"एक्वा अल्ता" (Acqua Alta) एड्रियाटिक सागर में असाधारण उच्च ज्वारप्रीलिम्स के लिये
प्रीलिम्स के लिये:
एड्रियाटिक सागर, ज्वार-भाटा, इटली की भौगोलिक स्थिति
मेन्स के लिये:
ज्वार-भाटा की निर्माण-प्रक्रिया
चर्चा में क्यों?
हाल ही में इटली में एड्रियाटिक सागर के तट पर स्थित वेनिस में बाढ़ के कारण जलभराव की समस्या उत्पन्न हो गई।
- यह घटना तट पर आए उच्च ज्वार के कारण घटित मानी जा रही है। हालाँकि कुछ विश्लेषक एवं इटली के राजनीतिज्ञ इसकी व्याख्या जलवायु परिवर्तन के परिणाम के रूप में कर रहे हैं।
प्रमुख बिंदु
- "एक्वा अल्ता" (Acqua Alta)एड्रियाटिक सागर में असाधारण उच्च ज्वार को दिया गया नाम है।
- वेनिस उत्तर-पूर्व इटली में एड्रियाटिक सागर के तट पर स्थित है।
- वेनिस में इस जलभराव का स्तर 87 मीटर (6 फीट से अधिक) के करीब था। वर्ष 1966 में आई बाढ़ के दौरान जल स्तर 1.91 मीटर था। अतः वर्तमान बाढ़ की विभीषिका पिछले 50 वर्षों में सबसे अधिक मानी जा सकती है।
- शहर के सेंट मार्क स्क्वायर में जलभराव एक मीटर था जबकि निकटवर्ती सेंट मार्क बेसिलिका में पिछले 1,200 वर्षों में छठी बार और पिछले 20 वर्षों में चौथी बार इतनी तीव्र बाढ़ आई थी।
- शरद ऋतु के उत्तरार्द्ध में तथा शीत ऋतु में इस क्षेत्र में उच्च ज्वार या जिसको अधिक तीव्रता के कारण एक्वा अल्ता भी कहा जाता है, के घटित होने की दशाएँ उत्पन्न होती हैं।
- पिछले वर्ष अक्तूबर के अंत में उच्च ज्वार के कारण वेनिस की नहरों के जल स्तर में वृद्धि हुई, इससे शहर का लगभग 75 प्रतिशत भाग जलमग्न हो गया था।
वेनिस
- वेनिस उत्तर-पूर्वी इटली का एक शहर औरवेनेटो प्रदेश की राजधानी है।
- यह 118 छोटे द्वीपों का समूह है, जो नहरों द्वारा अलग किये गए हैं और 400 से अधिक पुलों से आबद्ध हैं।
- ये द्वीप विनीशियन लैगून में स्थित हैं, जो एक संलग्न खाड़ी है तथा पो और पियावे नदियों के मुहाने के मध्य स्थित है।
- लैगून और शहर के एक हिस्से को यूनेस्को की विश्व विरासत स्थल के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
- वेनिस को ‘ला डोमिनेंट’, ‘ला सेरेनिसीमा’, ‘एड्रियाटिक की रानी’, ‘पानी का शहर’, ‘पुलों का शहर’, ‘तैरता हुआ शहर’ और ‘नहरों का शहर’ के रूप में जाना जाता है।
1- अनूप अथवा लैगून किसी विस्तृत जलस्रोत जैसे समुद्र या महासागर के किनारे पर बनने वाला एक उथला जल क्षेत्र होता है जो किसी पतली स्थलीय पेटी या अवरोध (रोध, रोधिका, भित्ति आदि) द्वारा सागर से अंशतः अथवा पूर्णतः अलग होता है। इसका निर्माण अधिकांशतः अपतट रोधिका, रोध, प्रवालभित्ति अथवा प्रवाल वलय द्वारा तटवर्ती जल को मुख्य सागर से पृथक् कर देने से होता है। कई बार नदियों के मुहाने पर समुद्र की धाराएँ या पवनें बालू मिट्टी के टीले बनाकर जल के क्षेत्र को समुद्र से अलग कर देती हैं। किसी खाड़ी या लघु निवेशिका के सम्मुख पंक, रेत, बजरी आदि के निक्षेप से जब किसी रोधिका या रोध का निर्माण होता है, सागर तट और रोधिका या रोध के मध्य उथला सागरीय जल बन्द हो जाता है तथा लैगून बनता है। इसी प्रकार तटीय प्रवाल भित्ति, अवरोधक भित्ति अथवा प्रवाल वलय से घिरा समुद्री जल लैगून बनाता है।
2- भारत के पूर्वी तट पर उड़ीसा की चिल्का और नेल्लोर की पुलीकट झीलें, गोदावरी और कृष्ण नदी के डेल्टाओ में कोलेरू झील (आँध्रप्रदेश) इसी प्रकार वनी हैं। भारत के पश्चिमी तट पर केरल राज्य में भी असंख्य अनूप या कयाल पाये जाते हैं। |
MOSE परियोजना: बाढ़ अवरोधक प्रणाली
- वर्ष 1991 के बाद से वेनिस को अत्यधिक महँगे और आवश्यक बाढ़ अवरोधक प्रणाली की ज़रूरत है, जिसे MOSE (प्रायोगिक इलेक्ट्रोमैकेनिकल मॉड्यूल के लिये संक्षिप्त नाम) कहा जाता है, जो 2003 से निर्माणाधीन है किंतु यह अब तक पूर्ण नहीं हो सका है।
- MOSE परियोजना को वर्ष 2014 में पूर्ण किया जाना था बाद में इस अवधि को बढ़ाकर वर्ष 2016 कर दिया गया। किंतु इस परियोजना के वर्ष 2021 से पूर्व पूर्ण होने की संभावना नहीं है। लोगों का मानना है कि यदि यह प्रणाली पूर्ण रूप से सक्रीय होती तो इस प्रकार की बाढ़ से बचा जा सकता था।
- वर्ष 2003 के बाद से इस बाढ़ अवरोधक प्रणाली के निर्माण में लगभग 5 बिलियन यूरो खर्च किया जा चुका है। इस परियोजना में अत्यधिक खर्च एवं देरी का कारण इसके अकुशल प्रशासन एवं भ्रष्टाचार को माना जा रहा है, जिसको लेकर प्रायः इसकी आलोचना होती रही है।
- इस परियोजना की शुरुआती लागत 6 बिलियन यूरो थी, इसकी अत्यधिक बढ़ी हुई लागत इसके महँगा होने की ओर इशारा करती है वहीं दूसरी ओर MOSE परियोजना इस क्षेत्र में स्थित लैगून के लिये पर्यावरणीय संकट को जन्म दे रही है। इसके अतिरिक्त इस परियोजना का निर्माणाधीन हिस्सा भी खराब गुणवत्ता को लेकर चर्चा में बना हुआ है।
वास्तव में, पारिस्थितिक तंत्र और वैश्विक जलवायु परिवर्तन के कारण उच्च और निरंतर शक्तिशाली ज्वारों की स्थिति देखी जा रही है, जिसके लिये MOSE जैसी परियोजना उपयोगी सिद्ध हो सकती है। हालाँकि इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि हम जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये जिस साधन का उपयोग कर रहे हैं वह अपने आप में इस क्षेत्र के लैगून पारिस्थितिकी तंत्र के लिये गंभीर खतरा है।