प्रश्न:नया रणक्षेत्र:भारत-पाक जल विवाद
सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 2 : शासन व्यवस्था, संविधान, शासन प्रणाली, सामाजिक न्याय तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध |
उरी हमले के बाद पाकिस्तान को चौतरफा घेरने की तैयारी में जुटे भारत ने सिंधु नदी जल समझौता तोड़ने की चेतावनी दी हैं। जहां भारत ने साफ कहा कि ऐसे किसी भी समझौते के लिए ‘परस्पर विश्वास और सहयोग’ जरुरी हैं।
प्रमुख बिंदु
पाकिस्तान के साथ सिन्धु नदी जल समझौता (Indus Waters Treaty – IWT) के संदर्भ में अपने रुख में परिवर्तन करते हुए भारत ने एक अहम निर्णय लेते हुए, लाहौर में आयोजित होने वाली अगली स्थायी सिन्धु आयोग (Permanent Indus Commission - PIC) की बैठक में भाग लेने संबंधी निमन्त्रण को अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी है|
- गौरतलब है कि सिन्धु जल समझौते के संबंध में भारत के रुख में नरमी आने का प्रमुख कारण विश्व बैंक द्वारा मध्यस्थता करना है|
- पीआईसी की आखिरी बैठक पिछले वर्ष जुलाई 2016 में आयोजित की गई थी| उस समय इस समस्या का सकारात्मक हल निकलने के आसार नज़र आने लगे थे, परन्तु सितंबर माह में उरी कांड के पश्चात् भारत सरकार ने इस संबंध में कोई बातचीत करने से इनकार कर दिया था|
- तत्पश्चात् नवंबर 2016 में विश्व बैंक द्वारा पाकिस्तान एवं भारत के मध्य किशनगंगा (Kishenganga) तथा रतले नदी (Ratle river) जल परियोजनाओं के संबंध में उपजे विवादों के निपटारे के लिये एक अदालती पंचाट को गठित करने का निणर्य लिया गया| इस मुद्दे ने एक बार फिर से सिन्धु जल समझौता विवाद को चर्चा को विषय बना दिया|
- परन्तु, भारत ने विश्व बैंक के इस निर्णय को पाकिस्तान के समर्थन में एकपक्षीय निर्णय करार देते हुए इससे अपने कदम वापस खिंच लिये|
- हालाँकि, विश्व बैंक के अध्यक्ष जिम योंग किम के इस विवाद में मध्यस्थ बनने के कारण यह मामला सुलझा लिया गया|
सिन्धु नदी जल समझौता के जुड़े कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य
- सिंधु जल समझौता भारतीय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच 19 सितंबर,1960 में कराची में हुआ था,तथापि वह संधि 1 अप्रैल, 1960 (प्रभावी तारीख) से प्रभावी है।
- इसके तहत सिंधु नदी के जल को साझा करने का समझौता हुआ था। यही नहींइस संधि के तहत छह नदियों के पानी के बंटवारे और साझा प्रयोग को इसमें शामिल किया गया था।ये नदियां ब्यास, रवि, सतलज, सिंधु, चिनाब और झेलम हैं।
- यहसमझौता विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुआ था। सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि इस समझौते की जरुरत क्यों पड़ी। चूंकि सिंधु बेसिन की नदियों का स्त्रोत भारत में था (सिंधु और सतलज का मूल स्त्रोत चीन में है ), नियमों के तहत भारत इनके जल का उपयोग सिंचाई, परिवहन, बिजली उत्पादन में करता है।
- इस समझौते सेभारत को तीन नदियों के जल को बिना किसी प्रतिबंध के प्रयोग करने की इजाजत मिली थी। ये तीन नदिया ब्यास, रवि और सतलज थी।
- पाकिस्तान को इसके तहततीन पश्चिमी नदियों के जल प्रयोग की इजाजत मिली, ये नदियां सिंधु, झेलम और चिनाब हैं।
- साथ ही भारत कोइन नदियों के 36 लाख एकड़ फीट तक जल भंडारण की सुविधा दी गई। हालांकि इसकी जरुरत अबतक नहीं पड़ी। साथ ही सात लाख एकड़ फीट तक पानी सिंचाई के लिए उपयोग करने की इजाजत थी।
- इसके अलावा समझौते में विवादों का हल ढूँढने के लिये एक तटस्थ विशेषज्ञ की मदद लेने या कोर्ट ऑफ़ आर्ब्रिट्रेशन (Court of Arbitration) में जाने का भी रास्ता शामिल किया गया है|
यूएनडीपी की रिपोर्ट
- गौरतलब है कि कुछ समय पहले सिन्धु नदी जल समझौते के सन्दर्भ में यूएनडीपी (United Nations Development Programme - UNDP) द्वारा एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई| इस रिपोर्ट में जल समझौते के सफल क्रियान्वयन में आने वाली सभी प्रकार की बाधाओं के लिये पाकिस्तान को ज़िम्मेदार ठहराया गया है|
- “डेवलमेंट ऐडवोकेट पाकिस्तान” (Development Advocate Pakistan) नामक इस रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि वर्ष 1990 से इस समझौते के क्रियान्वयन में पाकिस्तान की ओर से हुए विलंब ने इस समझौते को तनाव की स्थिति में पहुँचा दिया है|
- हमेशा से पकिस्तान इस समझौते के औचित्य पर सवाल उठाता आया है| परन्तु भारत की ओर से सदैव इस समझौते के अनुपालन को प्रोत्साहित किया गया है|