद्रा की तरह दिखती है लेकिन इसमें शरीर के हर हिस्से में एकाग्रता की आवश्यकता होती है।
विधि: पीठ के बल लेट जायें। अपने हाथों को शरीर से दूर जमीन पर रखें। आपकी हथेली आधी खुली हुई होनी चाहिए और उसका रुख आसमान की ओर होना चाहिए। अब अपनी आंखों को बंद करें और शव की तरह लेट जायें। अपने श्वसन पर ध्यान केंद्रित करें। उसके बाद अपना ध्यान अपने शरीर की ओर ले जायें और हर अंग को मानसिक रूप से महसूस करने का प्रयास करें। पैर के अंगुठे से शुरुआत करें और धीरे-धीरे अपने सिर तक ले जायें। ऐसा करने पर आपके सारे अंगों को बहुत राहत मिलेगी और आपका शरीर आराम की मुद्रा में चली जायेगी। कुछ देर बाद अपना ध्यान अजन चक्र की ओर ले आयें और इसपर आंतरिक रूप से ध्यान केंद्रित करने की कोशिश करें। थोड़ी देर तक इस व्यायाम का अभ्यास कर अपना ध्यान अपने श्वसन पर केंद्रित करें। गहराई से सांस लें और छोड़ें।
ऐसी कल्पना करें जैसे कि आपका शरीर पुनर्जीवित हो रहा है। इसके बाद अपने पैरों और हाथों की उंगलियों को हिलाएं। फिर हाथों की दोनों हथेलियों को आपस में तब तक रगड़ें जब तक घर्षण से ये गर्म ना हो जाये। अब इसे अपनी आंखों पर रख लें और ध्यान की मुद्रा में बैठ जायें। कुछ देर बाद बाईं ओर मुड़ें और फिर इस अवस्था से उठ जायें।
लाभ: यह व्यायाम शारीरिक और मनसिक थकान से राहत पहुंचाता है। आपका पुनर्जीवित शरीर और मन आपको आनंद और संतुष्टी का एहसास कराती है। यह अवसाद, तनाव, चिंता, अनिद्रा और तंत्रिका तंत्र की कमजोरी जैसी समस्याओं से भी छुटकारा दिलाता है। इस योग से एकाग्रता और मानसिक स्थिरता और भी बेहतर होती है।
कृपया नोट करें: इस अभ्यास को करने के लिए योग या स्वास्थ्य के किसी डॉक्टर या विशेषज्ञ या सलाहकर से परामर्श लें।