बिम्सटेक 2018

बिम्सटेक 2018

सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2: शासन व्यवस्था, संविधान, शासन प्रणाली, सामाजिक न्याय तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध।
(खंड- 18 : द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह तथा भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार)

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि

बिम्सटेक का चौथा शिखर सम्मेलन नेपाल की राजधानी काठमांडू में संपन्न हुआ। इस सम्मेलन में सदस्य देशों के बीच कई महत्त्वपूर्ण बातों पर चर्चा हुई और उन पर सहमति बनी। बिम्सटेक देशों के नेताओं ने बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में शांति, समृद्धि और सतत् विकास के लिये सार्थक सहयोग और एकजुटता की प्रतिबद्धता दोहराई है। साथ ही, बिम्सटेक को गतिशील, प्रभावी संगठन बनाने पर ज़ोर दिया गया। सार्क और ब्रिक्स जैसे संगठनों के अलावा बिम्सटेक देशों का संगठन भी भारत के लिये बेहद महत्त्वपूर्ण है। बिम्सटेक की स्थापना 1997 में हुई थी| इसमें भारत के अलावा नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार, भूटान और थाईलैंड शामिल हैं| दुनिया की 22 फीसदी आबादी बिम्सटेक देशों में रहती है| साथ ही बिम्सटेक देशों की कुल जीडीपी 2.7 ट्रिलियन डॉलर है| बिम्सटेक देश आर्थिक और रणनीतिक रूप में काफी अहम हैं|

बिम्सटेक का काठमांडू घोषणा पत्र 

  • नेपाल की राजधानी काठमांडू में बिम्सटेक सम्मेलन के समापन पर नेपाल के प्रधानमंत्री के. पी. शर्मा ओली ने काठमांडू घोषणापत्र का मसौदा पेश किया|
  • बिम्सटेक देशों के नेताओं ने बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में शांति, समृद्धि और सतत् विकास के लिये सार्थक सहयोग और एकजुटता की प्रतिबद्धता दोहराई है| साथ ही बिम्सटेक को गतिशील, प्रगतिशील और भावी संगठन बनाने पर ज़ोर दिया गया|
  • यह सम्मेलन कई मायनों में अहम रहा| इसमें भविष्य के सहयोग की रूपरेखा बताई गई है| बिम्सटेक के सदस्य देशों के बीच बिजली ग्रिड को जोड़ने के लिये समझौता भी हुआ| इससे सदस्य देश आपस में बिजली की खरीद और बिक्री कर सकेंगे|
  • नेपाल के प्रधानमंत्री ने कहा कि बिम्सटेक देशों ने संगठन में नई जान फूँकने और व्यापार, कनेक्टिविटी, पर्यटन जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने का फैसला किया है|
  • चौथे बिम्सटेक शिखर सम्मेलन की शुरुआत 30 अगस्त, 2018 को हुई| उद्घाटन सत्र में सदस्य देशों के बीच कनेक्टिविटी, व्यापार, डिजिटल और जनता के बीच जुड़ाव जैसे मुद्दों पर गहन विचार-विमर्श किया गया|
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उद्घाटन भाषण में इन मुद्दों पर भारत की प्रतिबद्धता जताई| उन्होंने कहा कि बिम्सटेक के सदस्य देशों के बीच हर तरह की कनेक्टिविटी बढाई जानी चाहिये|
  • प्रधानमंत्री ने बिम्सटेक देशों के बीच कई तरह की नई पहलों का खाका भी पेश किया| इसमें सदस्य देशों के बीच इस साल के आखिर में स्टार्ट अप सम्मेलन, अक्टूबर में भारत-मोबाइल कान्ग्रेस के दौरान बिम्सटेक देशों का मंत्रिस्तरीय सम्मेलन, विश्व विद्यालयों द्वारा आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में सहयोग के लिये अभ्यास, नालंदा विश्वविद्यालय में सालाना 30 स्कालरशिप, एडवांस मेडिसिन में 12 रिसर्च फेलोशिप, विभिन्न क्षेत्रों में 100 इंडियन टेक्निकल एंड इकोनामिक प्रोग्राम, बिम्सटेक देशों के राजनयिकों के लिये विशेष पाठ्यक्रम और बिम्सटेक देशों की महिला सांसदों का फोरम शामिल है|
  • प्रधानमंत्री ने आतंकवाद, मादक द्रव्यों की तस्करी जैसी समस्याओं से एकजुट होकर लड़ने का आह्वान किया|
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नालंदा विश्वविद्यालय में बंगाल की खाड़ी क्षेत्र के अध्ययन के लिये एक सेंटर बनाने की घोषणा की| उन्होंने कहा कि अगस्त 2020 में भारत अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन का आयोजन करेगा| उन्होंने इस सम्मेलन में बिम्सटेक के सभी नेताओं को विशिष्ट अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया|
  • प्रधानमंत्री ने कहा कि चौथा बिम्सटेक शिखर सम्मेलन लोगों की अपेक्षाओं को पूरा करने का सुनहरा अवसर है|
  • उद्घाटन सत्र में नेपाल के प्रधानमंत्री ने भी आतंकवाद के हर रूप की आलोचना की और व्यापार के मामले में सदस्य देशों को सहयोग करने का आग्रह किया|

बिम्सटेक का महत्त्व 

  • बिम्सटेक यानी बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टीसेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनामिक कोऑपरेशन (Bay of Bengal Initiative for Multisectoral Cooperation-BIMSTEC) दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों का एक अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग संगठन है जिसकी स्थापना 6 जून, 1997 को बैंकाक घोषणापत्र से हुई थी|
  • आर्थिक औत तकनीकी सहयोग के लिये बनाए गए इस संगठन में भारत समेत नेपाल, भूटान, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्याँमार और थाईलैंड शामिल हैं|
  • सात देशों का यह संगठन मूल रूप से एक सहयोगात्मक संगठन है जो व्यापार, ऊर्जा, पर्यटन, मत्स्यपालन, परिवहन और प्रौद्योगिकी को आधार बनाकर शुरू किया गया था लेकिन बाद में इसमें कृषि, गरीबी उन्मूलन, आतंकवाद, संस्कृति, जनसंपर्क, सार्वजनिक स्वास्थ्य तथा पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन को भी शामिल किया गया|
  • बिम्सटेक का मुख्यालय ढाका में बनाया गया है| बिम्सटेक के महत्त्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दुनिया की लगभग 22 फीसदी आबादी बंगाल की खाड़ी के आस-पास स्थित इन सात देशों में रहती है जिनका संयुक्त जीडीपी 7 ट्रिलियन डॉलर के बराबर है|
  • इन सभी देशों ने 2012 से 2016 के बीच अपनी औसत आर्थिक वार्षिक वृद्धि दर को 4 फीसदी से 7.5 फीसदी के मध्य बनाए रखा|
  • समुद्र के रास्ते पूरी दुनिया में होने वाले व्यापार का एक-चौथाई हिस्सा बंगाल की खाड़ी से होकर गुज़रता है|
  • बिम्सटेक के मुख्य उद्देश्यों में बंगाल की खाड़ी के किनारे दक्षिण एशियाई और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के बीच तकनीकी और आर्थिक सहयोग प्रदान करना शामिल है|

बिम्सटेक भारत के लिये महत्त्वपूर्ण क्यों है?

  • बिम्सटेक के 7 देश बंगाल की खाड़ी के आसपास स्थित हैं जो एकसमान क्षेत्रीय एकता को दर्शाते हैं| भारत ने शुरू से ही इस संगठन को आगे बढ़ाने में सक्रिय भूमिका निभाई है|
  • बिम्सटेक दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के बीच एक सेतु की तरह काम करता है| इस समूह में दो देश दक्षिण-पूर्व एशिया के हैं| म्याँमार और थाईलैंड भारत को दक्षिण-पूर्वी इलाकों से जोड़ने के लिहाज़ से बेहद अहम हैं|
  • इससे भारत के व्यापार को न केवल बढ़ावा मिलेगा बल्कि भारत और म्याँमार के बीच हाईवे प्रोजेक्ट भारत की पूर्व एशिया नीति को मज़बूती प्रदान करेगा|
  • इन सबके अलावा भी भारत के लिये बिम्सटेक काफी महत्त्वपूर्ण है| दरअसल पाकिस्तान की नकारात्मक भूमिका के चलते भारत बिम्सटेक को काफी महत्त्व देता है| इससे भारत की एक्ट ईस्ट पालिसी पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा|
  • बिम्सटेक देशों के बीच मज़बूत संबंध भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास को गति प्रदान कर सकता है| इससे भारत-म्याँमार के बीच परिवहन परियोजना और भारत-म्याँमार-थाईलैंड राजमार्ग परियोजना के विकास में भी तेज़ी आएगी|
  • भारत के अलावा बिम्सटेक के सदस्य देशों के लिये यह संगठन काफी महत्त्वपूर्ण है| बिम्सटेक के ज़रिये बांग्लादेश जहाँ बंगाल की खाड़ी में खुद को मात्र एक छोटे से देश से ज़्यादा महत्त्व के रूप में देखता है वहीँ, श्रीलंका इसे दक्षिण-पूर्व एशिया से जोड़ने के अवसर के रूप में देखता है|
  • इसके ज़रिये श्रीलंका हिन्द महासागर और प्रशांत महासागर में अपनी आर्थिक गतिविधि भी बढ़ाना चाहता है|
  • दूसरी तरफ, नेपाल और भूटान के लिये बिम्सटेक बंगाल की खाड़ी से जुड़ने और अपनी भूमिगत भौगोलिक स्थिति से बचने की उम्मीद को आगे बढ़ाता है|
  • वहीँ म्याँमार और थाईलैंड को इसके ज़रिये बंगाल की खाड़ी से जुड़ने और भारत के साथ व्यापार करने के नए अवसर मिलेंगे| बिम्सटेक के ज़रिये दक्षिण-पूर्व एशिया में चीन के बड़े पैमाने पर घुसपैठ को भी रोकने की कोशिश की जा सकती है|
  • चीन ने भूटान और भारत को छोड़कर लगभग सभी बिम्सटेक देशों में भारी निवेश कर रखा है| ऐसे में हिन्द महासागर तक पहुँचने के लिये बंगाल की खाड़ी तक पहुँच बनाना चीन के लिये ज़रूरी होता जा रहा है| जबकि भारत बंगाल की खाड़ी में अपनी पहुँच और प्रभुत्व को बनाए रखना चाहता है| इस लिहाज़ से भी बिम्सटेक भारत के लिये काफी महत्त्वपूर्ण हो जाता है|
  • बिम्सटेक न केवल दक्षिण व दक्षिण-पूर्वी एशिया को जोड़ता है बल्कि हिमालय और बंगाल की खाड़ी की पारिस्थितिकी को को भी शामिल करता है|
  • एक दूसरे से जुड़े साझा मूल्यों, इतिहासों और जीवन के तरीकों के चलते बिम्सटेक शांति और विकास के लिये एक समान स्थिति का प्रतिनिधित्व करता है|
  • भारत के लिये बिम्सटेक ‘पड़ोसी सबसे पहले और पूर्व की और देखो’ की हमारी विदेश नीति की प्राथमिकताओं को पूरा करने के लिये एक स्वाभाविक मंच है|
  • दुनिया के हर देश में क्षेत्रीय सहयोग एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा रहा है जिसका मकसद क्षेत्रीय विकास, समृद्धि को बढ़ावा देना है|
  • मौजूदा दौर में जो परिस्थितियाँ हैं उससे निपटने के लिये भी हमेशा आदर्श मंच की तलाश होती रही है और यही वज़ह है कि बिम्सटेक का गठन हुआ|

क्या बिम्सटेक सार्क का विकल्प बनकर उभरा है?

  • बिम्सटेक दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच एक पुल की तरह काम करता है| इसके सात में से पाँच देश सार्क के सदस्य हैं जबकि दो आसियान के सदस्य हैं| ऐसे में यह सार्क और आसियान देशों के बीच अंतर क्षेत्रीय सहयोग का भी एक मंच है|
  • बिम्सटेक के गठन के पहले भी आपसी सहयोग को लेकर एशिया में क्षेत्रीय संगठन अस्तित्व में रहे हैं जिसमें सार्क अहम है| 8 सदस्यीय यह संगठन 8 दिसंबर, 1985 को बांग्लादेश की राजधानी ढाका में अस्तित्व में आया था जिसका मकसद आर्थिक समृद्धि, सामाजिक व सांस्कृतिक विकास तथा अन्य क्षेत्रों में आपसी सहयोग की संभावनाएँ तलाश करना है|
  • पिछले वर्षों में बिम्सटेक अपने एजेंडा का मज़बूती से विस्तार कर रहा है| इस समूह ने प्राथमिकता के 14 क्षेत्रों की पहचान की है जिनमें से 4 फोकस क्षेत्रों में भारत लीड कंट्री है जिसमें परिवहन और संचार, पर्यटन, पर्यावरण और आपदा प्रबंधन के साथ आतंकवाद के खिलाफ रणनीति शामिल है|
  • जानकार कहते हैं कि सार्क के मुकाबले भारत बिम्सटेक को ज़्यादा प्रोत्साहन दे रहा है| भारत की बिम्सटेक में सक्रिय भागीदारी से भारत की एक्ट ईस्ट पालिसी पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा| इतना ही नहीं सीमापार आतंकवाद और उग्रवाद से मुकाबला करने के लिये भारत को क्षेत्रीय संगठन की आवश्यकता है जिसमें सदस्य देश आतंकवाद के मुद्दे पर वैचारिक रूप से एकमत हों|
  • सार्क की विफलता और भारत-पाकिस्तान के बीच आपसी तनाव के बीच बिम्सटेक का महत्त्व बढ़ रहा है जो आने वाले समय में क्षेत्रीय सहयोग का बड़ा मंच साबित हो सकता है|

उम्मीदों पर खरा नहीं उतर रहा सार्क

  • दरअसल, पिछले 30 सालों से जिस स्थिति में सार्क रहा है, यह संगठन मात्र औपचारिक बनकर रह गया है|
  • केवल सम्मेलनों का नियमित रूप से आयोजित होना किसी संस्था के जीवित रहने का प्रमाण नहीं है| जहाँ तक सार्क के ठोस कदम उठाने का सवाल है तो पाकिस्तान के असहयोग और राजनीतिक विभाजन की वज़ह से ऐसा नहीं हो पा रहा है|
  • सदस्य देशों में कई बार आतंकवाद के खिलाफ जंग को लेकर भी सहमति बनी है लेकिन आतंकवाद के मुद्दे पर सार्क के सदस्य देश और भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान ने कभी साथ नहीं निभाया और यही सार्क की विफलता की एक बड़ी वज़ह बन गया|
  • कश्मीर के उड़ी में 18 सितंबर, 2016 को हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान में आयोजित सार्क देशों के शिखर बैठक में हिस्सा लेने से ही इनकार कर दिया|
  • जहाँ तक सार्क की उपलब्धियों का सवाल है, ऊर्जा और परिवहन के क्षेत्र में हुए कई समझौते बेहद महत्त्वपूर्ण रहे|

सार्क की असफलता के कारण

भारत-पाकिस्तान संबंधों का बेहतर न हो पाना 

1-भारत और पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक सहमति के अभाव और सैन्य संघर्ष के कारण दक्षिण-पूर्व क्षेत्रीय सहयोग कमज़ोर हुआ है। 

2-विदित हो कि उड़ी आतंकवादी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान में होने वाले 19वें सार्क शिखर सम्मेलन का बहिष्कार किया था। 

3-बांग्लादेश, अफगानिस्तान और भूटान ने भी भारत के पक्ष में अपनी सहमति जताई और अंततः सम्मलेन ही निरस्त हो गया था। 

क्षेत्रीय व्यापार की चिंताजनक स्थिति 

1- सार्क देशों के बीच क्षेत्रीय व्यापार में न के बराबर प्रगति हुई है। विदित हो कि सदस्य देशों के बीच आपसी व्यापार उनके कुल व्यापार का 3.5% ही रहा है। 

2-दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार संघ (South Asian Free Trade Association) के तहत की गई पहलें अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में असफल रही हैं। 

बेहतर कनेक्टिविटी का अभाव 

1- इस क्षेत्र में व्यापार के मोर्चे पर यदि प्रगति नहीं हुई है तो इसका एक बड़ा कारण कनेक्टिविटी का बेहतर न हो पाना है। 

2-बीबीआईएन मोटर वाहन समझौता (BBIN Motor Vehicle Agreement) जैसी उप-क्षेत्रीय पहलें रुकी हुई हैं। 

3-सार्क की वीज़ा प्राप्ति में राहत योजना (SAARC Visa Exemption Scheme) का लाभ केवल कुछ गणमान्य व्यक्तियों को ही प्राप्त है। 

4-सार्क देशों में बुनियादी ढाँचे की खस्ता हालत के कारण भी बेहतर कनेक्टिविटी सुनिश्चित नहीं हो पाई है। 

बिम्सटेक का इतिहास 

  • एक उपक्षेत्रीय आर्थिक सहयोग संगठन के रूप में इसका गठन 6 जून, 1997 को बैंकाक घोषणा के बाद किया गया|
  • शुरू में इस संगठन में बांग्लादेश, भारत, श्रीलंका और थाईलैंड शामिल थे और इसका नाम था BIST-EC यानि बांग्लादेश, भारत, श्रीलंका और थाईलैंड इकॉनोमिक कोऑपरेशन|
  • दिसंबर 1997 में म्याँमार भी इस समूह से जुड़ गया और इसका नाम पड़ा BIMST-EC| इसके बाद फरवरी 2004 में भूटान और नेपाल भी समूह में शामिल हो गए|
  • 31 जुलाई, 2004 में बैंकाक में आयोजित इसके प्रथम सम्मेलन में इसका नाम बिम्सटेक रखने का निर्णय लिया गया जो बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टीसेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनामिक कोऑपरेशन का छोटा रूप है|
  • सदस्य देशों को बिम्सटेक की सदस्यता उनके नाम के प्रथम अक्षर के क्रम के अनुसार मिलती है|
  • बिम्सटेक सदस्य देशों के बीच आपसी बातचीत के लिये उच्च स्तरीय सम्मेलन का आयोजन करता है| शिखर सम्मेलनों, मध्य स्तरीय बैठकों, उच्चाधिकारियों की बैठकों और विशेषज्ञों के बीच वार्ताओं के अलावा बैंकाक स्थित बिम्सटेक वोर्किंग ग्रुप के ज़रिये यह विभिन्न सरकारों के बीच संपर्क स्थापित करने का मंच मुहैया कराता है|
  • बिम्सटेक की अब तक चार शिखर बैठकें और अनेक मंत्री और अधिकारी स्तरीय बैठकें हो चुकी हैं|
    ♦ पहला शिखर सम्मेलन      2004      बैंकाक 
    ♦ दूसरा शिखर सम्मेलन       2008      नई दिल्ली 
    ♦ तीसरा शिखर सम्मेलन      2014      म्याँमार 
    ♦ चौथा शिखर सम्मेलन       2018      काठमांडू 

बिम्सटेक का पहला शिखर सम्मेलन 

  • बैंकाक में आयोजित पहला शिखर सम्मेलन इस उपक्षेत्रीय समूह को एक नई दिशा देने वाली घटना थी| इस सम्मेलन में श्रीलंका के राष्ट्रपति और बांग्लादेश, भूटान, भारत, म्याँमार, नेपाल तथा थाईलैंड के प्रधानमंत्रियों ने भाग लिया था|
  • इस सम्मेलन के बाद ही बिम्सटेक यानि बांग्लादेश, भारत, म्यांमार, श्रीलंका और थाईलैंड तकनीकी और आर्थिक सहयोग का नाम बदलकर बिम्सटेक रखा गया|
  • इस सम्मेलन की घोषणा में व्यापार और निवेश, परिवहन और संचार, पर्यटन, ऊर्जा, मानव संसाधन विकास, कृषि, मत्स्यपालन, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और पीपल-टू-पीपल संपर्क पर खास ज़ोर दिया गया|
  • इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद, अंतर्राष्ट्रीय अपराध का मुकाबला करने के लिये सदस्य देशों के बीच आपसी सहयोग प्रदान करने पर सहमति बनी|

बिम्सटेक का दूसरा शिखर सम्मेलन 

  • 2008 में नई दिल्ली में आयोजित बिम्सटेक के दूसरे शिखर सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा खाद्य सुरक्षा और समुद्री आतंकवाद जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई|
  • भारत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि बिम्सटेक की गतिविधियों की व्यापक समीक्षा होनी चाहिये और साथ ही प्राथमिकताओं को तय करते हुए एक साझा योजना तैयार की जानी चाहिये| 
  • इसके अलावा भारत ने परिवहन संरचना और समुद्री परिवहन मुद्दों पर सभी देशों के बीच संपर्क तथा संबंध बढ़ाने की बात कही| इस सम्मेलन में पर्यटन के क्षेत्र में आपसी संबंध बढ़ाने पर भी बात हुई|

बिम्सटेक का तीसरा शिखर सम्मेलन 

  • बिम्सटेक का तीसरा शिखर सम्मेलन 2014 में म्याँमार की राजधानी नाएप्यीडॉ में हुआ| इस सम्मेलन में बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में क्षेत्रीय सहयोग और एकीकरण को बढ़ावा देने की बात की गई|
  • इसके अलावा सदस्य देशों के बीच सुरक्षा और सामरिक सहयोग के साथ ही ऊर्जा, जन स्वास्थ्य और कृषि समेत अनेक क्षेत्रों में सहयोग की बात हुई| साथ ही बिम्सटेक को शांति, स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा देने के लिये आदर्श मंच के रूप में देखा गया|

बिम्सटेक का चौथा शिखर सम्मेलन 

  • बिम्सटेक का चौथा शिखर सम्मेलन नेपाल की राजधानी काठमांडू में संपन्न हुआ|
  • बिम्सटेक के कार्यकलापों को देखते हुए संगठन के विकास के लिये एडीवी यानी एशिया डेवलपमेंट बैंक इसका पार्टनर बना|
  • बिम्सटेक देशों के बीच भौतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संपर्क बढ़ाने के लिये एडीवी प्रोत्साहन प्रदान करता है और फंड देता है|

बिम्सटेक के समक्ष चुनौतियाँ 

  • इसके समूहीकरण से पूर्व वर्तमान वैश्वीकरण के युग में इसके अंतर्क्रियात्मक सहयोग को गति प्रदान करने की आवश्यकता है।
  • 2014 में ढाका में बिम्सटेक के सचिवालय की स्थापना की गई है लेकिन इसकी पहुँच को सार्क, आसियान जैसे अन्य संगठनों की तरह बढ़ाने की ज़रूरत है।
  • समूह के बीच व्यापार और निवेश को भी बढ़ाने की आवश्यकता है। इसके लिये भारत को चीन और अमेरिका की नीतियों का पालन करना चाहिये जिन्होंने अपने पड़ोसी देशों में व्यापार और निवेश परियोजनाओं पर काफी निवेश किया है।

निष्कर्ष : अगर आप अपने जीवन में सुख शांति और समृद्धि चाहते हैं तो आपका पड़ोसियों के प्रति प्रगतिशील, सहयोगी और साझा विचार होना बेहद ज़रूरी है जो आपके विकास में बाधा न बनकर आपके सहयोग के ज़रिये विकास की इबारत लिखने में सहयोग करे| यही बात देशों पर भी लागू होती है| यही वज़ह है कि भारत हमेशा क्षेत्रीय सहयोग, पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंध और विकास उन्मुख होने की बात करता रहा है| क्षेत्रीय सहयोग और परस्पर विकास को मंच प्रदान करने के लिये सार्क, ब्रिक्स, आसियान और बिम्सटेक जैसे कई मंचों ने आकार लिया|

बिलियन जनसंख्या और दुनिया के बड़े धर्मों की जन्मभूमि दक्षिण एशिया में वह सब कुछ मौजूद है जो वैश्विक परिदृश्य पर अपनी पहचान बनाने वाले एक क्षेत्रीय ताकत बनने के लिये चाहिये| वर्तमान में बिम्सटेक सदस्य देशों के बीच आपसी सहयोग के लिये बेहतर मंच साबित हो सकता है| क्षेत्रीय एकजुटता, सहयोग और सामूहिक विकास को लेकर इसमें काफी संभावनाएँ हैं| भारत की एक्ट ईस्ट पालिसी के संदर्भ में यह खासतौर पर अहम साबित हो सकता है| पाकिस्तान की गैर-मौजूदगी वाला यह संगठन दक्षिण एशिया के देशों को आपसी सहयोग के लिये सार्क से बेहतर और बड़ा वैकल्पिक मंच दे सकता है|

 

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