प्रश्न:जीन संवर्द्धित पौधे भारत के राष्ट्रीय अर्थ संतुलन को बिगड़ने से रोकते हैं?
सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन |
भूमिका
भारत की भूमि और वर्तमान अर्थव्यवस्था जितने लोगों का भार-वहन कर सकती है उसकी अपेक्षा आबादी कहीं अधिक होने से राष्ट्रीय अर्थ संतुलन बिगड़ता है और उसका प्रभाव प्रत्येक नागरिक पर बुरा ही पड़ता है।
सन् 51 की जनगणना 35,68,91,624 थी। भोजन और श्रम की दृष्टि से छोटे बालकों का हिसाब काट कर 100 की आबादी 86 मानी जाती है। इस हिसाब से उस समय लगभग 30 करोड़ खाने वाले थे। प्रति व्यक्ति 14 औंस भोजन के हिसाब से इनके लिए 4.4 करोड़ टन अन्न की आवश्यकता पड़ती थी। पर आँकड़ों के हिसाब से बीज और बर्बादी काट कर करीब 4 करोड़ टन उत्पन्न होता था। तदनुसार 40 लाख टन की कमी पड़ती थी। दस वर्ष बाद सन् 60 की जनगणना के हिसाब से भी वही स्थिति है। अन्न की पैदावार बढ़ाने के सरकारी और गैर सरकारी अनेक प्रयत्नों के बावजूद वह कमी ज्यों की त्यों बनी हुई है। कारण एक ही है जन-संख्या का तेजी से बढ़ते जाना।
अतः हमें उन महत्त्वपूर्ण उपायों की तलाश करनी है जिनसे खाद्यान्न पौधों की उत्पादकता में वृद्धि की जा सके| इसके लिये एक महत्त्वपूर्ण तरीका प्रकाश संश्लेषण क्रिया में सुधार करना भी हो सकता है| अंतर्राष्ट्रीय शोधकार्ताओं की एक टीम द्वारा वैश्विक खाद्य आवश्यकता की समस्या पर ध्यान केन्द्रित करते हुए प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में सुधार करने पर एक शोध प्रकाशित किया गया है|
प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis)
सजीव कोशिकाओं के द्वारा प्रकाशीय ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करने की क्रिया को प्रकाश संश्लेषण (फोटोसिन्थेसिस) कहते है। प्रकाश संश्लेषण वह क्रिया है जिसमें पौधे अपने हरे रंग वाले अंगो जैसे पत्ती, द्वारा सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में वायु से कार्बनडाइऑक्साइड तथा भूमि से जल लेकर जटिल कार्बनिक खाद्य पदार्थों जैसे का निर्माण करते हैं तथा O2 बाहर निकालते हैं। प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में पौधों की हरी पत्तियों की कोंशिकाओं के अन्दर कार्बन डाइआक्साइड और पानी के संयोग से पहले साधारण कार्बोहाईड्रेट बाद में जटिल कार्बोहाईड्रेट का निर्माण होता है। इस प्रक्रिया में आक्सीजन एवं ऊर्जा से भरपूर कार्बोहाइड्रेट (सुक्रोज,ग्लूकोज,स्टार्च (मंड) आदि) का निर्माण होता है तथा आक्सीजन गैस बाहर निकलती है। जल, कार्बनडाइऑक्साइड, सूर्य का प्रकाश तथा क्लोरोफिल (हरितलवक) को प्रकाश संश्लेषण का अवयव कहते हैं। इसमें से जल तथा कार्बनडाइऑक्साइड को प्रकाश संश्लेषण का कच्चा माल कहा जाता है। प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया सबसे महत्वपूर्ण जैवरासायनिक अभिक्रियाओं में से एक है। सीधे या परोक्ष रूप से दुनिया के सभी सजीव इस पर आश्रित हैं। मानव सहित पृथ्वी पर रहने वाले अनेक जीव-जंतु पौधों की प्रकाश संश्लेषण की कुशलता तथा उनकी वृद्धि पर निर्भर करते हैं|
प्रकाश संश्लेषण में सुधार की स्थिति
पौधों में रासायनिक अभिक्रियाओं के संपन्न होने के लिये आवश्यक ऊर्जा सूर्य के प्रकाश से प्राप्त होती है| पौधों की पत्तियों में पाए जाने वाले क्लोरोफिल नामक हरित घटक द्वारा सूर्य के प्रकाश से यह ऊर्जा संग्रहित की जाती है| हालाँकि, यह ऊर्जा पौधों की पत्तियों को क्षति भी पहुँचा सकती है, जैसे समुद्र के किनारे ( beach) सूर्य-स्नान करने वाले लोग जलन (sunbrunt) का शिकार हो जाते हैं| पौधे ऊष्मा मुक्त करके सूर्य के प्रकाश द्वारा होने वाली क्षति से अपना बचाव करते हैं, जबकि मनुष्य क्रीम व सन- ग्लासेज़ के प्रयोग द्वारा बचाव करता है |
उपरोक्त स्थिति पर विचार करते हुए इस अधिशेष सौर ऊर्जा को व्यवस्थित करने की प्रक्रिया को तेज़ करने की आवश्यकता है| यदि इस चक्र के पुनः शुरू होने में अधिक समय लगता है तो इसे समय की बर्बादी माना जा सकता है| इसलिये यदि क्षतिपूर्ति की इस प्रक्रिया (जिसे गैर-प्रकाश रासायनिक शमन- ‘एनपीक्यू’ कहा जाता है) में सुरक्षित तरीके से तीव्रता लाई जाए तो शोधकर्ताओं का दावा है कि फसल उत्पादकता को सुधारा जा सकता है|
गैर- प्रकाश रासायनिक शमन ( Non-photochemical quenching- NPQ )
पौधों में एनपीक्यू के स्तर में उतार-चढ़ाव तीन प्रोटीनों के क्रियाकलापों के फलस्वरूप संभव हो पाता है| इनमें, ज़ेप (ZEP) नामक प्रोटीन से एनपीक्यू दर में तेज़ी आती है| दूसरी, वीडीई (VDE) प्रोटीन मध्यस्थ के रूप में काम करके ज़ेप के क्रियाकलापों को संतुलित करता है, जबकि तीसरा पीएसबीएस (PSBS) के नाम से जाना जाता है और एनपीक्यू स्तर को संतुलित करता है| यदि तीनों प्रोटीनों के स्तर को प्रभावित किया जा सके तो प्रकाश संश्लेषण की कुशलता व फसल पैदावार को समंजित किया जा सकता है|
तम्बाकू के पौधे पर परीक्षण
उपरोक्त स्थितियों को ध्यान में रखते हुए जैव अभियांत्रिकी द्वारा वीडीई, पीएसबीएस तथा ज़ेप प्रोटीन के जीन को प्रवेश कराकर तम्बाकू का पौधा तैयार किया गया| इस क्रिया के परीक्षण के लिये तम्बाकू का पौधा इसलिये लिया गया क्योंकि इसका जैविक रूपांतर आसान था, साथ ही, यह एक फसली पौधा है जिसकी वजह से यह ज़रूरत भर की पत्तियों की परत मुहैया कराता है| इसके अतिरिक्त, चावल, सोयाबीन, गेंहूँ तथा मटर में भी यही प्रक्रिया पाई जाती है| अतः तम्बाकू पर किये गए परीक्षण से प्राप्त निष्कर्ष उनके ऊपर भी लागू होते हैं|
इन तीनों जीनों से युक्त पौधों को वीपीज़ेड (वीपीई, पीएसबीएस तथा ज़ेप प्रोटीन जीनों का प्रथम अक्षर) पौधा कहा गया था| सामान्यतः असंशोधित तम्बाकू के पौधों से इनके प्रदर्शनों की तुलना की गई| वीपीज़ेड पौधों में एनपीक्यू शिथिलन की दर तीव्र पाई गई तथा उनमें क्षतिपूर्ति व प्रकाश संश्लेषण में संबद्धता भी शीघ्र पाई गई| इसके बाद शोधार्थियों द्वारा पौधों पर प्रकाश आपतन में भी उतार-चढ़ाव किया गया जिससे धूप-छाँव की नकल की जा सके और इसके द्वारा वीपीज़ेड व जंगली प्रकार के पौधों के प्रदर्शनों की तुलना की गई| यहाँ भी पाया गया कि कम प्रकाश में वीपीज़ेड पौधे जंगली प्रकार के पौधों की अपेक्षा बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं| इसके पश्चात, फसलों की उत्पादकता का परीक्षण करने के लिये दोनों प्रजातियों के तंबाकू के पौधों का रोपण किया गया और यह पाया गया कि वीपीज़ेड पौधों में असंशोधित पौधों की अपेक्षा अधिक पत्तियाँ थीं तथा उनके पत्तियों तनों व जड़ों का कुल वजन असंशोधित पौधों की अपेक्षा 14-20% अधिक था |
इन परीक्षणों से यह निष्कर्ष प्राप्त हुआ कि खाद्य फसलों की उत्पादकता में वृद्धि के लिये यह एक वहनीय तरीका हो सकता है| हालाँकि, ये जीन संवर्द्धित पौधे हैं लेकिन जीन पादप वंश के लिये बाहरी होने की बजाय उसी से संबंधित हैं|