DAINIK BHASKAR JAN1,2018:बगैर मेहरम (पुरुष अभिभावक) के हज पर अकेली जा सकेंगी मुस्लिम महिलाएं

DAINIK BHASKAR JAN1,2018:बगैर मेहरम (पुरुष अभिभावक) के हज पर अकेली जा सकेंगी मुस्लिम महिलाएं

       

               

     

    बगैर मेहरम (पुरुष अभिभावक) के हज पर अकेली जा सकेंगी मुस्लिम महिलाएं

                     (श्री नरेन्द्र मोदी,39 वी मन की बात)

 

नई हज पॉलिसी

(2018-2022 )

पूर्व आईएएस अधिकारी और संसदीय कार्य सचिव अफजल अमानुल्लाह की अध्यक्षता वाली इस कमिटी का गठन 16 अप्रैल 2013 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद किया गया था.

 

इस कमिटी ने भारत सरकार की 2013 से 2017 के लिए बनी हज पॉलिसी का अध्ययन किया.

 

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को अगले पांच सालों के लिए पॉलिसी तैयार करने के निर्देश दिये थे.

 

2018-2022 के लिए प्रस्तावित नई हज पॉलिसी में हज सब्सिडी को हटाने की अनुशंसा की गई है.

 

इसमें 45 से अधिक उम्र की महिलाओं को बिना पुरुष साथी के हज जाने की अनुमति देने की सिफारिश भी की गई है.

धार्मिक पहलु

पैगंबर मोहम्मद की जिंदगी में घटी दो घटनाओं के चलते महिलाओं को अकेले सफर करने से रोका जाता है.

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पहली घटना तब हुई जब एक व्यक्ति पैगंबर मोहम्मद के पास आया और उसने उनसे कहा कि उसे युद्ध में जाना है और उसकी पत्नी हज करना चाहती है. पैगंबर ने जवाब दिया कि उसे अपनी पत्नी के साथ जाना चाहिए. अब लोगों ने इस घटना को अपने यकीन को स्थापित करने के लिए इस्तेमाल कर लिया.

 

दूसरी घटना तब की है जब सालों पहले रास्ते कठिन होते थे और डाकू रास्तों पर लोगों से लूटपाट करते थे. ऐसी घटनाओं में महिलाओं का अपहरण कर उनसे बलात्कार किया जाता था इसलिए कहा जाता था कि महिलाओं को अकेले सफर नहीं करना चाहिए.

 भारत सरकार के मुस्लिम महिलओं से सम्बंधित अन्य कदम

सरकार मानती है कि तीन तलाक शरीयत की गलत व्याख्या है।

यह महिलाओं के अधिकारों और गरिमा से जुड़ा मामला है जो संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 (समानता और सम्मान से जीवन जीने का मौलिक अधिकार) के तहत आता है। जो चीज मौलिक अधिकारों के विरुद्ध हो उसे हटाया जा सकता है।

 

 

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का तर्क

इस बारे में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड पहले ही अपना जवाब दाखिल कर चुका है। बोर्ड ने तीन तलाक और चार शादियों की तरफदारी की है। बोर्ड का कहना है, एक बार में तीन तलाक बोलना गलत और पाप के समान है लेकिन यह वैधानिक है। यह पर्सनल लॉ से जुड़ा मामला है और कोर्ट इसमें दखल नहीं दे सकता।

 

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