भारत सरकार द्वारा प्रवासी भारतीयों के साथ सामंजस्य और संवाद

 प्रश्न:भारत सरकार द्वारा प्रवासी भारतीयों के साथ सामंजस्य और संवाद 

सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 2 : शासन व्यवस्था, संविधान, शासन प्रणाली, सामाजिक न्याय तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध
खंड – 19 : भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय

पृष्ठभूमि

9 जनवरी 1915 को महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से नस्ल विरोधी आंदोलन द्वारा ख्याति प्राप्त करने के बाद पहली बार भारत आये थे। महात्मा गांधी के भारत आगमन के दिन को यादगार बनाने के लिए भारत सरकार ने 9 जनवरी को प्रवासी भारतीय दिवस घोषित किया। भारत सरकार द्वारा प्रवासी भारतीयों के साथ सामंजस्य और संवाद कैसे स्थापित किया जाए इस विषय को लेकर एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन प्रमुख कानूनविद लक्ष्मीमल सिंघवी की अध्यक्षता में किया गया।

18 अगस्त 2000 को इस कमेटी की संस्तुति पर महात्मा गांधी के आगमन दिवस को प्रवासी भारतीय दिवस के रूप में मनाने और प्रतिवर्ष 7-9 जनवरी को प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन किया जाने लगा। 

महत्त्वपूर्ण बिंदु

कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में आयोजित 14वें प्रवासी भारतीय सम्मेलन(7-9 जनवरी 2017) को संबोधित करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि  69 बिलियन डॉलर के निवेश के जरिए प्रवासी भारतीय ने देश के विकास में योगदान दिया है. वह देश के प्रगति में सहयात्री हैं. उन्होंने कहा कि पहले लोग ब्रेनड्रेन की चर्चा करते थे, लेकिन अब वर्तमान सरकार ब्रेनड्रेन को ब्रेनगेन में बदलेंगे. इसके लिए प्रवासी भारतीयों का सहयोग वांछित हैं.

वस्तुतः “डायस्पोरा”(Diaspora) एक सर्वग्राही वाक्यांश है, जिसका प्रयोग भारतीय मूल के उन लोगों के संबोधन हेतु किया जाता है जो 19 वीं सदी के बाद से विश्व के कोने-कोने में जा बसे हैं| इन्हें प्रवासी भारतीय कहा जाता है|

वस्तुतः इस सम्पूर्ण समय काल को दो भागों में विभाजित किया जाता है – आज़ादी से पहले एवं आज़ादी के बाद|

गौरतलब है कि आज़ादी के बाद के प्रवास को कई प्रकारों में विभक्त कर दिया गया है, जिनमें ऑस्ट्रेलिया एवं न्यूज़ीलैण्ड के साथ-साथ पश्चिमी देशों तथा पश्चिम एशियाई देशों में कार्यरत लोगों को भी शामिल किया जाता है|

वर्तमान में उपरोक्त देशों में प्रवासी भारतीयों की संख्या तक़रीबन 7 मिलियन है|

  • हालाँकि, आर्थिक विस्तार एवं आर्थिक संकुचन के चक्र के निरंतर क्रियाशील रहने के बावजूद जैसे-जैसे तेल की कीमतों में वृद्धि हुई या फिर कमी आई, वैसे-वैसे छः प्रमुख खाड़ी देशों (the six Gulf states) ने स्वतंत्र एकल कमोडिटी (single commodity) से उत्पन्न जोखिमों को दूर करना सीख लिया है| खाड़ी देशों की प्रमुख चिंताएँ

 

खाड़ी देशों की प्रमुख चिंताएँ द्वारा इन समस्याओं से निदान के अनोखे तरीके

यही कारण है कि खाड़ी देशों में रह रहे कुशल एवं अकुशल भारतीय कामगारों सहित इन देशों में कारोबार करने वाले भारतीय व्यापारियों को आर्थिक मंदी तथा स्थानीय लोगों के लिये और अधिक संख्या में रोज़गार के विकल्प सृजित करने एवं दिनोंदिन बढ़ती आतंकी घटनाओं के कारण नित नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है|

ध्यातव्य है कि इन भारतीय कामगारों में सर्वाधिक संख्या केरल से आए लोगों की हैं| हालाँकि, भारत सरकार अथवा राज्य सरकार अभी तक इन कामगारों के कौशल का उन्नयन करने में विफल रही हैं|

विश्व की सबसे तेज़ी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में भारत की प्रतिष्ठा को उस समय बहुत नुकसान पहुँचता है जब इसके नागरिकों को नौकरों के काम करने योग्य मात्र समझा जाता है, उनके साथ निम्नतम व्यवहार किया जाता है, जबकि इसके प्रत्युत्तर में भारतीय रणनीतिकारों द्वारा बहुत ही सीमित विरोध प्रकट किया जाता है|

यही कारण है कि आज़ादी के छः दशक बाद भी भारत सरकार अपने नागरिकों को खाड़ी देशों के मध्ययुगीन एवं प्रतिगामी नियमों के अधीन शोषित होने से नहीं रोक पा रही है|

दरअसल, खाड़ी देशों में जाकर रोज़गार करने वाले नागरिकों को अपने नियोक्ता के पास अपने यात्रा दस्तावेज़ जमा करने होते है, ऐसे में यदि कोई व्यक्ति कार्यावधि समाप्त होने से पूर्व ही भारत वापस लौटना चाहे भी तो बगैर नियोक्ता की आज्ञा के वह ऐसा नहीं कर सकता है| वस्तुतः बहुत से मामलों में नियोक्ता श्रमिकों को देश लौटने की आज्ञा नहीं देते हैं|

 प्रतिकूल परिस्थितियों पर विजय

गौरतलब है कि प्रवासी भारतीयों संबंधी सभी मुद्दों के विषय में (विशेषकर, वर्ष 1833 से 1917 की समयावधि में श्रमिक के तौर पर विदेशों में प्रवास करने वाले व्यक्तियों के सन्दर्भ में) भारत का रिकॉर्ड काफी सकारात्मक रहा है|

 ध्यातव्य है कि 1970 के दशक में ईदी अमिन (Idi Amin) के शासनकाल में युगांडा से भारतीय प्रवासियों को निष्कासित कर दिया गया था, उस समय सम्पूर्ण विश्व ने भारतीय कूटनीति तथा प्रवासियों के विषय में भारत की संजीदगी का एक प्रभावशाली नमूना देखा था|

हालाँकि, कुछ कैरेबियाई देशों यथा, गुयाना (Guyana) तथा त्रिनिनाद एवं टोबेगो (Trinidad and Tobago) जैसे अपेक्षाकृत बड़े देशों में सत्ता की बागडोर प्रवासी भारतियों के हाथों में है|

आम तौर पर, अतीत में भारत की विदेश नीति इतनी अधिक प्रभावी नहीं थी कि वह दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर सके और उसका प्रत्युत्तर दे सके|

वस्तुतः अपने दम पर भारत सदैव ही अपने आर्थिक मामलों, निवेश संबंधी समझौतों, व्यापारिक तथा अन्य रणनीतिक संबंधों को मज़बूती प्रदान करने में कमज़ोर रहा है|

अन्य चिंताएँ

अंत में मुद्दा आता है अमेरिका, कनाडा तथा ब्रिटेन में रहने वाले प्रवासी भारतीयों का, क्योंकि इन देशों में निवास करने वाली भारतीय आबादी की संख्या में दिनोंदिन वृद्धि होती जा रही है| इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हमे इन देशों के रहने वाले प्रमुख उद्योगपतियों, सरकारी महकमों से सम्बद्ध लोगों तथा प्रभावशाली राजनीतिक हस्तियों के रूप में मिलता है|

ध्यातव्य है कि उक्त सभी देशों में से अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों की संख्या सर्वाधिक (तक़रीबन 4 मिलियन के आसपास) है, जबकि ब्रिटेन में 1.45 मिलियन तथा कनाडा में तकरीबन 1.2 मिलियन प्रवासी भारतीय निवास करते हैं|

हालाँकि, यदि इस विषय में बहुत गहराई से देखा जाए तो ज्ञात होता है कि प्रवासी भारतीयों के रूप में कनाडा में निवास करने वाले 34 फीसदी सिख आबादी के मुकाबले 27 फीसदी संख्या हिन्दुओं की है, जबकि शेष में मुस्लिम तथा ईसाई लोग आते हैं|

वॉल स्ट्रीट जर्नल के अनुसार, विदेशों में रहने वाले प्रवासी भारतीयों की संख्या तकरीबन 15.6 मिलियन के करीब है| ध्यातव्य है कि वर्ष 2010 में यह आँकड़ा 17.2. मिलियन के करीब पहुँच गया था| हालाँकि, भारत की तुलना में चीनी प्रवासियों की संख्या तकरीबन 50 मिलियन है, जिसमें से तकरीबन 32 मिलियन आबादी दक्षिण-पूर्व एशिया (Southeast Asia) में निवास करती है|

निष्कर्ष

इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी होने का एक प्रमुख कारक प्रवासी भारतीयों द्वारा अपने परिवारों को भेजी जाने वाली सहायता राशि है| परन्तु, प्रवासी भारतीयों के विषय में चर्चा करते समय मात्र इतना वर्णन पर्याप्त नही है, वस्तुतः उनके रोज़गार, व्यापार, परिवारों की सुरक्षा आदि के विषय में भारत सरकार को और अधिक प्रभावी एवं महत्त्वपूर्ण कदम उठाने की आवश्यकता है| जैसे-जैसे समाज विकास की ओर अग्रसर हो रहा है लोगों के शारीरिक शोषण के साथ-साथ उनके मानसिक शोषण की परिस्थितियाँ भी भयावह रूप धारण करती जा रही हैं| ऐसे में, भारत सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि विदेशों में रहने वाले एवं कार्य करने वाले लोगों को शोषण से बचाव प्रदान करने के साथ-साथ उनके लिये विदेशों में ही और अधिक बेहतर तथा कौशलपूर्ण रोज़गार के विकल्प तैयार किये जा सकें|

 

Please publish modules in offcanvas position.