सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 3 : प्रोद्योगिकी, आर्थिकविकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन |
पृष्ठभूमि
हाल की तिमाहियों में सर्वेक्षण आधारित भारतीय व्यापार भावना में गिरावट आई है। जिसका मुख्य कारण विमुद्रीकरण के कारण उपजी नकदी की कमी के साथ-साथ यूरोप तथा अमेरिका में भूमंडलीकरण के स्थान पर संरक्षणवाद को प्रोत्साहन प्रदान किया जाना है|अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत ने अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजारों में हलचल पैदा कर दी है. ट्रंप द्वारा अमेरिकी मतदाताओं से किये गये वायदों में अन्य बातों के अलावा ब्याज दरें बढ़ाना तथा राजकोषीय प्रोत्साहन प्रदान करना शामिल थे.
प्रमुख बिंदु
- वित्तीय वर्ष 2015-16 में भारत के कुल निर्यात (263 बिलियन डॉलर) में अमेरिका तथा यूरोपीय संघ के देशों की हिस्सेदारी क्रमशः 16 एवं 17 फीसदी रही है|
- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी “अमेरिका फर्स्ट” नीति के तहत दस वर्षीय बांड से मिलनेवाली 1.82 प्रतिशत की आय बढ़ा कर 1 नवंबर, 2016 से 2.35 प्रतिशत कर दी गयी, जिससे भारत तथा अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं से ‘पूंजी पलायन’ प्रारंभ हो गया
- हालाँकि, अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प शुरू से ही संरक्षणवादी नीतियों पर ज़ोर दे रहे हैं, ऐसे में, इन नीतियों से न केवल अमेरिकी विनिर्माण क्षेत्र को गंभीर रूप से नुकसान होगा, बल्कि मुक्त व्यापार हेतु किये जाने वाले व्यापार समझौतों से भारतीय निर्यात को काफी क्षति पहुँचने की सम्भावना है|
- अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने एक व्यापार समझौते 'ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप' (टीपीपी) से बाहर निकलने के लिए एक कार्यकारी आदेश पर दस्तख़त कर दिया है | ऐसा कर उन्होंने अपने चुनावी अभियान में किए गए एक वादे को पूरा किया है | इस व्यापार समझौते को पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की एशिया नीति की धुरी माना जाता था जिस पर 12 देशों ने हस्ताक्षर किए थे |
- ध्यातव्य है कि समझौते जैसे टीपीपी और प्रस्तावित ट्रांस-अटलांटिक व्यापार और निवेश भागीदारी (Trans Atlantic Trade and Investment- TTIP- एक अमेरिका-यूरोपीय संघ समझौता) परम्परागत बाज़ारों जैसे अमेरिका और यूरोपीय संघ में भारतीय उत्पादों की मांग को तो बलपूर्वक नष्ट कर देते हैं परन्तु इन समझौतों में शामिल सहयोगियों को लाभ पहूँचाते हैं |
- दूसरी ओर, वर्ष 2017 में यूरोप, नीदरलैंड, फ्रांस तथा जर्मनी में होने वाले आम चुनावों (इनमें राष्ट्रपति चुनाव भी शामिल हैं) तथा संरक्षणवाद को समर्थन देने वाले विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय समूहों एवं नीतियों (जिनका उद्देश्य संरक्षणवाद तथा आव्रजन-रोधी नियमों को बढ़ावा देना है) के कारण भी भारतीय निर्यात को क्षति पहुँचने की सम्भावना है|
- इनके अलावा, ब्रेक्सिट (Brexit) वार्ताओं तथा यूरोपीय देशों में होने वाले चुनावों, विशेषकर जर्मनी में, का भी वैश्विक बाज़ार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा| अतः स्पष्ट है कि यदि यूरोपीय संघ विखंडित होता है तो इसका भारत सहित समस्त विश्व के व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव परिलक्षित होना निश्चित है|
भारतीय निर्यात की क्षीण वृद्धि के कारण
- दिसंबर 2014 से मई 2016 के मध्य अनुबंधित भारतीय सामान के विषय में अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि उक्त समयावधि में भारतीय निर्यात की मांग में वृहद् स्तर पर कमी आई है| यद्यपि 18 माह की समयावधि के उपरांत जून माह में पहली बार 97 फीसदी की सकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई|
- हालाँकि, इसके तुरंत बाद जुलाई एवं अगस्त माह में भारतीय निर्यात की वृद्धि दर नकारात्मक रूप से गिरकर कम हो गई, तत्पश्चात अगले ही माह सितम्बर में इसमें पुन: सकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई| इसी क्रम में अक्तूबर में 22% की वृद्धि दर्ज की गई जोकि नवम्बर में 2.29% ही रह सकी|
- अब चूंकि अमेरिकी वित्तीय बाजार से अधिक आय की पूरी संभावना है, सो पूर्व में भारतीय स्टॉकों तथा अन्य वित्तीय परिसंपत्तियों में निवेश करनेवालों ने अब अपना रुख अमेरिकी बाजारों की ओर कर लिया. इस प्रकार एक मुद्रा के तौर पर डॉलर की मांग चढ़ चली, और इस मांग से निर्धारित होनेवाली उसकी कीमत भी बढ़ गयी. इस प्रक्रिया के नतीजतन डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया कमजोर पड़ा और 24 नवंबर, 2016 को वह 68.73 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुआ, जो पिछले 39 महीनों के दौरान इसका सबसे निचला स्तर था.
- हाल ही में जापानी वित्तीय कम्पनी नोमुरा (Nomura) द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि विमुद्रीकरण के कारण आयात की तुलना में निर्यात सबसे ज़्यादा प्रभावित हुआ है| इतना ही नहीं, नकदी की कमी के कारण निर्यात क्षेत्रों यथा- रत्न, आभूषण, वस्त्र उद्योग इत्यादि को भी भारी नुकसान पहुँचा है|
- इसमें कोई दो राय नहीं है कि काले धन तथा जालसाजी को रोकने की दिशा में विमुद्रीकरण एक सार्थक कदम साबित होगा, परन्तु निर्यातकों (विशेषकर वस्त्र उद्योग के संबंध में,जहाँ अस्थायी एवं मौसमी आधार पर रोज़गार प्रदान किया जाता है) के लिये यह एक कठिन समय साबित हो रहा है|
- छोटे एवं मध्यम आकार की फर्मों (Small and medium firms) के साथ-साथ वैसी कम्पनियाँ जोकि विदेशी बाज़ारों में खानपान संबंधी सामान उपलब्ध करती हैं, को अनौपचारिक स्रोतों से पूंजी जुटाने करने में सर्वाधिक कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है|
- गौरतलब है कि कार्यशील पूंजी के निर्माण हेतु छोटे आकर वाले अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (scheduled commercial banks) की ओर रुख करना न केवल एक कठिन फैसला होगा, बल्कि अन्य अनौपचारिक स्रोतों (informal sources) की तुलना में इनमें निवेशित होने वाली पूंजी की कीमत भी बहुत अधिक होगी|