ड्रोन नीति (Drone Policy)
सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3 : प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन |
संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
भारतीय विमानन मंत्रलाय ने 27 अगस्त 2018 को ड्रोन पॉलिसी जारी की है. इस नीति में सरकार ने “लाइन ऑफ साइट” ड्रोन को मंजूरी दी है. ड्रोन तकनीकी के वाणिज्यिक उपयोग की मंजूरी 1 दिसम्बर 2018 से दी जाएगी. हालाँकि यह मंजूरी सिर्फ “विजुअल लाइन ऑफ साइट” (जहां तक नजर देख सके) के लिए दी जाएगी. आम तौर पर नजर की पहुंच 450 मीटर तक होती है. मंत्रालय के मुताबिक, हालांकि इस शर्त को बाद में हटाया भी जा सकता है. इस नई ड्रोन पालिसी से कृषि, स्वास्थ्य और आपदा राहत जैसे कार्यों के लिए ड्रोन (मानवरहित विमान) के व्यावसायिक इस्तेमाल का रास्ता खुलेगा.देश में ड्रोन के इस्तेमाल का चलन तेज़ी से बढ़ रहा है, ऐसे में इसे उड़ाने को लेकर तमाम नियमों का इंतज़ार काफी वक्त से हो रहा था। लेकिन अब सरकार ने इसके लिये नए नियमों की घोषणा कर दी है। यह नियमावली 1 दिसबंर से पूरे देश में लागू की जाएगी। केंद्र सरकार ने इसके लिये अनुमति लेने के नए नियमों के साथ ही डिजिटल प्लेटफार्म भी विकसित किया है| सरकार के मुताबिक ड्रोन के इस्तेमाल से रोज़गार बढ़ने के साथ ही आपदा राहत और कृषि के क्षेत्र में मदद मिलेगी। भारत में ड्रोन का चलन जिस तरह बढ़ा है उसे देखते हुए सरकार की यह नई नियमावली बेहद महत्त्वपूर्ण मानी जा रही है। हालाँकि ड्रोन को लेकर हमारे देश में कोई खास नियम नहीं हैं लेकिन दुनिया भर में इसके व्यापक इस्तेमाल को देखते हुए भारत में पहली बार ड्रोन को लेकर नए नियम लागू होने जा रहे हैं|
ड्रोंस को लेकर डीजीसीए ने जारी की नई नियमावली
भारत में ड्रोन का इस्तेमाल सिर्फ कुछ जगहों पर ही हो सकता है और यह तभी संभव होगा जब ड्रोन उपयोगकर्त्ता सभी नियमों का पालन करे| 250 ग्राम से ऊपर वज़न वाला ड्रोन उड़ाते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना होगा|
- रिहायशी इलाकों में बिना अनुमति के ड्रोन नहीं उड़ाया जा सकता|
- एयरपोर्ट या हैलिपैड के 5 किलोमीटर के आस-पास ड्रोन नहीं उड़ाया जा सकता|
- सेंसिटिव जोन या हाईप्रोफाइल सिक्योरिटी वाले इलाके में ड्रोन नहीं उड़ाया जा सकता|
- सरकारी ऑफिस, मिलिट्री स्पॉट, हवाई अड्डों, अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं, तटरेखा, सचिवालय परिसर के पास ड्रोन उड़ाना वर्जित है|
- ड्रोन उड़ाने वाला कम-से-कम 18 साल या उससे ऊपर का होना चाहिये|
- सभी ड्रोन एक लाइसेंस प्लेट के साथ उड़ाए जाएंगे जिनमें ऑपरेटर का नाम और उन्हें कैसे कॉन्टैक्ट करना है ये लिखा हो|
- एक से अधिक अनमैन्ड ऑटोमैटिक वेहिकल (UAV) या ड्रोन एक बार में नहीं उड़ाए जा सकते|
- किसी भी इंटरनेशनल बॉर्डर से 50 किलोमीटर के अंदर ड्रोन नहीं उड़ाया जा सकता|
- समुद्र से 500 मीटर दूर ही ड्रोन उड़ाया जा सकता है|
- विजय चौक, दिल्ली से 5 किलोमीटर के अंदर ड्रोन नहीं उड़ाए जा सकते|
- नेशनल पार्क, पब्लिक स्पॉट, वाइल्डलाइफ सेंचुरी आदि में भी ड्रोन नहीं उड़ाए जा सकते|
ड्रोन की पाँच श्रेणियाँ होंगी
श्रेणी वजन
- नैनो 250 ग्राम से कम
- माइक्रो 250 ग्राम से 2 किलो तक
- स्माल 2 किलो से 25 किलो तक
- मीडियम 25 किलो से 150 किलो तक
- लार्ज 150 किलो से अधिक
एयरस्पेस के तीन ज़ोन होंगे
- रेड ज़ोन उड़ान की अनुमति नहीं
- येलो ज़ोन नियंत्रित हवाई क्षेत्र - उड़ान से पहले अनुमति लेना आवश्यक
- ग्रीन जोन अनियंत्रित हवाई क्षेत्र - स्वचालित अनुमति
- नो ड्रोन ज़ोन कुछ विशेष जगहों पर ड्रोन संचालन की अनुमति नहीं
ड्रोन लाइसेंस प्राप्ति के नियम
- ड्रोन का लाइसेंस लेने के लिये आवेदक की उम्र 18 साल होनी चाहिये। दसवीं क्लास तक पढ़ाई की हो और ड्रोन से संबंधित बुनियादी जानकारी होना भी ज़रूरी है|
- ड्रोन उड़ाने के लिये डीजीसीए से इंपोर्ट क्लीयरेंस लेना होगा। इसके अलावा यूआईएन और यूएओपी से भी ड्रोन उड़ाने की इज़ाज़त ली जा सकेगी, वही इसे रिन्यूअल भी करेगा।
- प्रतिबंधित क्षेत्र में ड्रोन उड़ाने की अनुमति रक्षा मंत्रालय देगा। इसके लिये क्लीयरेंस गृह मंत्रालय से मिलेगा।
खाद्य सामग्री की आपूर्ति के लिये नहीं होगी अनुमति
- केंद्र सरकार ने कहा है कि नए नियमों के तहत कृषि, स्वास्थ्य, आपदा राहत जैसे क्षेत्रों में ड्रोन का वाणिज्यिक इस्तेमाल आगामी 1 दिसंबर से प्रभावी होगा| लेकिन खाद्य सामग्री समेत अन्य वस्तुओं की आपूर्ति के लिये अनुमति फ़िलहाल नहीं दी जाएगी|
नियमों के उल्लंघन पर सज़ा का प्रावधान
- इसके अलावा शादियों और पार्टियों में भी 60 मीटर से ऊपर ड्रोन नहीं उड़ाया जा सकता। अगर किसी भी नियम का उल्लंघन होता है तो दंड और ज़ुर्माना दोनों का प्रावधान है।
- नियामक प्रावधानों के उल्लंघन के मामले में UIN/UAOP का निलंबन या रद्दीकरण|
- विमान अधिनियम 1934 या विमान नियम या किसी भी सांविधिक प्रावधान के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत वैधानिक कार्यवाही|
- आईपीसी की धारा 287, 336, 337, 338 के तहत दंड या ज़ुर्माना|
ड्रोन का इस्तेमाल कहाँ-कहाँ हो रहा है?
ड्रोन का इस्तेमाल बीते कुछ सालों में बहुत तेज़ी से बढ़ा है| इसका इस्तेमाल टोही विमान, नागरिक सुरक्षा से लेकर ई-कॉमर्स के बाज़ार तक अपनी उपयोगिता साबित कर रहा है| ड्रोन का इस्तेमाल निम्नलिखित क्षेत्रों में किया जा रहा है-
- राहत और बचाव अभियान की गतिविधियों की निगरानी
♦ अप्रैल 2015 में नेपाल में आए विनाशकारी भूकंप से पूरी दुनिया हिल गई| इस भूकंप की भयावहता की तस्वीरें ड्रोन से ली गई थीं|
♦ भारत में प्राकृतिक आपदाएँ हर साल लाखों लोगों की जान लेती हैं| भूकंप के नज़रिये से पहाड़ी इलाके तथा मैदानी इलाकों में कहर बरपाती बाढ़ या तूफानों के साए में रह रहे तटीय इलाकों में आपदा की स्थिति में राहत और बचाव के लिये ये ड्रोन बेहतर साबित हो सकते हैं|
♦ कई मौकों पर ड्रोन के इस्तेमाल से राहत एजेंसियों को सहूलियतें मिली हैं|
♦ हाल ही में केरल में आई विनाशकारी बाढ़ की भयावहता की स्थिति जानने के लिये भी ड्रोन का इस्तेमाल किया गया| - कृषि में उपयोग
♦ ड्रोन का सबसे अधिक और क्रांतिकारी इस्तेमाल खेती में हो रहा है| दुनिया के कई देशों में किसान ड्रोन के ज़रिये फसलों की निगरानी से लेकर दवा का छिडकाव तक कर रहे हैं|
♦ भारत के कई इलाकों में ड्रोन के उपयोग किये जाने से खेती फायदेमंद साबित हो रही है| - हिंसा के दौरान ड्रोन कैमरे का इस्तेमाल
♦ ड्रोन का बड़े स्तर पर इस्तेमाल कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिये भी हो रहा है| सहारनपुर में हुई सांप्रदायिक हिंसा के दौरान भी उत्तर प्रदेश पुलिस ने ड्रोन कैमरों का इस्तेमाल किया था जिससे पुलिस को हालात पर नज़र रखने में काफी मदद मिली थी|
♦ इसके अलावा हैदराबाद पुलिस भी शहर में महिलाओं की सुरक्षा के लिये ड्रोन के इस्तेमाल करने की तैयारी कर रही है|
♦ वाहनों के बोझ तले कराह रही देश की राजधानी दिल्ली में ट्रैफिक नियंत्रण करने में भी इसकी सहायता ली जा रही है। - ड्रोन सर्विलांस के ज़रिये असामाजिक तत्त्वों पर नज़र
♦ हैदराबाद पुलिस ने ड्रोन सर्विलांस के ज़रिये असामाजिक तत्त्वों पर नज़र रखने की कवायद शुरू कर दी है|
♦ तेलंगाना के करीमनगर में नदियों और तालाबों के आस-पास खुले में शौच करने वालों पर नज़र रखने के लिये ड्रोन का प्रयोग शुरू हुआ है यानी स्वच्छ भारत अभियान में ड्रोन का इस्तेमाल हो रहा है|
♦ आंतरिक सुरक्षा और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिये देश के बड़े महानगरों में छतों की तलाशी और बड़े जुलूसों पर निगाह रखने के लिये ड्रोन का इस्तेमाल किया जा रहा है। - रेल क्षमता और सुरक्षा बढ़ाने में ड्रोन का इस्तेमाल
♦ हाल ही में भारतीय रेल की सुरक्षा और क्षमता बढ़ाने के लिये रेलवे ने बड़ा फैसला लिया है| इंफ्रास्ट्रक्चर, प्रोजेक्ट मॉनिटरिंग और ट्रैक मेंटेनेंस की निगरानी और चेकिंग के लिये रेलवे ने बड़े पैमाने पर ड्रोन कैमरों के इस्तेमाल करने का फैसला लिया है|
♦ इसके साथ ही राहत और बचाव अभियान की गतिविधियों की निगरानी और महत्त्वपूर्ण कार्यों की प्रगति जानने के लिये रेलवे द्वारा ड्रोन तैनात किये जाएंगे|
♦ रलवे जल्द ही अपने सभी डिवीज़न और जोन में ड्रोन कैमरों का इस्तेमाल शुरू करने वाला है|
♦ जबलपुर मुख्यालय में सबसे पहले ड्रोन कैमरों का इस्तेमाल शुरू किया गया, जबकि जबलपुर के दूसरे इलाकों भोपाल और कोटा डिवीज़न में भी ड्रोन कैमरों का ट्रायल किया गया है| - प्रोफेशनल फोटोग्राफी और हवाई मैपिंग में उपयोग
♦ सर्वेक्षण, प्रोफेशनल फोटोग्राफी और हवाई मैपिंग में ड्रोन का इस्तेमाल हो रहा है|
♦ DGCA की ओर से जारी नई ड्रोन पालिसी से ड्रोन के प्रोफेशनल इस्तेमाल में तेज़ी आएगी| कई ई-कॉमर्स कंपनियों ने इसकी तैयारी भी शुरू कर दी है| - सामानों की होम डिलीवरी
♦ हाल ही में गूगल और अमेजन ने ड्रोन के माध्यम से सामानों की होम डिलीवरी करने की तैयारी की है| अमेजन ने पिछले साल ही भारत में ड्रोन विमानों की तैनाती के लिये पेटेंट भी फाइल किया है|
♦ हालाँकि नई ड्रोन नीति के मुताबिक अभी इन कंपनियों को ड्रोन के ज़रिये होम डिलीवरी में थोड़ा और इंतज़ार करना होगा| - डॉक्यूमेंटेशन में आसानी
♦ इसके अलावा किसी भी चीज़ का डॉक्यूमेंटेशन करते समय पारंपरिक लेज़र स्कैनिंग में रिजोल्यूशन की सीमा की समस्या सामने आती है, जबकि ड्रोन इस कमी को पूरा करता है।
♦ ड्रोन सर्वेक्षण और संरक्षण कार्य के लिये अन्य आँकड़ों का चित्र भी लेता है और इन कार्यों के लिये ड्रोन के उपयोग का दूसरा बड़ा लाभ लागत एवं समय की बचत है।
♦ आमतौर पर एक हेक्टेयर क्षेत्र का सर्वेक्षण करने के लिये ड्रोन सेवा प्रदाताओं द्वारा 1500-2000 रुपए लिये जाते हैं, जबकि लेज़र तकनीक के उपयोग से उतने ही कार्य की लागत कम-से-कम तीन से चार गुना अधिक होती है।
♦ इसके अलावा, जिस कार्य में पहले 6-8 महीने लगते थे, उसी कार्य को ड्रोन के माध्यम से एक सप्ताह से कम समय में पूरा किया जा सकता है।
ड्रोन का सैन्य इस्तेमाल
- अमेरिकी सेना के ड्रोन पाकिस्तान के सीमांत कबायली इलाकों में तालिबान लड़ाकों की खोज में जुटे हैं|
- अफगानिस्तान में तालिबान को उखाड़ फेकने में ये ड्रोन बेहद कारगर साबित हुए| दुर्गम पहाड़ी और कबायली इलाकों में जहाँ किसी अंजान आदमी का पहुँचना लगभग नामुमकिन होता है वहाँ बंकरों में छिपे आतंकियों का पता लगाने और उन्हें ख़त्म करने में ड्रोन ने नाटो सैनिकों की काफी मदद की तभी से सैन्य अभियानों में ड्रोन के इस्तेमाल का पता पूरी दुनिया को लगा|
- ड्रोन के सामरिक रणनीतिक महत्त्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान ने अमेरिकी ड्रोन को अपनी संप्रभुता को खतरा तक बता दिया था|
- सीमा के आर-पार कुछ इसी तरह की चुनौतियों का सामना भारत भी कर रहा है यही वज़ह है कि सेना में ड्रोन और उनसे जुड़ी तकनीक की ज़रूरत बढ़ती जा रही है|
- रक्षा मंत्रालय की टेक्नोलॉजी पर्सपेक्टिव एंड कैपिबिलिटी रोडमैप, 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक आने वाले एक दशक में देश की सेना को 400 ड्रोन की ज़रूरत होगी|
- रक्षा मंत्रालय की इस रिपोर्ट में जो रोडमैप जारी किया गया है उसके मुताबिक ड्रोन के अलावा सेना और नेवी को 30 से ज़्यादा ऐसे लड़ाकू एयरक्राफ्ट की ज़रूरत है जिन्हें बिना पायलट के उड़ाया जा सके|
- रोडमैप में कहा गया है कि सैन्य बलों को कम और लंबी दूरी के लड़ाकू आरपीए यानी रिमोट पायलट एयरक्राफ्ट सिस्टम की ज़रूरत है जिसमें 30,000 फीट की ऊँचाई तक उड़ान भरने की क्षमता वाले रिमोट पायलट एयरक्राफ्ट सिस्टम हो साथ ही ऐसे विमानों से 24 घंटे संपर्क साधना भी मुमकिन हो|
- इसके अलावा, ड्रोन के पास ऐसी क्षमता होनी चाहिये कि वह ज़मीन और समुद्र से 20 किलोमीटर की दूरी तक दुश्मनों पर निशाना साध सके|
- सीमा के दोनों तरफ होने वाली आतंकी गतिविधियों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने डीआरडीओ को रुस्तम सीरीज़ के मानव रहित विमान बनाने की मंज़ूरी दी|
देश की सीमाओं की निगरानी के लिये रुस्तम-2
हाल ही में स्वदेश निर्मित ड्रोन रुस्तम-2 का सफल परीक्षण किया गया। इसके प्रथम संस्करण रुस्तम-1 का सफल परीक्षण नवंबर 2009 में हुआ था। भारतीय सेना के आग्रह पर इसका विकास DRDO की अनुषंगी इकाई वैमानिकी विकास प्रतिष्ठान (Aeronautical Development Establishment-ADE) ने किया है, जिसमें भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स भी शामिल हैं। 1- रुस्तम-2 में उड़ान भरने और लैंडिंग के लिये स्वचालित प्रणाली है तथा यह विश्व के समकालीन ड्रोन विमानों की तुलना में कहीं बेहतर है। इस विमान में अन्य महत्त्वपूर्ण उपकरणों के अलावा सिंथेटिक अपर्चर राडार, मेरीटाइम पेट्रोल राडार व टक्कर-रोधी प्रणाली भी है। 2- यह दुश्मनों के इलाके की टोह लेने से लेकर लक्ष्य की पहचान करने और उसे भेदने में सक्षम है। 3- रुस्तम-2 के एयरफ्रेम का वज़न वर्ष 2015 के अंत तक 2400 किलोग्राम था जिसे घटाकर 1700 करने की चुनौती है। यह कम ऊँचाई पर उड़ते हुए दुश्मन को निशाना बना सकता है। 4- विमान के पंख 20 मीटर के हैं और अन्य विमानों के विपरीत इसे उड़ान भरने के लिये केवल हवाई पट्टी की ज़रूरत होगी। यह 24-30 घंटों की लगातार उड़ान भर सकता है। 5- यह 500 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ सकता है और दुश्मन की नज़र में भी नहीं आता। यह टोही व निगरानी क्षमता के साथ-साथ लक्ष्य पर सटीक मार करने में भी सक्षम है और इसकी रेंज करीब 250 किलोमीटर है। 6- सिंथेटिक अपर्चर राडार होने के कारण यह बादलों के पार भी देख सकता है और 30 हज़ार फीट की ऊँचाई पर आसानी से उड़ान भर सकता है। यूएवी में सेंसर फ्यूजन होता है जो विभिन्न सेंसरों की जानकारी एकत्र करता है। 7-फिलहाल भारतीय सेना के पास 200 से अधिक बेहद उन्नत ड्रोन हैं, जो अमेरिका और इज़राइल से खरीदे गए हैं। विश्व में अमेरिका और इज़राइल ड्रोन तकनीक के विशेषज्ञ के तौर पर जाने जाते हैं। |
भारत को हाईटेक टोही विमानों की ज़रूरत
- भारत को साइबर वार और स्पेस वार के इस दौर में हाईटेक टोही विमानों की सख्त ज़रूरत है जो बाहरी और आतंरिक सुरक्षा के साथ-साथ हर तरह से दुश्मनों की हरकत पर पैनी नज़र रख सके|
- इससे पहले सरकार ने सेना की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए इज़राइल से भी ड्रोन खरीदे हैं| एक अनुमान के मुताबिक मौजूदा समय में सेना के पास करीब 200 ड्रोन हैं|
क्या होते हैं ड्रोन? § मानव रहित विमानों (Unmanned Aerial Vehicle-UAV) को ड्रोन कहा जाता है। यानी रिमोट से संचालित होने वाला छोटा विमान। § वैसे यह विमान जैसा होते हुए भी विमान नहीं है, बल्कि एक ऐसा रोबोट है जो उड़ सकता है। प्रायः बैटरी के चार्ज होने पर चार पंखों से लैस ड्रोन लंबी उड़ान भर सकते हैं। § इन्हें एक रिमोट या विशेषकर इसी के लिये बनाए गए कंट्रोल रूम से उड़ाया जाता है। § ड्रोन का हिंदी अर्थ है नर मधुमक्खी और उड़ने के कारण ही इसे यह नाम मिला है। यह बिल्कुल मधुमक्खी की तरह उड़ता है और एक जगह पर स्थिर रहकर मंडरा भी सकता है। § ड्रोन अपने आकार, दायरे, स्थिरता और भार उठाने की क्षमता के आधार पर कई प्रकार के होते हैं। इनमें आमतौर पर स्थिर पंख, रोटर रहते हैं और ये बैटरी से ऊर्जा प्राप्त करते हैं। § जीपीएस सिस्टम के ज़रिये काम करने वाले अलग-अलग ड्रोन की कार्यक्षमता अलग-अलग होती है। § सामान्य तौर पर निगरानी के लिये इस्तेमाल किये जाने वाले ड्रोन की रेंज फिलहाल 100 किमी. तक है। § एक बार बैटरी चार्ज होने पर यह काफी ऊँचाई पर 100 किमी. प्रति घंटा की गति से उड़ सकता है। इसकी एक बैटरी लगभग डेढ़ घंटे तक चलती है। § मानव रहित विमान (Unmanned Aerial Vihicle-UAV) यानी हवा में उड़ान भरने वाली मशीन जिसे हम रिमोट या मोबाइल के ज़रिये कंट्रोल कर सकते हैं| कुछ लोग इसे यांत्रिक पक्षी भी कहते हैं| |
- हमारे आसमान में जितने ड्रोन उड़ान भर रहे हैं इसे लेकर कोई निश्चित आँकड़ा नहीं है लेकिन सामान डिलीवर करने से लेकर शहरी परिवहन तक और निगरानी से लेकर कृषि कार्यों तक में ड्रोन की महत्त्वपूर्ण भूमिका है|
- यह कुछ-कुछ उस खिलौना विमान और हेलीकाप्टर जैसा ही है जिसे रेडियो रिमोट की सहायता से उड़ाया जा सकता है| हालाँकि यह उन रिमोट संचालित खिलौनों से इसलिये बेहतर है क्योंकि यह एंड्राइड मोबाइल से भी संचालित हो सकता है और न सिर्फ लंबे वक्त तक हवा में उड़ सकता है बल्कि लंबी दूरी भी तय कर सकता है|
ड्रोन या यूएवी के विकास की कहानी
- पहला ड्रोन कब बना इसे लेकर कोई निश्चित दावा नहीं किया जा सकता लेकिन पहला मानव रहित विमान बनाने की कोशिशें पहले विश्वयुद्ध के दौरान शुरू हुई|
- 1918 में अमेरिकी सेना ने हवाई तारपीडो का निर्माण शुरू किया| कटेरिंग बैग नाम के इस यंत्र के कुछ सफल परीक्षण हुए लेकिन इसका पूर्ण विकास होने से पहले ही विश्वयुद्ध ख़त्म हो गया| हालाँकि इसके बाद फिर से मानव रहित यंत्र उड़ाने पर परीक्षण जारी रहे|
- 1935 में यूनाइटेड किंगडम की रॉयल एयरफोर्स ने ‘द क्वीन बी’ नाम का रेडियो तरंगों से संचालित और निर्देशित पायलट रहित विमान तैयार किया| इसके लिये पहली बार ड्रोन शब्द का इस्तेमाल हुआ|
- जर्मनी के पिनुमुन आर्मी रिसर्च सेंटर ने 1942 में वी-1 फ्लाइंग बॉक्स का परीक्षण किया| इस दौरान अमेरिकी सेना ने भी ड्रोन को निशाना साधने और प्रशिक्षण के लिये इस्तेमाल करना शुरू किया| अमेरिका के पी-70 फ्लाइंग पोटेस्ट नाम के ड्रोन ने 6 अगस्त, 1946 को मुरोक आर्मी एयर फील्ड से उड़ान भरी|
- अमेरिका ने वियतनाम युद्ध के दौरान बड़ी संख्या में UAV तैनात किये| इस दौरान ड्रोन का इस्तेमाल पर्चे गिराने और टोही गतिविधियों के लिये हुआ|
- हालाँकि पहली बार किसी को निशाना बनाने के लिये ड्रोन का इस्तेमाल फरवरी 2002 में हुआ|
- 4 फरवरी, 2002 को सीआईए ने अफगानिस्तान के पकटिया प्रान्त के खोस्त कस्बे में ओसामा बिन लादेन को निशाना बनाने के लिये ड्रोन का इस्तेमाल किया था| हालाँकि जिस जगह को निशाना बनाया गया ओसामा वहाँ नहीं था|
- अफगानिस्तान के आकाश में अमेरिकी ड्रोन इससे पहले भी उड़ान भर रहे थे| इसके बाद से दुनिया भर में अमेरिकी ड्रोन के ज़रिये निगरानी के कार्यक्रम चलाए गए|
- इसी दौरान इज़रायल और ईरान, दोनों देशों में सैन्य और जासूसी ड्रोन का विकास किया गया| भारत में DRDO और हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड कई श्रेणी के ड्रोन का विकास कर रहे हैं|
निष्कर्ष: देश में ड्रोन के इस्तेमाल का चलन तेज़ी से बढ़ रहा है ऐसे में इसे उड़ाने को लेकर तमाम नियमों का इंतज़ार काफी समय से हो रहा था लेकिन अब सरकार ने इसके लिये नए नियमों की घोषणा कर दी है| यह नियमावली 1 दिसंबर से पूरे देश में लागू हो जाएगी| केंद्र सरकार ने इसके लिये अनुमति लेने के नए नियमों के साथ ही डिजिटल प्लेटफार्म भी विकसित किया है| नागर विमानन मंत्रालय के मुताबिक ड्रोन एविएशन सेंटर एक नई क्रांति लेकर आया है और इसके बेहतर इस्तेमाल से कई समस्याओं से मुकाबला करने में आसानी होगी|
आज ड्रोन को उड्डयन उद्योग का नया अध्याय कहा जा रहा है, जहाँ रोज़गार और नागरिक उद्देश्यों के लिये इसके उपयोग की अपार संभावनाएँ मौजूद हैं। यानी अपनी Eye in the Sky वाली छवि से कहीं आगे निकल आया है ड्रोन। लेकिन ड्रोन के इस्तेमाल को लेकर सावधानी बरतना बेहद ज़रूरी है, अन्यथा इसके दुरुपयोग की पर्याप्त संभावनाएँ हैं। अंतर्राष्ट्रीय वायु परिवहन एसोसिएशन ने इन्हें वायु क्षेत्र के लिये खतरा बताते हुए इससे जुड़ी सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिये व्यापक विचार-विमर्श की सलाह दी है।