कावेरी जल विवाद : सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई अब तीन जजों की बेंच में

 

सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 2 : शासन व्यवस्था, संविधान, शासन प्रणाली, सामाजिक न्याय तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध
(खंड- 6 : कार्यपालिका और न्यायपालिका की संरचना, संगठन और कार्य- सरकार के मंत्रालय एवं विभाग, प्रभावक समूह और औपचारिक/अनौपचारिक संघ तथा शासन प्रणाली में उनकी भूमिका तथा खंड 3 : विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र तथा संस्थान)

पृष्ठभूमि

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कावेरी जल बंटवारा विवाद में कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण के 2007 के अवार्ड के खिलाफ तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल की अपील पर रोजाना सुनवाई की जाएगी.न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अमिताव राय और न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर की तीन सदस्यीय पीठ ने अपने 16 अक्तूबर 2016 के आदेश को दोहराते हुए कहा कि अगले आदेश तक यह प्रभावी रहेगा. न्यायालय ने इसके साथ ही जल विवाद से संबंधित इन अपील को 7 फरवरी को अंतिम रूप से सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का आदेश दिया. अदालत ने 18 अक्तूबर को कर्नाटक को निर्देश दिया था कि अगले आदेश तक तमिलनाडु को कावेरी जल से 2000 क्यूसेक पानी की आपूर्ति जारी रखी जाए.कोर्ट ने नौ दिसंबर को न्यायाधिकरण के अवार्ड के खिलाफ इन राज्यों की अपील को विचार योग्य बताते हुए कहा था कि न्यायाधिकरण के अधिकार क्षेत्र, मानदंड और उसके दायरे के बारे में निर्णय लेने का उसे अधिकार है.

 

 

  • ध्यातव्य है कि कर्नाटक राज्य सरकार के वकील मोहन कतार्की ने जल-विवाद के संबंध में तमिलनाडु सरकार को प्रत्युत्तर देते हुए कहा कि वर्तमान में कर्नाटक में  8 टीएमसी फुट पानी की कमी दर्ज की गई है, जबकि आने वाले समय में इसमें एक टीएमसी फुट पानी की अतिरिक्त कमी आने की प्रबल संभावना भी व्यक्त की जा रही है| ऐसे में, कर्नाटक सरकार किसी भी हालत में 31 जनवरी से पहले तमिलनाडु को पानी देने की स्थिति में नहीं है|
  • वहीं दूसरी ओर, तमिलनाडु सरकार द्वारा अपना पक्ष रखते हुए कहा गया है कि इस वर्ष उत्तर-पूर्वी मानसून के पूर्णतया विफल रहने के कारण राज्य 67 फीसदी जल की कमी से जूझ रहा है| 
  • गौरतलब है कि गत वर्ष 9 दिसम्बर को सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार के इस रुख को पूर्णतया खारिज कर दिया था कि कावेरी जल-विवाद के विषय में सुनवाई करने का क्षेत्राधिकार सर्वोच्च न्यायालय के पास नहीं है| न्यायालय ने इस विषय में तीनों राज्यों द्वारा न्यायाधिकरण के विरुद्ध दायर याचिका के विषय में सुनवाई करने के अधिकार को अपनी संवैधानिक शक्ति (constitutioal power) करार दिया |

कवेरी नदी जल-विवाद

  • ध्यातव्य है कि कावेरी नदी का कुल जल क्षेत्र 87,900 वर्ग किलोमीटर है, जोकि समूचे भारतीय भू-भाग का तकरीबन 7 प्रतिशत क्षेत्र है|
  • कावेरी नदी में मिलने वाली प्रमुख नदियाँ- हेमवती, हरांगी, काबिनी, स्वर्णवटी तथा भवानी हैं|
  • भौगोलिक रूप से कावेरी नदी को तीन प्रमुख भागों में बाँटा गया है- पश्चिमी घाट, मैसूर का पठार तथा डेल्टा क्षेत्र |
  • कावेरी नदी का उद्गम स्थल कर्नाटक राज्य होने के कारण कावेरी के जल पर सम्पूर्ण अधिकार भी इसी का होता है|
  • सर्वप्रथम, इस विवाद का उद्भव वर्ष 1837 में मैसूर तथा मद्रास प्रेसिडेंसी के बीच वन तथा सिंचाई के मुद्दों को लेकर हुआ था| वर्ष 1892 एवं 1950 में ब्रिटिश सरकार की मध्यस्थता में इस पर समझौता किया गया, परन्तु 70 के दशक में इस नदी के संबंध में पुन: विवाद की स्थिति बन गई|
  • तत्पश्चात वर्ष 1986 में तमिलनाडु सरकार द्वारा केंद्र सरकार से वर्ष 1956 में पारित अन्तर्राज्यीय जल विवाद कानून के अंतर्गत एक न्यायाधिकरण के गठन की मांग की गई, जिसके परिणामस्वरूप 2 जून,1990 को कवेरी जल विवाद न्यायाधिकरण का गठन किया गया|

अन्तर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956

  • 6 अगस्त, 2002 को इस अधिनियम का संशोधित प्रारूप लागू किया गया|
  • ध्यातव्य है कि जब दो या दो से अधिक राज्य सरकारों के मध्य जल विवाद की स्थिति उत्पन्न होती है अथवा जल विवाद होता है, तो इस अधिनियम के तहत किसी भी नदी घाटी वाले राज्य द्वारा केंद्र सरकार को इस संबंध में अनुरोध भेजा जा सकता है|
  • उक्त अधिनियम के तहत, जब ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है कि अब विवाद को बातचीत के ज़रिये नहीं सुलझाया जा सकता है, केवल तभी केंद्र सरकार उस विवाद को पंचाट के पास भेज सकती है अथवा पंचाट को सौंप सकती है|  

क्या है उत्तर पूर्वी मानसून ?

सर्दी में जब मैदानी भाग अधिक जल्दी ठंडे हो जाते हैं, तब प्रबल, शुष्क हवाएं उत्तर-पूर्वी मानसून बनकर बहती हैं।  उत्तर-पूर्वी मानसून भारत के स्थल और जल भागों में जनवरी की शुरुआत तक, इस समय उच्च दाब की एक पट्टी पश्चिम में भूमध्यसागर और मध्य एशिया से लेकर उत्तर-पूर्वी चीन तक के भू-भाग में फैली होती है।

 उत्तर-पूर्वी मानसून के कारण जो वर्षा होती है, वह परिमाण में तो कम , मगर सर्दी की फसलों के लिए बहुत लाभकारी होती है।

उत्तर-पूर्वी मानसून के तहत तमिलनाडु में ज्यादा बारिश होती है। सच कहें तो तमिलनाडु का मुख्य वर्षाकाल उत्तर-पूर्वी मानसून के समय ही होता है। यह इसलिए कि पश्चिमी घाट की पर्वत श्रेणियों की आड़ में आ जाने के कारण उत्तर-पश्चिमी मानसून से उसे अधिक वर्षा नहीं मिल पाती। नवंबर और दिसंबर के महीनों में तमिलनाडु अपनी संपूर्ण वर्षा का मुख्य अंश प्राप्त करता है।

चक्रवात :-  वायुदाब में अंतर के कारण जब केंद्र में निम्न वायुदाब और बाहर उच्च वायुदाब हो तो वायु चक्राकार प्रतिरूप बनती हुई (उत्तरी गोलार्ध में Anti-Clockwise) उच्च दाब से निम्न दाब की ओरचलने लगती है इसे चक्रवात कहते है.

 वरदा चक्रवात
हाल ही में, बंगाल की खाड़ी में उठने वाले चक्रवातों का अध्ययन करने के पश्चात यह पाया गया है कि आए दिन उठने वाले इन गंभीर चक्रवातों (उदाहरण के तौर पर तमिलनाडु में आए वरदा चक्रवात) की बढ़ती संख्या का मूल कारण समुद्री तापमान के स्तर में वृद्धि होना है|
 

 

  

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