वित्त अधिनियम 2017

वित्त अधिनियम 2017

प्रीलिम्स के लिये-

वित्त अधिनियम 2017

मेन्स के लिये-

भारतीय संसद की कार्यप्रणाली

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने संशोधित वित्त अधिनियम 2017 (Finance Act 2017) में सरकार को न्यायाधिकरण के सदस्यों की नियुक्ति के संबंध में वर्णित नियमों को रद्द कर, नए मानक तय करने का निर्देश दिया।

प्रमुख बिंदु-

  • उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय में वित्त अधिनियम की धारा 184 की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी जो केंद्र सरकार को न्यायाधिकरणों के सदस्यों की नियुक्ति और सेवा शर्तों से संबंधित नियमों को फ्रेम करने का अधिकार देता है।
  • न्यायालय ने न्यायाधिकरणों के सदस्यों की नियुक्ति से संबंधित केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई नीतियों को रद्द करते हुए नए नियम बनाने का निर्देश दिया है।
  • इसके अलावा न्यायालय ने वित्त अधिनियम, 2017 को धन विधेयक के रूप में पारित करने के मामले को उच्च पीठ के पास भेजने का आदेश दिया।

विवादास्पद बिंदु-

  • इस विधेयक में 40 से अधिक अति महत्त्वपूर्ण संशोधन प्रस्तुत किये गए थे।
  • इन संशोधनों के लिये दोनों सदनों में व्यापक और सार्थक बहस तथा सहमति आवश्यक थी।
  • परंतु अंतिम समय में सरकार ने इस विधेयक को धन विधेयक का दर्जा दिलवा कर बिना बहस के ही पारित करवा दिया।

धन विधेयक Money Bills

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 110 में धन विधेयक की परिभाषा दी गई है। इस अनुच्छेद के अनुसार कोई विधेयक धन विधेयक तब समझा जायेगा यदि उसमें केवल निम्नलिखित सभी या किन्हींविषयों से सम्बंधित प्रावधान हैं-

1.     कर लगाना, कम करना या बढ़ाना, उसको नियमित करना या उसमें कोई परिवर्तन करना हो;

2.     भारत सरकार की ओर से ऋण लेना, नियमित करना या किसी आर्थिक भार में कोई परिवर्तन करना हो;

3.     भारत की संचित निधि या आकस्मिक निधि में कुछ धन डालना हो या निकालना हो;

4.     भारत की संचित निधि में से किसी व्यय के संबंध में धन दिया जाना हो;

5.     भारत की जमा-पूंजी में से किसी भी व्यय के दिए जाने की घोषणा करना या ऐसे व्यय को बढ़ाना हो;

6.     भारत की संचित निधि तथा सार्वजनिक लेखों में धन जमा करने या लेखों की जांच-पड़ताल करनी हो तथा उपरोक्त 1 से 6 में उल्लिखित विषयों से संबंधित विषय।

7.     धन की आय तथा व्यय के प्रति अन्य किसी प्रकार का मामला हो।

यदि यह प्रश्न उठता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं तो उस पर लोकसभा के अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होता है। इस निर्णय को न्यायालय या सदन या राष्ट्रपति अस्वीकार नहीं करता है। जब राष्ट्रपति के पास विधेयक को भेजा जाता है तब उस पर लोकसभा अध्यक्ष द्वारा धन विधेयक लिखा होता है। संसद में धन विधेयक की वैधानिक विधि निम्नलिखित है-

§  धन विधेयक राज्यसभा में पेश नहीं किया जा सकता है।

§  लोकसभा अध्यक्ष द्वारा प्रमाणित धन विधेयक लोकसभा से पास होने के बाद राज्यसभा में भेजा जाता है।

§  राज्यसभा धन विधेयक को न तो अस्वीकार कर संकती है और न ही उसमें कोई संशोधन कर सकती है।

§  वह विधेयक की प्राप्ति की तारीख से 14 दिन के भीतर विधेयक की लोकसभा की लौटा देती है।

§  लोकसभा राज्यसभा की सिफारिशों को स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है। यदि धन विधेयक को राज्यसभा द्वारा 14 दिन  के भीतर लोकसभा को नहीं लौटाया जाता है तो वह दोनों सदनों द्वारा पारित समझा जाता है (अनुच्छेद 109)।

वित्त विधेयक Finance Bill

साधारणतया वित्त विधेयक ऐसे विधेयक की कहते हैं जो आय या व्यय से संबंधित है। वित्त विधेयक में आगामी वित्तीय वर्ष में किसी नए प्रकार के कर लगाने या कर में संशोधन आदि से संबंधित विषय शामिल होते हैं। वित्त विधेयक द्वितीय पठन के बाद प्रवर समिति को भेजा जाता है। प्रवर समिति द्वारा विधेयक की समीक्षा करने के बाद वित्त विधेयक जब दोबारा सदन में पेश किया जाता है, उस समय से वह विधेयक लागू माना जाता है। वित्त विधेयक के प्रस्ताव का विरोध नहीं किया जा सकता और उसे तत्काल मतदान के लिए रखा जाता है। इसे पेश किए जाने के 75 दिनों के अंदर सदन से पारित हो जाना चाहिए तथा उस पर राष्ट्रपति की स्वीकृति भी मिल जानी चाहिए। सामान्यतः यह विधेयक वार्षिक बजट पेश किये जाने के तत्काल बाद लोकसभा में पेश किया जाता है।

धन विधेयक तथा वित्त विधेयक में अंतर:

1.     कोई विधेयक धन विधेयक तभी माना जायेगा जब वह संविधान के अनुच्छेद 110 की पूर्ति करता हो अर्थात् अनुच्छेद में वर्णित विषयों से संबंधित हो जबकि वित्त विधेयक आगामी वित्त वर्ष में नये कर या कर में संशोधन से सम्बंधित होता है।

2.     धन विधेयक पूरी वैधानिक विधि से गुजरने के बाद लागू होता है, जबकि वित्त विधेयक संसद में पेश होते ही लागू हो जाता है।

3.     कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं-लोकसभा अध्यक्ष का निर्णय अंतिम माना जाता है। साथ ही धन विधेयक राज्यसभा में पेश नहीं किया जा सकता है, जबकि वित्त विधेयक को अस्वीकृत या संशोधित करने का अधिकार राज्यसभा को प्राप्त है।

4.     सभी धन विधेयक वित्त विधेयक होते हैं,परंतु सभी वित्त विधेयक धन विधेयक नहीं होते|

5.     अध्यक्ष द्वारा प्रमाणित नहीं किया जाने वाला वित्त विधेयक दो प्रकार का होता है जिसका उल्लेख अनुच्छेद 117 में किया गया है-

§  ऐसे विधेयक जिनमें धन विधेयक के लिए अनुच्छेद 110 में वर्णित किसी भी मामले के लिए प्रावधान किए जाते हैं; परंतु केवल उन्हीं मामलों के लिए ही प्रावधान नहीं किए जाते बल्कि साधारण विधेयक जैसा भी कोई मामला हो।

§  धन विधेयक जिसमें भारत की संचित निधि के व्यय संबंधी प्रावधान हों।

वित्त पर संसदीय नियंत्रण

 

भारत की संचित निधि

संविधान के अनुच्छेद 266(1) के अनुसार सरकार को मिलने वाली सभी राजस्वों, जैसे- सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क, आयकर, सम्पदा शुल्क, अन्य कर एवं शुल्क और सरकार द्वारा दिए गए ऋणों की वसूली से जो धन प्राप्त होता है, वे सभी संचित निधि में जमा किये जाते हैं। संसद की स्वीकृति के पश्चात् सरकार अपने सभी खचों का वहन इसी निधि से करती है। इसीलिए इसे भारत की संचित निधि कहा जाता है।

भारत का लोक लेखा

संविधान के अनुच्छेद 266(2) के अनुसार भारत सरकार द्वारा या उसकी ओर से प्राप्त सभी अन्य लोक धनराशियां भारत के लोक लेखों में जमा की जाती हैं।

भारत की आकस्मिक निधि

संविधान के अनुच्छेद 267 के अनुसार संसद को एक निधि स्थापित करने की शक्ति दी गई है। इस निधि को भारत की आकस्मिक निधि कहा जाता है। यह एक ऐसी निधि है जिसमें संसद द्वारा पारित कानूनों द्वारा समय-समय पर धन जमा किया जाता है। यह निधि राष्ट्रपति के नियंत्रण में होती है तथा देश में उत्पन्न होने वाली आकस्मिक घटनाओं का सामना करने के लिए राष्ट्रपति इस निधि से सरकार को आवश्यक धन देता है। संसद से इस राशि की स्वीकृति लेना अनिवार्य है। राष्ट्रपति जब इसमें से धन व्यय करने की आज्ञा देता है तो उसके पश्चात् होने वाले संसद के अधिवेशन में उस व्यय के संबंध में संसद की स्वीकृत प्राप्त कर ली जाती है।

 

पृष्ठभूमि

  • वर्ष 2017 में सरकार द्वारा वित्त विधेयक को लोकसभा में पेश किया गया. सरकार ने इस विधेयक में चुनावी बाॅण्ड के प्रावधान होने के कारण इसे धन विधेयक के रूप में पारित करने का अनुमोदन किया।
  • जिस पर विपक्ष ने विरोध जताया लेकिन केंद्र सरकार ने वित्त विधेयक को धन विधेयक के रूप में पेश करके पारित करवा लिया।
  • केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में इस प्रक्रिया को न्यायोचित ठहराते हुए कहा था कि न्यायाधिकरण के अधिकारियों को भुगतान किए जाने वाले वेतन और भत्ते भारत की संचित निधि से आते हैं, अतः इसे धन विधेयक की श्रेणी में रख सकते हैं।
  • लेकिन उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि राष्ट्र की बहुलता और शक्ति के संतुलन के लिये राज्य सभा को दरकिनार नहीं किया जा सकता।

 

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