भारत और अमेरिका की पहली 2+2 वार्ता

भारत और अमेरिका की पहली 2+2 वार्ता 

सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2: शासन व्यवस्था, संविधान, शासन प्रणाली, सामाजिक न्याय तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध।
(
खंड- 18 : : द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह तथा भारत से संबंधित अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार)

 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत-अमेरिका के बीच पहली 2+2 वार्ता संपन्न हुई। इस वार्ता के दौरान अमेरिकी रक्षा सचिव जिम मैटिस और राज्य सचिव माइक पोम्पेओ ने राजनीतिक और सुरक्षा संबंधों को मज़बूत बनाने के उद्देश्य से अपने भारतीय समकक्ष रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के साथ कई महत्त्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किये।

                                                                             क्या है 2+2 वार्ता?

जब दो देश दो-दो मंत्रिस्तरीय वार्ता में शामिल होते हैं तो इसे विदेश नीति के संबंध में 2+2 वार्ता कहा जाता है. सामान्य तौर पर 2+2 वार्ता में दोनों देशों की तरफ से उनके विदेश और रक्षा मंत्री हिस्सा लेते हैं. वर्ष 2010 में भारत और जापान के बीच भी इस तरह की वार्ता हो चुकी है.

 

वार्ता संबंधी प्रमुख बिंदु 

  • दोनों सरकारों के बीच 50 से अधिक द्विपक्षीय वार्ता तंत्र है किंतु भारत के प्रधानमंत्री और अमेरिकी राष्ट्रपति के बीच शिखर स्तर की भागीदारी के बाद यह सहभागिता का सबसे उच्चतम स्तर है।
  • इस वार्ता के दौरान दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये सहयोग करने की बात को दोहराया साथ ही दोनों देशों के बीच आर्थिक विकास, समृद्धि और प्रगति के बारे में दोनों देशों के लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने पर ज़ोर दिया।
  • दोनों देशों के समकक्ष, संयुक्त राष्ट्र और फाइनेंसियल एक्शन टास्क फोर्स जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों के माध्यम से मज़बूत संबंधों को स्थापित करने पर सहमत हुए।

                                                                 वार्ता से संबंधित मुख्य तथ्य:

एनएसजीसदस्यता:
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा कि परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत की यथाशीघ्र सदस्यता के लिए सहमति बनी, अमेरिका इसके लिए सहयोग करेगा.दोनों देशों के बीच रणनीतिक भागीदारी आगे बढ़ रही है. दोनों देशों में तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था से दोनों को ही फायदा हो रहा है. अमेरिका भारत के लिए ऊर्जा आपूर्ति करने वाले देश के तौर पर उभर रहा है, कारोबार को संतुलित और परस्पर लाभकारी बनाने की कोशिश हो रही है.

अफगाननीति:
भारत और अमेरिका दोनों ही देश साझा लोकतांत्रिक मूल्‍यों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं. दोनों ही देश शांति और नागरिकों की समदृता के लिए काम करने पर राजी हुए हैं. दोनों देश साथ‍ मिलकर आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं. अमेरिकी रक्षा मंत्री जिम मैटीस ने वार्ता के बाद कहा कि भारत और अमेरिका साथ मिलकर काम करते रहेंगे और साथ ही उन्‍होंने एक बार फिर से भारत को अमेरिका का सबसे बड़ी रक्षा साझीदार करार दिया.

रक्षा और सुरक्षा:

दोनों देशों की तीनों सेनाओं के बीच पहली बार अगले वर्ष भारत में संयुक्त सैन्य अभ्यास के आयोजन का भी फैसला किया गया। यह अभ्यास देश के पूर्वी तट पर किया जाएगा.

दोनों पक्षों को समुद्री क्षेत्र की आजादी सुनिश्चित करनी चाहिए और समुद्री विवादों के शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में काम करना चाहिए.

अमेरिका भारत के साथ सैन्य सहयोग बढ़ाने का प्रयास कर रहा है जिसे क्षेत्र में चीन के बढ़ते सैन्य प्रभुत्व के संतुलन के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है. भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अमेरिका द्वारा लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों को ग्लोबल टेररिस्ट्स की सूची में डालने का स्वागत किया.

इस दौरान दोनों देशों के बीच अहम सुरक्षा समझौते COMCASA पर हस्ताक्षर हुए. इस समझौते के बाद अमेरिका संवेदनशील सुरक्षा तकनीकों को भारत को बेच सकेगा. खास बात यह है कि भारत पहला ऐसा गैर-नाटो देश होगा, जिसे अमेरिका यह सुविधा देने जा रहा है.

भारत की रक्षामंत्री सीतारमण ने कहा की भारत-अमेरिका सहयोग और रक्षा क्षेत्र में हमारी साझेदारी और बढ़ती परिपक्वता को दर्शाता है. उन्‍होंने कहा कि हर बैठक के बाद हमारे रक्षा क्षेत्र को और ताकत मिलती है. आज भारत रक्षा के क्षेत्र में अमेरिका के साथ जितना काम कर रहा है उतना किसी अन्‍य देशों के साथ नहीं कर रहा. बात चाहे किसी प्रशिक्षण की हो या फिर संयुक्‍त अभ्‍यास की अमेरिका और भारत के बीच रक्षा नीति मजबूत हुई है.

आतंकवाद:

सुषमा स्वराज ने अमेरिकी मंत्रियों के सामने आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को खरी-खरी सुनाते हुए कहा कि अमेरिका द्वारा लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों की नामजदगी स्वागत योग्य हैं. उन्होंने कहा कि 26/11 हमले की 10वीं वर्षगांठ पर हम इसके गुनहगारों को सजा दिलाने के लिए सहयोग बढ़ाने पर सहमत हुए हैं. बातचीत में सीमापार आतंकवाद का मुद्दा भी शामिल रहा. उन्होंने कहा कि सीमापार आतंकवाद को समर्थन देने की पाकिस्तान की नीति के खिलाफ अमेरिका का रुख स्वागत योग्य है. विदेश मंत्री ने कहा कि भारत ने इस बैठक में H1 वीज़ा का मुद्दा भी उठाया, हमें उम्मीद है कि अमेरिका भारत के हितों में ध्यान में रखते हुए कोई फैसला लेगा. यह वीजा आईटी प्रोफेशनल्स पर प्रभाव डालता है.

भारत और अमेरिका ने पाकिस्तान से यह सुनिश्चित करने को कहा कि उसके भूभाग का उपयोग आतंकवादी हमलों को अंजाम देने के लिए नहीं हो. दोनों देशों ने पाकिस्तान से यह भी कहा कि मुंबई, पठानकोट और उरी हमले सहित सीमा पार से हुए विभिन्न आतंकवादी हमलों के सरगनाओं को जल्दी से जल्दी न्याय की जद में लाया जाए.

पाकिस्तान को यह सख्त चेतावनी भारत और अमेरिका के बीच पहली बार हुयी ‘टू प्लस टू’ वार्ता के बाद दी गयी. वार्ता के दौरान विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने अमेरिकी विदेश मंत्री माइकल आर पोम्पिओ और रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस के साथ व्यापक विचार-विमर्श किया.

मंत्रियों ने ज्ञात या संदिग्ध आतंकवादियों के बारे में सूचना साझा करने के प्रयासों को बढ़ाने और विदेशी आतंकवादियों के संबंध में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद संकल्प 2396 को लागू करने के अपने इरादे की घोषणा की. इसमें कहा गया है कि मंत्रियों ने इस क्षेत्र में परोक्ष आतंकवाद के किसी भी प्रयोग की निंदा की और इस संदर्भ में उन्होंने पाकिस्तान को यह सुनिश्चित करने को कहा कि उसके नियंत्रण वाले भूभाग का उपयोग दूसरे देशों में आतंकवादी हमलों को अंजाम देने के लिए नहीं किया जाए.

उन्होंने कहा कि 26/11 के हमलों की 10 वीं बरसी पर हमने इस आतंकवादी हमले के पीछे के सरगनाओं के लिए न्याय और दंड के महत्व की पहचान की. मंत्रियों ने 2017 में आतंकवादियों के संबंध में की गयी घोषणाओं पर द्विपक्षीय वार्ता की शुरूआत का स्वागत किया जो अल-कायदा, आईएसआईएस, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, हिजब-उल मुजाहिदीन, हक्कानी नेटवर्क, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, डी-कंपनी और उनसे जुड़े विभिन्न आतंकवादी समूहों के खिलाफ कार्रवाई और सहयोग को मजबूत कर रहा है.

ईरान से कच्चे तेल के आयात पर अमेरिकी पाबंदी और रूस से एस-400वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली खरीदने की भारत की योजना जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार-विमर्श किया जा रहा है.

टू प्लस टू (2+2) वार्ता  का फैसला जून 2017 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच हुई बैठक में किया गया था. टू प्लस टू वार्ता की अहमियत इस बात से समझी जा सकती है कि अमेरिका इस तरह का साझा विमर्श अभी तक सिर्फ आस्ट्रेलिया और जापान के साथ करता है. इन दोनों देशों को वह अपने रणनीतिक मामलों के लिए बेहद अहम मानता है.

 

  • इस वार्ता के दौरान दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों और विदेश मंत्रियों के बीच हॉटलाइन शुरू करने का भी निर्णय लिया गया है जिससे दोनों रक्षा मंत्रियों और विदेश मंत्रियों के बीच सीधा संपर्क स्थापित हो जाएगा।
  • वर्तमान में भारत और अमेरिका के सुरक्षा बल साथ-साथ प्रशिक्षण और संयुक्‍त अभ्‍यास कर रहे हैं और इस क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिये वर्ष 2019 में भारत के पूर्वी तट पर अमेरिकी बलों के साथ पहली बार तीनों सेनाएँ संयुक्‍त अभ्‍यास करेंगी, का निर्णय लिया गया।
  • अमेरिका द्वारा भारत को अपना प्रमुख रक्षा साझेदार बनाने के विषय पर विस्‍तार से चर्चा हुई।
  • उल्लेखनीय है कि अमेरिका ने भारत को STA-1 का दर्जा प्रदान किया है।

सामरिक व्यापार प्राधिकरण या स्ट्रैटजिक ट्रेड ऑथोराइज़ेशन (STA)

1-  वर्ष 2011 में निर्यात नियंत्रण सुधार पहल के रूप में सामरिक व्यापार प्राधिकरण या स्ट्रैटजिक ट्रेड ऑथोराइज़ेशन की अवधारणा प्रस्तुत की गई।

2- इसके अंतर्गत दो सूचियाँ- STA-1 और STA-2 बनाई गईं, जो देश इन दोनों में से किसी भी सूची में शामिल नहीं थे, उन्हें दोहरी उपयोग की वस्तुओं के निर्यात के लिये लाइसेंस की आवश्यकता पड़ती थी।

3-  STA-1 सूची में NATO के सहयोगी और ऑस्ट्रेलिया, जापान तथा दक्षिण कोरिया सहित 36 देश शामिल हैं, इन देशों की अप्रसार व्यवस्था को अमेरिका द्वारा सबसे अच्छा कहा गया है।

4-  ये देश चारों बहुपक्षीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्था- परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG), मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (MTCR), ऑस्ट्रेलिया समूह और वासनेर व्यवस्था के हिस्सा हैं।

5- यह व्यवस्था अमेरिका से निर्यात के संबंध में लाइसेंस अपवाद की अनुमति देती है।

6- अमेरिकी सरकार इस प्रकार के प्राधिकरण को निश्चित स्थितियों में लेन-देन विशिष्ट लाइसेंस (transaction – specific license) के बिना निश्चित वस्तुओं के निर्यात की अनुमति देती है।

7- STA-1 देशों को निर्यातित वस्तुओं में राष्ट्रीय सुरक्षा, रासायनिक या जैविक हथियार, परमाणु अप्रसार, क्षेत्रीय स्थिरता, अपराध नियंत्रण आदि शामिल हैं।

8-उल्लेखनीय है कि STA-1 में शामिल होने से पहले भारत सात अन्य देशों अल्बानिया, हॉन्गकॉन्ग, इज़राइल, माल्टा, सिंगापुर, दक्षिण अफ्रीका और ताइवान के साथ STA-2 की सूची में शामिल था।

  • बैठक के दौरान ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के तहत भारत में रक्षा उत्‍पादन को प्रोत्‍साहन देने के संबंध में सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का जायजा लिया गया।
  • इस वार्ता के दौरान सैन्य संचार से संबंधित समझौते COMCASA पर हस्ताक्षर किये गए।

COMCASA

1-  संचार संगतता और सुरक्षा समझौता (Communications Compatibility and Security Agreement-COMCASA) एन्क्रिप्टेड संचार प्रणाली के हस्तांतरण को सरल बनाता है तथा उच्च तकनीक वाले सैन्य उपकरणों को साझा करने हेतु यह समझौता अमेरिका की प्रमुख आवश्यकता है।

2-  यह समझौता संयुक्त राज्य अमेरिका को अपने इन्क्रिप्टेड (Encrypted) संचार उपकरणों और गुप्त प्रौद्योगिकियों को भारत के साथ साझा करने की अनुमति देगा, जिससे दोनों पक्षों के उच्च स्तर के सैन्य-नेतृत्व के बीच युद्धकाल और शांतिकाल दोनों में ही सुरक्षित संचार संभव हो सकेगा।

3-  इससे संयुक्त सैन्य अभियान के दौरान सुरक्षित संचार में सहायता मिलेगी।

4- इस तरह की उन्नत प्रौद्योगिकियों और संवेदनशील उपकरणों को सामान्यत अमेरिका से खरीदे गए सिस्टमों पर ही स्थापित किया जाता है।

5- अत: यह समझौता भारत-अमेरिका रक्षा संबंधों के लिये मील का पत्थर सिद्ध होगा।

  • साथ ही इस तकनीक की मदद से भारत को चीन पर नज़र रखने में भी मदद मिलेगी।
  • इसके अलावा आतंकवाद के मुद्दे पर दोनों देशों ने साथ लड़ने का फैसला किया।
  • महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस वार्ता से दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्र दक्षिण अफ्रीका और हिंद महासागर में चीन के विस्तार के प्रभाव को कम करने हेतु बेहद नज़दीक आ गए हैं।
  • दोनों देशों के समकक्षों द्वारा दक्षिण एशिया की स्थिति पर भी चर्चा की गई तथा भारत ने राष्ट्रपति ट्रंप की दक्षिण एशिया नीति का समर्थन भी किया।

 

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