डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर का राज्य समाजवाद का विचार
डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर बहुत दूरदर्शी थे. बाल्यवस्था से उनपर संत कबीर और तथागत बुद्ध का प्रभाव रहा है. उन्होंने देखा था, की विश्व में साम्यवाद का दौर जारी है. ख्रिश्चन पाद्रियों के जरिए आर्थिक शोषण को बढ़ावा दिया जा रहा था. उससे परेशान होकर कॉर्ल मॉर्क्स ने सभी धर्मों को “अफू” कहा था. बाबासाहब विचलित हुए. उन्हें डर लगने लगा था की कही भारत का प्राचीन जनतांत्रिक बुद्ध धम्म भी उसके चपेट में न आ जाए. इसी वजह बाबासाहब ने बुद्ध को लॉर्ड्स नहीं तो बुद्धिमान “ईन्सान” कहा, उनके विचारों को धर्म नही तो “धम्म”, तथा उनके उद्धेश को मानवी दुःख नष्ट करने का मार्ग कहा. बुद्ध धम्म के सामने उन्हें साम्यवाद भारी संकट महसूस हुआ था.
भारत देश आज़ाद होने पर भारतीय जनता की स्थिति कैसी सुखी और शांतिमय रहेगी? इस विषय पर गंभीर अध्ययन और चिंतन कर बाबासाहब आंबेडकर ने एक “संविधान का प्रारूप” तैयार किया, जो देश में “एक व्यक्ति, एक मत’ के साथ ‘एक व्यक्ति, एक मत, एक मूल्य” भी देने में सक्षम हो. जो ‘शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन’ द्वारा तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद तथा पंतप्रधान पंडित नेहरु को भेजा गया. पर उस पर कांग्रेसवालों ने कभी चर्चा भी नही की इसलिए बाबासाहब ने उस विषय पर खेद व्यक्त किया था. बाद में सन 1946 में उसी प्रारूप को “स्टेट एंड मॉयनारिटीज” के नाम से प्रकाशित किया गया.
बाबासाहब आंबेडकर के “राज्य समाजवादी” संविधान में राज्य (सरकार) के अधीन :
1-जमीन रहेगी, उसपर सामूहिक भेदभाव के बिना खेती की जाएगी
2- राज्य के अधीन महत्तम उद्योग होंगे जो सरकार चलाएगी, उत्पादन करेगी
3-राज्य स्वयं बिमा कंपनी चलाएगी; राज्य में बिमा शक्ति से लागु होगा. बिमा से आयी क़िस्त को खेती और उद्योग में सरकार खर्च करेगी, खेती पर जो लोग कार्य करेंगे उनको सीमित हिस्सा मिलेगा, उद्योग में कार्य करने वालों को तनखा मिलेगा, बिमा में कार्य करने वालो को कमीशन मिलेगा.
4-राज्य को खेती, उद्योग और बिमा के जरिए जो मुनाफा होगा वह वंचित लोगों के हित सुखों के लिए खर्चा करेगी तथा कुछ हिस्सा देश के सुरक्षा के लिए केंद्र को भेजेगी.
5-व्यक्ति इस राज्य में न कोई जमीन, उद्योग या विमा का मालिक होगा.
6-राज्य सरकार के पास पर्याप्त पूंजी रहेगी जिसके सहारे जो चाहिए वह कार्य आसानी से मर्यादित अवधि में पूरा किया जा सके.
यह राज्य समाजवादी संकल्पना बुद्ध धम्म से प्रेरित है. भिक्खु के पास जैसी सिमित संपत्ति होने पर भी वे अपना जीवन यापन सही ढंग से करते है. क्योंकि समाज उसको भिक्षा देता है, वस्त्र देता है, निवारा देता है, दवा देता है, शिक्षा देता है तथा धम्म सभ्यता को भी सिखाता है. भिक्षु समाज के लिए (सरकारी कर्मचारी के जैसे ही) कार्य करते है. पर भिक्षु समाजपर कभी अपनी तानाशाही नही चलाते. इसलिए भिक्षुओ के जैसी ही व्यक्ति के पास भी सीमित सम्पत्ति चाहिए जो कुछ हद में भिक्षु से थोड़ी अधिक चाहिए. व्यक्ति को मर्यादित संपत्ति चाहिए, अमर्याद नही.
वर्तमान परिद्रश्य में,डा. अम्बेड़कर के बाद दलित राजनीति और दलित आंदोलनों में डा. अम्बेड़कर के सामाजिक विचारधारा की अवहेलना इस कदर की गयी है कि आज दलित आंदोलन पथभ्रष्ट हो चुका है। आज मजदूर वर्ग के नेतृत्व की डा. अम्बेड़कर की अवधारणा महज बौद्धिक विमर्श का विषय बन कर रह गया है। दलित और वामपंथी विचारक मजदूर वर्ग के नेतृत्व के प्रश्न पर चुप्पी साधे हुए है। डा. अम्बेड़कर शायद इसलिए पहले ही कह गए कि मनुष्य नश्वर है, उसी तरह विचार भी नश्वर है। प्रत्येक विचार को प्रचार-प्रसार की जरूरत होती है जैसे किसी पौधे को पानी की, नहीं तो दोनों मुरझा कर मर जाते है।