स्वच्छ भारत अभियान के तीन साल

स्वच्छ भारत अभियान के तीन साल

सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: शासन व्यवस्था, संविधान , शासन प्रणाली, सामाजिक न्याय तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध
(खंड-13: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओ के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय)

  संदर्भ

स्वच्छ भारत अभियान भारत सरकार द्वारा चलाया जा रहा एक स्वच्छता अभियान है, जिसकी शुरुआत 2 अक्टूबर 2014 को महात्मा गांधी की 145वीं जन्मशताब्दी के अवसर पर राजघाट, नई दिल्ली से की गई। विदित हो कि इस अभियान के तहत 2 अक्टूबर 2019 तक भारत को ‘स्वच्छ भारत’ बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

वाद

संविधान के अनुच्छेद 17 में छुआछूत के उन्मूलन की बात की गई है, लेकिन आज भी एक विशेष समुदाय द्वारा सर पर मैला ढोया जाना इस बात का सूचक है कि देश में एक बड़ा तबका अपने मूल अधिकारों की प्राप्ति से भी वंचित है।

लोग शौचालयों का उपयोग नहीं कर रहे हैं, क्योंकि वे शौचालय बनाने में सक्षम नहीं हैं। खुले में शौच कर रहे लोगों को शर्मिंदा करने के लिये अभियान चलाए जा रहे हैं, कुछ लोगों को लेकर बनाया गया एक दस्ता, खुले शौच कर रहे लोगों को देखते ही सीटियाँ बजाता और उन्हें ऐसा करने से रोकता है।

खुले में शौच से देश के लोगों को मुक्ति मिलनी ही चाहिये, लेकिन भारत का संविधान कहता है कि राज्य लोगों के जीवन में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।

स्वच्छ भारत अभियान के तहत बनाए जा रहे शौचालयों के गड्ढे इतने छोटे हैं कि यह ज़ल्दी ही भर जाते हैं। ऐसे में इन गड्ढों को बहुत थोड़े समयांतराल पर साफ करना होगा। 

वैसे तो भारत में मैला ढोने को कानूनी तौर पर तो प्रतिबंधित कर दिया गया है, लेकिन समस्या यह है कि भारत में लोग स्वयं के अपशिष्ट को भी साफ करने को धार्मिक आधार पर एक प्रतिबंधित कृत्य मानते हैं। अतः शौचालयों के गड्ढे भर जाने के डर से वे खुले में शौच करने को ही बेहतर समझते हैं।

हाल ही में सीवर की सफाई के दौरान कई मज़दूरों की मौत हो गई, जिन्हें न तो उचित उपकरण उपलब्ध कराए जाते हैं और न ही उनकी सामाजिक सुरक्षा का प्रबंन्ध किया जाता है। इन परिस्थितियों में तो यही लगता है कि स्वच्छ भारत अभियान शायद ही अपने उद्देश्यों की प्राप्ति कर सके।

प्रतिवाद

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भारत की स्वतंत्रता से पहले एक बार कहा था कि "स्वच्छता आज़ादी से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है"। उन्होंने भारत के लोगों को साफ-सफाई और स्वच्छता का महत्त्व बताया और लोगों को इसे अपने दैनिक जीवन में शामिल करने के लिये प्रोत्साहित किया। हालाँकि, लोगों ने अगर-मगर करते हुए इसमें कम रूचि दिखाई और यह असफल रहा।

तीन सालों की अवधि में, ग्रामीण भारत में 50 मिलियन शौचालय बनाए गए हैं, जबकि शहरों और कस्बों में 3.8 मिलियन शौचालयों का निर्माण हुआ है और वर्तमान में 1.4 मिलियन निर्माणाधीन हैं।

देश में पहले 39% लोगों के लिये शौचालय उपलब्ध था जो आज बढ़कर 69% हो गए हैं। 248,000 गाँवों और पाँच राज्यों- सिक्किम, हिमाचल प्रदेश, केरल, उत्तराखंड और हरियाणा को ओपेन डीफेकेशन-फ्री (खुले में शौच से मुक्त) घोषित कर दिया गया है।

विदित हो कि 'सभी के लिये आवास'  अभियान के तहत बनाए गए सभी घरों में शौचालय होंगे और घरों के नाम महिलाओं के नाम पर होंगे। खुले में शौच से मुक्ति महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देगा। उन्हें घरेलु अधीनता और अपमान से मुक्ति मिलेगी।

संवाद

इसमें कोई शक नहीं है कि स्वच्छ भारत अभियान देश के लिये कई तरह से लाभकारी होगा। इसके साथ समस्या यह है कि सरकार इस योजना के कार्यान्वयन पर कम जबकि इसके प्रचार और विज्ञापन पर ज़्यादा ध्यान दे रही है।

दिसंबर 2015 में किये गए एक अध्ययन में सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च ने बताया कि इस अभियान में डुप्लीकेट प्रविष्टियाँ की गई हैं। ऐसे लाभार्थियों का नाम लिखा गया है जो वास्तव में हैं ही नहीं। साथ ही इस अभियान में जवाबदेही का भी अभाव है। यही कारण है कि विश्व बैंक ने इस परियोजना को डाउनग्रेड किया और 1.5 अरब डॉलर के ऋण की पहली किश्त जारी करने से इनकार कर दिया।

यदि एक गड्ढा भर गया तो दूसरे गड्ढे की सहायता से शौचालय बंद नहीं होगा पहले गड्ढे में अपशिष्ट आसानी से अपघटित हो जाएगा, जिसे आसानी से साफ किया जा सकता है। ग्रामीण इलाकों में यह युक्ति कारगर साबित हो सकती है।

यह एक प्रमाणित सत्य है कि व्यक्ति अपने सामाजिक सम्पर्कों से ही शौचालय बनाने के लिये प्रेरित होता है। यदि समान जाति, शिक्षा या अच्छे सामाजिक संबंध हों तो व्यक्ति बिना किसी सरकारी मदद के अपने घर में शौचालय का निर्माण करा लेता है। सरकार द्वारा शौचालय निर्माण के लिये सब्सिडी दिये जाने के बावजूद यह असफल रही, क्योंकि इस बारे में जाति आधारित सामाजिक विभाजन को ध्यान में नहीं रखा गया है।

शौचालय निर्माण के लिये व्यक्तिगत पसन्द के बजाय एक समुदाय को महत्त्व देना चाहिये। इसके लिये समुदाय में पहले से प्रचलित अव्यावहारिक मानदण्डों को स्वास्थ्य, शिक्षा और संचार के माध्यम से दूर करके उनकी जगह नए मानदण्डों को स्थापित करना चाहिये। हालाँकि यह एक क्रमिक प्रक्रिया है।

जब नए मानदण्डों को कोई समुदाय अपनाने लगता है और वे उन्हें अपने व्यवहार में समाहित कर लेता है तो वह प्रगतिवादी समाज कहा जाता है, और भारत खुले में शौच की समस्या से तब तक निज़ात नहीं पा सकता जब तक समाज प्रगतिवादी मूल्यों को स्वीकार नहीं कर लेता और स्वच्छ भारत अभियान तब तक कामयाब नहीं हो सकता, जब तक की समूचा भारत ‘ओपेन डिफेकेशन फ्री’ नहीं हो जाता।
स्वर्ण मंदिर एवं तिरुपति मंदिर जैसे भारत के प्रतिष्ठित मंदिरों में अंतरराष्ट्रीय स्तर की सफाई का कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसके साथ ही गंगा के किनारे बनी ग्राम पंचायतों ने भी इस अभियान में उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किए हैं।

 

 

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