एन.एस.जी :समर्थन और विरोध के बीच झूलता भारत

एन.एस.जी :समर्थन और विरोध के बीच झूलता भारत

सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: शासन व्यवस्था, संविधान, शासन प्रणाली, सामाजिक न्याय तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध
( खंड- 18: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार)

संदर्भ
स्विट्ज़रलैंड ने कहा है वह परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (एन.एस.जी.) में शामिल होने के लिये भारत के आवेदन का समर्थन करने को तैयार है, परन्तु वह पाकिस्तान की भी सदस्यता के लिये भी दरवाज़े खुले रखना चाहता है। गौरतलब है कि एन.एस.जी. की अगली वार्षिक बैठक 19 जून को बर्न में होने वाली है। इसी संदर्भ में स्विट्ज़रलैंड की ओर से एक प्रश्न के उत्तर में यह कहा गया है।

प्रमुख बिंदु

1-गौरतलब है कि पिछले वर्ष सिओल में एन.एस.जी. की वार्षिक बैठक में भारत ने अपनी सदस्यता के लिये भरपूर प्रयास किया था। चूँकि कि भारत ने नाभिकीय अप्रसार संधि (NPT) पर हस्ताक्षर नहीं किया है इसीलिये एन.एस.जी. के अधिकांश सदस्यों ने इस आधार पर भारत की सदस्यता का विरोध किया था।

2-यदि एन.एस.जी. का सदस्य बन जाते हैं तो यह वैश्वीक अप्रसार के प्रयासों को और मजबूत करेगा।

3-स्विट्ज़रलैंड वैश्वीक अप्रसार प्रयासों में भारत के समर्थन की सराहना करता है। गैर एन.पी.टी. वाले देशों को किस तरह एन.एस.जी. में शामिल किया जाए इस बारे में उसमें अभी बातचीत चल रही है। स्विट्जरलैंड इस विषय पर निष्पक्ष, पारदर्शी एवं समावेशी तरीके से काम करना चाहता है।

4-भारत और चीन के बीच कई मुद्दों पर तनाव हैं, जैसे-वन बेल्ट वन रोड, संयुक्त राष्ट्र संघ में मसूद अज़हर का मुद्दा, एन.एस.जी. में समर्थन इत्यादि, जिनके कारण भारत को एन.एस.जी. की सदस्यता प्राप्त करने में बाधा आ सकती है।

भारत को NSG सदस्यता की ज़रूरत क्यों?
- स्वच्छ ऊर्जा का लक्ष्य पाने में मदद मिलेगी
- 2030 तक 40% बिजली ग़ैर परंपरागत ईधन से
- न्यूक्लियर एनर्जी निर्यात करने पर भी नज़र
- सदस्य बनने से न्यूक्लियर तकनीक बेच सकेंगे
- परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में भारत को विस्तार मिलेगा

ज्ञातव्य हो कि एन.एस.जी में आम सहमति के आधार पर फैसले लिये जाते हैं। इस समय चीन के व्यवहारों में जिस तरह से कठोरता दिख रही है उससे भारत और चीन एक-दूसरे के निकट आने की बजाय दूर ही होते जा रहे हैं।

परमाणु अप्रसार संधि (नॉन प्रॉलिफरेशन ट्रीटी)

1-इसका उद्देश्य विश्व भर में परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने के साथ-साथ परमाणु परीक्षण पर अंकुश लगाना है। 1 जुलाई1968 से इस समझौते पर हस्ताक्षर होना शुरू हुआ।

2-अभी इस संधि पर हस्ताक्षर कर चुके देशों की संख्या190 है। जिसमें पांच के पास आण्विक हथियार हैं। ये देश हैं- अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन। सिर्फ पांच संप्रभुता संपन्न देश इसके सदस्य नहीं हैं। ये हैं- भारत, इजरायल, पाकिस्तान द.सुदान और उत्तरी कोरिया।

3-एनपीटी के तहत भारत को परमाणु संपन्न देश की मान्यता नहीं दी गई है। जो इसके दोहरे मापदंड को प्रदर्शित करती है।

4-इस संधि का प्रस्ताव आयरलैंड ने रखा था और सबसे पहले हस्ताक्षर करने वाला राष्ट्र है फिनलैंड।

5-इस संधि के तहत परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र उसे ही माना गया है जिसने 1जनवरी 1967 से पहले परमाणु हथियारों का निर्माण और परीक्षण कर लिया हो।

6-इस आधार पर ही भारत को यह दर्जा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नहीं प्राप्त है। क्योंकि भारत ने पहला परमाणु परीक्षण 1974 में किया था। उत्तरी कोरिया ने इस सन्धि पर हस्ताक्षर किये, इसका उलंघन किया और फिर इससे बाहर आ गया।

 निष्कर्ष
भारत का विरोध करने वाले तमाम देशों(चीन, तुर्की, आयरलैंड, स्विट्ज़रलैंड, न्यूजीलैंड) में से ज्यादातर के विरोध का कारण एनपीटी पर हस्ताक्षर कम, निजी कूटनीति अधिक है। वास्तव में एनपीटी जिसको पक्षपातपूर्ण मानते हुए भारत द्वारा अस्वीकार किया जाता रहा है, के बहाने जहां कई देशों ने भारत को वैश्विक स्तर पर बढ़ने न देने की अपनी प्रतिस्पर्धात्मक कूटनीति को साधने का प्रयास किया है, तो वहीं तुर्की आदि कुछेक देश ऐसे भी हैं, जिनका भारत विरोध चीन के प्रभावस्वरूप उपजा है।

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