प्रश्न:पश्चिमी पाक शरणार्थियों पर 'हिंदू-मुस्लिम' में बंटा जम्मू-कश्मीर
सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र - 2: शासन व्यवस्था, संविधान, शासन प्रणाली, सामाजिक न्याय तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध |
सन्दर्भ
बंटवारे के समय पश्चिमी पाकिस्तान से भागकर जम्मू-कश्मीर आए परिवारों को आवास प्रमाणपत्र देने का मामला प्रदेश में तूल पकड़ रहा है। जम्मू-कश्मीर की PDP-BJP गठबंधन सरकार द्वारा लिए गए इस फैसले को लेकर जगह-जगह लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इस विवाद के कारण एक बार फिर प्रदेश सांप्रदायिक आधार पर बंट गया है।
'वेस्ट पाकिस्तान रिफ्यूजी ऐक्शन कमिटी, 1947' लफ्ज भले ही आपको सुनने में पुराना सा लगे लेकिन उनकी शिकायतें बेहद गंभीर हैं। 1987 में बचन लाल कलगोत्रा के मामले में सुप्रीम कोर्ट के 1987 के फैसले के बावजूद जम्मू और कश्मीर में पश्चिमी पाकिस्तान से आए लोगों को दोयम दर्जे की जिंदगी जीनी पड़ रही है।
क्या है विवाद ?
1- राज्य सरकार ने पश्चिमी पाकिस्तान से भागकर जम्मू आए सिखों और हिन्दुओं के लिये एक पहचान पत्र जारी किया है, जिसका धारक यह प्रमाणित कर सकता है कि वह उस भारतीय क्षेत्र का निवासी है जो अब पाकिस्तान में है और वर्तमान में उसे भारत में शरणार्थी का दर्जा प्राप्त है।
2-इन लोगों को आवास प्रमाणपत्र इसलिये दिया जा रहा है ताकि उन्हें सेना, अर्द्ध-सैनिक बलों तथा अन्य सरकारी सेवाओं में लिया जा सके। ध्यातव्य है कि वर्ष 2000 से जम्मू-कश्मीर में सरकारी नौकरियों के लिये संबंधित निकायों द्वारा पहचान-पत्र मांगा जाने लगा, जिसके चलते पश्चिमी पाकिस्तान से भारत आए लोगों को समस्या हो रही है क्योंकि उनमें से शायद ही किसी के पास पहचान-पत्र है।
3-घाटी में सक्रिय अन्य दलों का आवास प्रमाणपत्र देने के बारे में कहना है कि यह शरणार्थियों को स्थायी निवासियों का दर्जा और संपत्ति का अधिकार देने की दिशा में पहला कदम है, साथ ही सरकार पर आरोप लागाया जा रहा है कि वह शरणार्थियों से संबंधित राज्य के कानूनों को खत्म करना चाहती है।
4-पश्चिमी पाकिस्तान शरणार्थी संगठन के अध्यक्ष, लाभा राम गांधी का दावा है कि केवल 5,764 हिंदू और सिख परिवार 1947 में पलायन कर जम्मू से आए थे. लेकिन अब उन परिवारों की संख्या ब़ढ कर 25,460 हो गई है, जिनमें कुल 1,50,000 लोग रहते हैं. (कुछ लोगों को इन आंकड़ों पर एतराज है.)
रोहिंग्या समुदाय शरणार्थी संकट
1- म्यांमार की बहुसंख्यक आबादी बौद्ध है, और एक अनुमान के मुताबिक इस आबादी में 10 लाख रोहिंग्या मुसलमान हैं। रोहिंग्याओं के बारे में कहा जाता है कि वे मुख्य रूप से अवैध बांग्लादेशी प्रवासी हैं। हालाँकि, एक लंबे समय से ये म्यामांर के रखाआइन प्रान्त में रह रहे हैं।
2-रखाइन प्रांत में बहुसंख्यक बौद्धों के लिये रोहिंग्याओं की मौजूदगी हमेशा से चिंता और रोष का विषय रही है। बौद्ध लोग उन्हें बांग्लादेश से भागकर आए मुसलमान मानते हैं, जिन्हें म्यामांर से चले जाना चाहिये।
3-एक अनुमान के मुताबिक, इस समय भारत में 40 से 50 हज़ार रोहिंग्या रह रहे हैं, जिनमें से लगभग 7 से 8 हज़ार अकेले जम्मू क्षेत्र में ही हैं| ये लोग दिल्ली के अलावा, जम्मू, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और आंध्र प्रदेश में अलग-अलग जगहों पर रह रहे हैं।
निष्कर्ष
1-भारत ने 1951 के ‘यूनाइटेड नेशंस रिफ्यूजी कन्वेंशन’ और 1967 के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं। दरअसल, इस कन्वेशन पर हस्ताक्षर करने वाले देश की यह कानूनी बाध्यता हो जाती है कि वह शरणार्थियों की मदद करेगा। इसी की वजह से वर्तमान में भारत के पास कोई राष्ट्रीय शरणार्थी नीति नहीं है, लिहाजा शरणार्थियों की वैधानिक स्थिति बहुत अनिश्चित है, जो अंतर्राष्ट्रीय मानकों के विरुद्ध है।
2- एक लोकतान्त्रिक राष्ट्र होने के नाते भारत का यह दायित्व बनता है कि वह संकटग्रस्त लोगों के लिये अपने दरवाज़े खुले रखे। जिस शरणार्थी को शरण देने की अनुमति दे दी गई है, उसे बाकायदा वैधानिक दस्तावेज मुहैया कराए जाएँ ताकि वह सामान्य ढंग से जीवन-यापन कर सके। साथ ही, शरणार्थियों को शिक्षा, रोज़गार और आवास चुनने का हक भी दिया जाना चाहिये।
3- देशहित सर्वोपरि होता है और इससे समझौता नहीं किया जा सकता।
4-शरणार्थियों के कारण संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है , कानून व्यवस्था के लिये चुनौती उत्पन्न होती है, साथ ही, राष्ट्रीय शरणार्थी नीति के आभाव में न तो ये पंजीकृत हो पाते हैं और न ही इनका कोई स्थायी पता होता है; ऐसे में यदि कोई शरणार्थी अपराध करने के बाद भाग जाए तो उसको कानून की गिरफ़्त में लेना मुश्किल हो जाता है। अतः शरणार्थियों पर प्रतिबन्ध लगाने की बज़ाय एक पारदर्शी और जवाबदेह व्यवस्था की दरकार है, जो ठीक से शरणार्थियों का प्रबंधन कर सके।