प्रश्न. भारत के महान्यायवादी की संघीय कार्यपालिका में भूमिका स्पष्ट करें।

प्रश्न. भारत के महान्यायवादी की संघीय कार्यपालिका में भूमिका स्पष्ट करें।

उत्तर.

उत्तर की रूप रेखा:

  •   नियुक्ति और पदावधि
  •   कर्तव्य और कार्य
  •   अधिकार और सीमाए

संघीय कार्यपालिका राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रिपरिषद तथा भारत के महान्यायवादी से मिलकर बनती है। इस प्रकार भारत का महान्यायवादी संघीय कार्यपालिका का एक महत्त्वपूर्ण अंग है।

संविधान के अनुच्छेद-76(1) के अनुसार राष्ट्रपति, उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश होने के योग्य किसी व्यक्ति को भारत का महान्यायवादी नियुक्त करता है। वह भारत सरकार का मुख्य कानूनी सलाहकार तथा उच्चतम न्यायालय में भारत सरकार का प्रमुख वकील होता है। महान्यायवादी भारत सरकार को विधि संबंधी विषयों पर सलाह देने के लिये नियुक्त किया जाता है। उसे विधि संबंधी उन अन्य कर्त्तव्यों का पालन भी करना पड़ता है, जिन्हें राष्ट्रपति समय-समय पर निर्देशित करे।

कर्तव्य और कार्य:

(1) वह कानूनी मामलों पर भारत सरकार को सलाह देता है जो राष्ट्रपति द्वारा उसे भेजे या आवंटित किए जाते हैं|

(2) वह राष्ट्रपति द्वारा भेजे या आवंटित किए गए कानूनी चरित्र के अन्य कर्तव्यों का प्रदर्शन करता है।

(3) वह संविधान के द्वारा या किसी अन्य कानून के तहत उस पर सौंपे गए कृत्यों का निर्वहन करता है

अपने सरकारी कर्तव्यों के निष्पादन में:

(1) वह भारत सरकार का विधि अधिकारी होता है, जो सुप्रीम कोर्ट में सभी मामलों में भारत सरकार का पक्ष रखता है।

(2) जहाँ भी भारत की सरकार को किसी क़ानूनी सलाह की जरुरत होती है, वह अपनी राय से सरकार को अवगत कराता है ।

 अधिकार और सीमाएं:

(1) अपने कर्तव्यों के निष्पादन में, वह भारत के राज्य क्षेत्र में सभी न्यायालयों में सुनवाई का अधिकार रखता है।

(2) उसे संसद के दोनों सदनों या उनके संयुक्त बैठकों की कार्यवाही में हिस्सा लेने का अधिकार है, परंतु उसे वोट देने का अधिकार नहीं है (अनुच्छेद 88)|

(3) उसे संसद की किसी भी समिति में जिसमें वह सदस्य के रूप में नामांकित हो बोलने का अधिकार या भाग लेने का अधिकार है, परंतु वोट डालने का अधिकार नहीं है (अनुच्छेद 88)|

(4) वह उन सभी विशेषाधिकारों और प्रतिरक्षाओं को प्राप्त करता है जो संसद के एक सदस्य के लिए उपलब्ध होतीं है|

नीचे वर्णित महान्यायवादी पर निर्धारित की गई सीमाएं हैं:

(1) वह अपनी राय को भारत सरकार के ऊपर थोप नहीं सकता है|

(2) वह भारत सरकार की अनुमति के बिना आपराधिक मामलों में आरोपियों का बचाव नहीं कर सकता है

(3) वह सरकार की अनुमति के बिना किसी भी कंपनी में एक निदेशक के रूप में नियुक्ति को स्वीकार नहीं कर सकता है|

यह ध्यान दिये जाने वाली बात है कि महान्यायवादी को  निजी कानूनी अभ्यास से वंचित नहीं किया जाता है| वह सरकारी कर्मचारी नहीं होता है क्योंकि उसे निश्चित वेतन का भुगतान नहीं किया जाता है और उसका पारिश्रमिक राष्ट्रपति निर्धारित करता है|

निष्कर्ष:

इस प्रकार महान्यायवादी संघीय कार्यपालिका का एक अभिन्न अंग है, लेकिन भारत में सरकार बदल जाने पर या अन्य किसी कारण से सरकार के अस्तित्व में न रहने पर महान्यायवादी द्वारा त्यागपत्र देने की परम्परा है।

 

 

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