प्रश्न :तुर्कान-ए-चहलगानी के सदस्यों का समकालीन राजनीति पर क्या प्रभाव था ?

प्रश्न :तुर्कान-ए-चहलगानी के सदस्यों का समकालीन राजनीति पर क्या प्रभाव था ?

 

उत्तर :

प्रश्न विच्छेद

• कथन तुर्कान-ए-चहलगानी के परिचय एवं समकालीन राजनीति में इसके प्रभाव की चर्चा से संबंधित है।

हल करने का दृष्टिकोण

• तुर्कान-ए-चहलगानी के विषय में संक्षिप्त उल्लेख के साथ परिचय लिखिये।

• तुर्कान-ए-चहलगानी की समकालीन राजनीति में प्रभाव की चर्चा कीजिये।

• उचित निष्कर्ष लिखिये।

तुर्कान-ए-चहलगानी इल्तुतमिश के दास अधिकारियों का एक अभिजात समूह था। चालीस की इस संख्या का कोई विशेष महत्त्व नहीं है क्योंकि इल्तुतमिश के अमीरों की सूची में ऐसे 25 से भी कम दास अधिकारियों का उल्लेख मिलता है।

तुर्कान-ए-चहलगानी की समकालीन राजनीति में प्रभाव की चर्चा निम्नलिखित रूपों में वर्णित है:

  • तुर्कान-ए-चहलगानी के सदस्यों की स्वामीभक्ति जहाँ एक तरफ सल्तनत के स्वास्थ्य के लिये लाभदायक थी वहीं, इनकी महत्त्वाकांक्षा भविष्य के मार्ग में एक प्रमुख रोड़ा भी थी।
  • तुर्कान-ए-चहलगानी के सदस्यों ने इल्तुतमिश के पश्चात् एक संगठित निकाय के तौर पर व्यवहार नहीं किया जिससे प्रत्यक्ष रूप से शासन एवं प्रशासन के स्तर पर विपरीत स्थिति उत्पन्न हुई।
  • तुर्कान-ए-चहलगानी के सदस्य एक-दूसरे के समक्ष झुकने को तैयार नहीं होते थे जिससे सल्तनत के शासन एवं प्रशासन के संचालन में कठिनाई होती थी।
  • ये क्षेत्रों (इक्तों), शक्तियों, पदों एवं सम्मानों के वितरण में एक-दूसरे से समानता की मांग करते थे, जिसकी प्राप्ति न होने पर केंद्र के विरुद्ध षडयंत्र रचते थे।
  • तुर्कान-ए-चहलगानी के अमीरों को अपने ऊपर बहुत गर्व था और ये मुक्त अमीरों (तुर्क एवं ताजिक दोनों) को अपने बराबर नहीं समझते थे जिससे शासन संचालन में कठिनाई होती थी।
  • इल्तुतमिश की मृत्यु के पश्चात् अमीर इस बात से तो सहमत थे कि इल्तुतमिश के ही किसी वंशज को दिल्ली की राजगद्दी पर बैठाया जाए लेकिन समस्त शक्ति एवं प्राधिकार उन्हीं के हाथ में निहित रहे।
  • रजिया को राजगद्दी पर बैठाने में तुर्क दास अधिकारियों के एक सबल समूह की प्रमुख भूमिका थी।

बलबन ( 1266-1286 )-

·       बलबन इल्तुतमिश  का दास था

·       बलबन भी तुर्कान – ए -चहलगानी का सदस्य था, रजिया के समय अमीर – ए – शिकार का सदस्य था तथा बहरामशाह के समय अमीर – ए – आखूर के पद परतथा अलाउद्दीन मसूदशाह के समय अमीर – ए -हाजिब के पद पर था।नासिरुद्दीन महमूद के समय बलबन नायब – ए – ममलिकात के पद पर था।

बलबन की समस्यायें-

जब बलबन शासक बना तो उसे कई समस्याओं का सामना करना पङा जो इस प्रकार हैं-

1.     तुर्कान – ए – चहलगानी की महत्वकांक्षा।

समस्याओं का समाधान-

1.     तुर्कान ए चहलगानी की महत्वकांक्षा का दमन- बलबन ने चहलगानी के अनेक विद्रोही अधिकारियों की हत्या करवा दी इसमें उसका भतीजा (शेरखाँ-सुंकर)  भी था। कुछ अधिकारियों को दिल्ली से दूर भेज दिया।

 

निष्कर्षत: तुर्कान-ए-चहलगानी के सदस्यों की समकालीन राजनीति में प्रभावी भूमिका थी। ये सदस्य संगठित रूप में सल्तनत को एक बेहतर दशा और दिशा दे सकते थे लेकिन यह संभव नहीं हो पाया।

 

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