द बिग पिक्चर: न्यायाधिकरणों का पुनर्गठन
प्रसारण तिथि- 24.03.2017 www.jineshiasacademy.com |
चर्चा में शामिल गेस्ट |
सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 : शासन व्यवस्था, संविधान, शासन प्रणाली, सामाजिक न्याय तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध |
परिचर्चा का सन्दर्भ
हाल ही में सरकार ने न्यायाधिकरणों में बड़े पैमाने पर सुधार की बात करते हुए अर्द्ध-न्यायिक निकायों की संख्या कम करने और उनके अधिकारियों की सेवा-शर्तों में समानता लाने की मांग की है।
वित्त विधेयक 2017 के संशोधनों को आगे बढ़ाते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि विभिन्न मामलों के लिये अनेक न्यायाधिकरणों के होने के बावजूद काम कम हो रहा है, ऐसे में विभिन्न न्यायाधिकरणों का विलय करके एक न्यायाधिकरण का गठन किया जाएगा, जैसे-
- प्रतिस्पर्द्धा अपीलीय न्यायाधिकरण का विलय अब राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण के साथ कर दिया जाएगा।
- साइबर अपीलीय न्यायाधिकरण और हवाई अड्डा आर्थिक नियामक प्राधिकरण अपीलीय न्यायाधिकरण का विलय दूरसंचार विवाद निपटान और अपीलीय न्यायाधिकरण के साथ कर दिया जाएगा।
- औद्योगिक न्यायाधिकरण अब ‘कर्मचारी भविष्य निधि अपीलीय न्यायाधिकरण’ के कार्यों को भी पूरा करेगा, इसी प्रकार
- कॉपीराइट बोर्ड का विलय बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड के साथ कर दिया जाएगा।
भारत में न्यायाधिकरण और अन्य अदालतें |
नीचे न्यायाधिकरणों की संक्षिप्त सूची दी गयी है.:
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ट्रिब्यूनल क्या है? 42वें संविधान संशोधन अधिनियम,1976 के तहत संविधान में एक नया अध्याय, भाग XIV-A, जोड़ा गया. इस नए भाग में दो अनुच्छेद - अनुच्छेद 323-A और 323-B हैं.
न्यायाधिकरण का गंभीर मूल्यांकन 1-तकनीकी या प्रक्रियात्मक औपचारिकताओं के बोझ तले दबी आम अदालतों पर न्यायाधिकरण भारी पड़ते हैं. न्यायाधिकरण को दीवानी और फौजदारी कानूनों के तहत काम नहीं करना पड़ता, उन्हें सिर्फ भारतीय प्रमाण अधिनियम के तहत अभिलेखन में तकनीकी पहलुओं का ध्यान रखना पड़ता है. 2-न्यायिक गलतियों को रोकने और निष्पक्षता को सुनिश्चित करने के लिए प्रक्रियात्मक कानून में अपील, पुनर्विचार, समीक्षा, पुनरीक्षण के सम्बन्ध में कई प्रावधान है जिससे पक्ष निर्णय पर ऐतराज कर सकते हैं, आगे याचिका दायर कर सकते हैं और इस कारण अपील करने की प्रक्रिया अंतहीन बनती चली जाती है. न्याय में देरी से याचिकाकर्ता में कुंठा पनपती है और गुस्सा बढ़ता है. इसलिए याचिकाओं के चयनित क्षेत्र को विशेष मंचों जैसे न्यायाधिकरणों को हस्तांतरित कर देना चाहिए. 3-ऐल० चन्द्रकुमार बनाम केंद्र सरकार ((1997) 3 SCC 261) मामले में उच्चतम न्यायालय ने न्यायाधिकरणों के मूलभूत कानूनों के बावजूद सभी न्यायाधिकरणों के नियमन और प्रशासन के लिए पूरी तरह स्वतन्त्र निकाय को बनाने की जरूरत पर बल दिया. 4-न्यायधिकरणों की नियुक्ति के सम्बन्ध में उच्चतम न्यायालय का सुझाव था कि केंद्र सरकार को भारतीय विधि आयोग और मलिमथ समिति जैसे विशेषज्ञ निकायों की सिफारिश के आधार पर पहल करनी चाहिए. 5-इस विषय में सावधानी बरती जानी चाहिए कि ये न्यायाधिकरण प्रशासनिक अधिकारियों के दोबारा नौकरी करने के मंचों में न तब्दील हो जाएँ बल्कि इन नियुक्तियों के लिए तकनीकी विशेषज्ञों और स्वतंत्र प्रोफाइल वाले लोगों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. www.jineshiasacademy.com
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अतः स्पष्ट है कि वित्त विधेयक के तहत यह संशोधन कई कानूनों को बदल देगा। साथ ही, सरकार को अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और न्यायाधिकरण के अन्य सदस्यों की नियुक्ति करने और हटाने के लिये मापदंड तैयार करने की अनुमति होगी और उनकी सेवा-शर्तों पर निर्णय लेने का भी अधिकार होगा।
पुनर्गठन की आवश्यकता क्यों?
1-पिछले कुछ सालों में भी न्यायाधिकरणों को ऐसी समस्याओं से पीड़ित देखा गया है जैसी समस्याएँ नियमित न्यायपालिका झेल रही है, जैसे कि न्याय में विलम्ब, मामलों की अधिकता, सुनवाई की धीमी रफ्तार आदि।
2-कुछ न्यायाधिकरण ऐसे भी हैं जिनके पास अरसे से कोई केस नहीं गया है और वे बिल्कुल खाली हैं। ऐसे में उनका अस्तित्व में रहना बेमानी नज़र आता है।
3-विवादों के निपटारों की धीमी रफ्तार और न्यायाधिकरणों की बढ़ती संख्या सरकार पर अनावश्यक व्यय का अतिरिक्त बोझ डालती है। अतः इन्हीं बातों के मद्देनज़र सरकार ने वित्त विधेयक के अंतर्गत न्यायाधिकरणों के पुनर्गठन की बात कही है।
कुछ अन्य बिंदु तर्क है कि प्रतिस्पर्द्धा अपीलीय न्यायाधिकरण किसी अन्य न्यायाधिकरण में विलय के उपयुक्त नहीं है क्योंकि यह बहुत विशिष्ट है और जटिल मामलों से संबंधित है। अतः इसका एनसीएलटी के साथ विलय करना भारत में प्रतिस्पर्द्धा कानून को महत्वहीन बनाने जैसा है। इस प्रकार के प्रावधान के विरोध में यह कहा जा रहा है कि निष्पक्षता और न्यायसंगतता सुनिश्चित करने के लिये केंद्र सरकार के नियंत्रण में बढ़ोतरी, सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित भावना और सिद्धांतों के विरुद्ध होगी क्योंकि वित्त विधेयक की धारा 179 केंद्र सरकार को संसद से व्यापक शक्तियाँ हस्तांतरित करती है।
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निष्कर्ष
इन समस्त चर्चाओं का सार यही है कि न्यायाधिकरणों के पुनर्गठन में कोई नुकसान नहीं है, लेकिन सावधानीपूर्वक समीक्षा के बाद उन्हें सुव्यवस्थित किया जाए तो कहीं ज़्यादा बेहतर होगा।