विश्व व्यापार संगठन और भारत:
सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2: शासन व्यवस्था, संविधान, शासन प्रणाली, सामाजिक न्याय तथा अंतर्राष्ट्रीयसंबंध। |
संदर्भ
ग्रामीण संकट से निपटने की दिशा में, इस वर्ष के केंद्रीय बजट में, वित्त मंत्री द्वारा किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के तहत एक नए समझौते का वादा किया, जो उत्पादन की लागत का 150% होगा। हालाँकि, इससे संभावना जताई जा रही है कि इस नई नीति के कारण विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) से भारत का टकराव बढ़ सकता है।
नई एमएसपी नीति
सरकार द्वारा खरीफ बुवाई के मौसम शुरू होने से ठीक पहले, आने वाले हफ्तों में नई नीति के तहत समर्थन मूल्यों का पहला सेट घोषित करने की उम्मीद है।
दूसरा चरण, अक्टूबर से प्रारंभ होगा और यह सुनिश्चित करेगा कि एमएसपी के तहत 23 अधिसूचित फसलों हेतु किसानों को लाभान्वित करे।ध्यातव्य है कि संबंधित विवरण नीतियों को नीति आयोग द्वारा तैयार किया जा रहा है। दरअसल यह उच्च एमएसपी संभावित रूप से भारतीय कृषि सब्सिडी को उस सीमा तक भंग कर देगा जो डब्ल्यूटीओ को स्वीकार्य लगता है।
अमेरिका का रुख
चीन के बाद, अब अमेरिका ने अपना ध्यान भारत की ओर किया है।
अमेरिका द्वारा यह घोषणा की गई है कि वह भारत को डब्ल्यूटीओ में खींचगा, क्योंकि उसका दावा है कि भारत ने चावल और गेहूँ के लिये बाज़ार मूल्य समर्थन (एमपीएस) की सूचना नहीं दी है।
अमेरिका के मुताबिक, भारत के गेहूँ और चावल हेतु एमपीएस क्रमश: 10% की स्वीकार्य कट ऑफ के खिलाफ उत्पादन के कुल मूल्य का 60% और 70% से अधिक प्रतीत होता है।
अमेरिका ने भारत की निर्यात संवर्धन योजनाओं के खिलाफ मामला भी दर्ज कराया है।
भारत का पक्ष
हालाँकि, भारत जून में पर डब्ल्यूटीओ की समिति में कृषि बैठक के दौरान आधिकारिक तौर पर ज़वाब देने की योजना बना रहा है।
भारत द्वारा कई योजनाओं की पहल जैसे बाज़ार पहुँच पहल (एमएआई), बाजार विकास सहायता (एमडीए) और भारत से व्यापार निर्यात योजना (मीस) मुख्य रूप से बेहतर निर्यात उन्मुख बुनियादी सुविधाओं, क्षमता निर्माण और निर्यात प्रतिस्पर्धा आदि को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किया जाता है।
इसके अलावा वे कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के निर्यातकों की भी सहायता करते हैं, जिससे अप्रत्यक्ष रूप से छोटे और सीमांत किसानों को लाभ होता है।
भारत को इस बात पर आपत्ति है कि विकास की गणना GDP के आँकड़ों के आधार पर की जा रही है, जबकि देश के 60 करोड़ लोग गरीबी की श्रेणी में गिने जाते हैं, जिनकी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है।भारत को अपनी जीडीपी की वृद्धि दर पर गर्व है, लेकिन देश की वास्तविक प्रतिव्यक्ति आय को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता, जो कि बहुत कम है।
कृषि वैज्ञानिक एम.एस.स्वामीनाथन ने कहा है कि भुखमरी को समाप्त करना तथा आम लोगों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना कृषि संबंधी बातचीत का आधार होना ही चाहिये।
WTO द्वारा खाद्य सब्सिडी की गणना के तरीके में संशोधन की मांग भी भारत लगातार करता आ रहा है।इससे पूर्व भी इस मुद्दे पर भारत को विकासशील देशों के समूह जी-33 का भी पूरा समर्थन मिलता रहा है।
विश्व व्यापार संगठन (World trade organization) विश्व व्यापार संगठन विश्व में व्यापार संबंधी अवरोधों को दूर कर वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देने वाला एक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसकी स्थापना 1995 में मारकेश संधि के तहत की गई थी। इसका मुख्यालय जनेवा में है। वर्तमान में विश्व के 165 देश इसके सदस्य हैं। सदस्य देशों का मंत्रिस्तरीय सम्मलेन इसके निर्णयों के लिये सर्वोच्च निकाय है, जिसकी बैठक प्रत्येक दो वर्षों में आयोजित की जाती है। दोहा वार्ता दोहा वार्ता का संबंध 2001 में कतर में आयोजित विश्व व्यापार संगठन के चौथे मंत्रिस्तरीय सम्मलेन से है। इसमें कृषि संबंधी मुद्दों को विकास से जोड़ते हुए विकासशील देशों को छूट देने की बात की गई थी। मुद्दा क्या है? विश्व व्यापार संगठन के दोहा राउंड के तहत विकास को महत्त्व प्रदान करते हुए विकासशील देशों को छूट प्रदान की गई थी। विकसित देश विकास के मुद्दे से बाहर निकल कर आर्थिक हितों पर बल देना चाहते हैं। इसी मुद्दे पर अमेरिका ने अपना विरोध दर्ज़ करते हुए कहा कि विकास को पुनः परिभाषित करने की आवश्यकता है, ताकि कुछ सक्षम देश विकास के नाम पर अपने हितों को साध नहीं पाएँ। यहाँ उनका इशारा भारत तथा चीन जैसे देशों की तरफ था, जो जी.डी.पी. के आधार पर विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के रूप में उभर रहे हैं। अमेरिका का यह आरोप बेबुनियाद है, क्योंकि वर्तमान समय में एक देश के रूप में सर्वाधिक निर्धन तथा कुपोषित लोग भारत में ही निवास करते हैं। अमेरिका द्वारा भारत के खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 का विरोध इस आधार पर किया गया कि इससे खाद्य वस्तुओं की कीमत कम होने के कारण इनके स्वतंत्र व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव पडे़गा। किन्तु, भारत का तर्क यह है कि देश की कुपोषण और भूखमरी से संबंधित समस्या के समाधान के लिये यह अधिनियम अत्यंत आवश्यक है। अमेरिका, यूरोपियन यूनियन और जापान जैसे देशों के द्वारा व्यापार को प्रभावित करने वाली चीन की उन नीतियों का भी विरोध किया गया, जिसमें संसाधनों का क्षमता से अधिक प्रयोग तथा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर बल दिया जाता है। भारत तथा चीन ने विकसित देशों द्वारा दी जाने वाली फार्म सब्सिडी का विरोध किया। इससे खाद्य वस्तुओं के स्वतंत्र व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है । विकसित देशों द्वारा त्वरित ई-कॉमर्स वार्ता को बढ़ावा देने के लिये तथा मत्स्यन के क्षेत्र में सब्सिडी को कम करने पर जोर दिया गया, किन्तु विकासशील देशों के विरोध के कारण ये प्रावधान पारित नहीं हो पाए। 11वें मंत्रिस्तरीय सम्मलेन का आयोजन अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स विकसित तथा विकासशील देशों के हितों के टकराव के कारण ब्यूनस आयर्स (Buenos Aires) में आयोजित विश्व व्यापार संगठन की 11वीं मंत्रिस्तरीय वार्ता बिना किसी समाधान के समाप्त हो गई। खाद्य सुरक्षा तथा विकास से संबंधित अन्य मुद्दों पर ‘पीस क्लॉज़’ (Peace clause ) के तहत यथास्थिति बने रहने के कारण भारत समेत अन्य विकासशील देशों के हित फिलहाल सुरक्षित हैं, किन्तु इन मुद्दों पर कोई स्थायी समाधान नहीं हो पाया है। |
गौरतलब है कि ब्यूनस आयर्स में डब्ल्यूटीओ की 11वीं मंत्रिस्तरीय समिति की बैठक से पूर्व, भारत और चीन ने संयुक्त रूप से डब्ल्यूटीओ को एक पत्र प्रस्तुत किया, जो वैश्विक कृषि व्यापार में विकृतियों को कम करने के लिये डब्ल्यूटीओ के एएमएस से संबंधित था।पेपर में उन सब्सिडी को रेखंकित किया गया जो विकसित देशों ने अपने किसानों को इस दायरे से बाहर जाकर दिया था।छह औद्योगिक राष्ट्र अपनी कृषि सब्सिडी के लिये समग्र एएमएस के हकदार हैं, जिसमें कुल उत्पादन के मूल्य का 10% तक सब्सिडी में शामिल हैं।
इससे उन्हें व्यक्तिगत उत्पादों के लिये सब्सिडी में हेरफेर करने का मौका मिलता है उदाहरण के लिए, अमेरिका और यूरोपीय संघ में उत्पाद-विशिष्ट समर्थन कई फसलों के लिये 50% से अधिक है और अमेरिका में चावल के लिये यह 89% तक पहुँचता है।
दूसरी तरफ, विकासशील देश 10% की उत्पाद-विशिष्ट न्यूनतम सीमा से फँस गए हैं, क्योंकि नियमों के मुताबिक कोई फसल उत्पादन के मूल्य के 10% से अधिक नहीं हो सकती है।
प्रति व्यक्ति आय उस आय को कहा जाता है जब किसी देश के कुल सकल घरेलू उत्पाद को जब उस देश की उस वर्ष की मध्यावधि तिथि (१ जुलाई) की जनसंख्या से विभाजित किया जाता है। यह हमें उस देश के निवासियों को प्राप्त होने वाली औसत आय की मौद्रिक जानकारी देता है। अर्थात यह बताता है की उस देश में उत्पन्न होने वाली धनराशि को यदि बाँटा जाए तो सबके भाग में कितना पहुँचेगा। इसका उपयोग किसी देश के भीतर भी विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों, नगरों, या राज्यों इत्यादि के जीवन स्तर का अनुमान लगाने के लिए भी किया जाता है।
सकल घरेलू उत्पाद (GDP) या जीडीपी या सकल घरेलू आय (GDI), एक अर्थव्यवस्था के आर्थिक प्रदर्शन का एक बुनियादी माप है, यह एक वर्ष में एक राष्ट्र की सीमा के भीतर सभी अंतिम माल और सेवाओ का बाजार मूल्य है GDP (सकल घरेलू उत्पाद) के मापन और मात्र निर्धारण का सबसे आम तरीका है खर्च या व्यय विधि (expenditure method): GDP (सकल घरेलू उत्पाद) = उपभोग + सकल निवेश + सरकारी खर्च + (निर्यात –आयात ), या,
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आगे की राह
हालाँकि, भारत को डब्ल्यूटीओ द्वारा परिभाषित संपूर्ण सब्सिडी की परिभाषा पर सवाल उठाने की ज़रूरत है।अभी यह सवाल प्रासंगिक नहीं होगा कि सरकार विकृत व्यापार से बचने के लिये किसानों को कितना समर्थन प्रदान कर सकती है अथवा नहीं।
इसके अलावा, विकासशील देशों में छोटे किसान और गरीब उपभोक्ता कमोडिटी बाज़ारों में अस्थिर मूल्य गतिविधियों की सबसे अधिक चपेट में हैं। अतः इस मुद्दे पर डब्ल्यूटीओ में जाने से पूर्व विकासशील देशों का समर्थन प्राप्त करना भी उचित होगा।
उल्लेखनीय है कि वर्तमान सब्सिडी की गणना के लिये, डब्ल्यूटीओ आधार वर्ष के रूप में 1986-88 की वैश्विक कीमतों का औसत उपयोग करता है, इसलिए चल रहे एमएसपी और इन संदर्भ मूल्यों के बीच का अंतर बहुत अधिक दिखता है।केंद्र सरकार को डब्ल्यूटीओ सब्सिडी की गणना के तरीके के साथ-साथ समृद्ध देशों द्वारा अपने किसानों का समर्थन करने संबंधित तरीके के विषय में अपना मामला उठाना चाहिए।
यह भी महत्त्वपूर्ण है कि वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने के सरकार के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य में भी यह एक अहम पहल साबित होगा।