प्रश्न:क्या आप जानते हैं जीएसटी (GST) क्या है?
सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 3 : प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन |
देश को एक बाजार के रूप में पिरोने और अब तक के सबसे बड़े अप्रत्यक्ष कर सुधार के लिए मील का पत्थर माने जा रहे वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से जुड़े चार विधेयकों को लोकसभा ने आज((29 मार्च 2017)) ध्वनिमत से पारित कर दिया। सरकार का जीएसटी को इस साल 01 जुलाई 2017 से लागू करने का लक्ष्य है।
चार विधेयकों - केंद्रीय जीएसटी विधेयक, एकीकृत जीएसटी विधेयक, केंद्रशासित क्षेत्र जीएसटी विधेयक और जीएसटी (राज्यों को क्षतिपूर्ति) विधेयक - पर सदन में दिन भर चली चर्चा के बाद विपक्ष की आपत्तियों का जवाब देते हुये वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि इनके कानून बनने से पूरा देश एक बाजार के रूप में स्थापित हो जायेगा और वस्तुओं की निर्बाध आवाजाही सुनिश्चित हो सकेगी तथा एक सरल कर व्यवस्था लागू होगी जिसका उल्लंघन करना आसान नहीं होगा।
जीएसटी की पृष्ठभूमि
वस्तुतः जीएसटी के रूप में देश को एक ऐसी एकीकृत अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था प्राप्त होने वाली है, जो न केवल संपूर्ण भारत को एकल बाज़ार के रूप में प्रस्तुत करेगी वरन् समानता भी प्रदान करेगी।
जीएसटी के अंतर्गत जहाँ एक ओर केंद्रीय स्तर पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क, अतिरिक्त उत्पाद शुल्क, सेवा कर, काउंटरवेलिंग ड्यूटी जैसे अप्रत्यक्ष कर शामिल होंगे वहीं दूसरी ओर राज्यों में लगाए जाने वाले मुल्यवर्द्धन कर, मनोरंजन कर, चुंगी तथा प्रवेश कर, विलासिता कर आदि भी जीएसटी के अंतर्गत सम्मिलित हो जाएंगे।
जीएसटी के लागू होने से सरकार के साथ-साथ व्यापार एवं उद्योग जगत तथा आम उपभोक्ता सभी लाभान्वित होंगे। स्पष्ट है कि यदि ऐसा होता है तो इसका देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत ही सकारात्मक प्रभाव होगा|
जीएसटी में कर के चार स्लैब तय किए गए हैं। पहला स्लैब शून्य प्रतिशत का है जिसमें मुख्य रूप से खाद्यान्न तथा अन्य जरूरी पदार्थों को रखा जाएगा। दूसरा स्लैब पांच प्रतिशत का है। मानक स्लैब 12 और 18 प्रतिशत के रखे गए हैं जबकि चौथा स्लैब 28 प्रतिशत का है। जिन वस्तुओं पर अभी 28 प्रतिशत से ज्यादा कर है उसका इससे ऊपर का हिस्सा उपकर के रूप में एकत्रित कर राज्यों की क्षतिपूर्ति के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। इसके बाद भी यदि कुछ राशि बचेगी तो वह केंद्र और राज्यों के बीच बांटी जाएगी। केंद्रीय जीएसटी विधेयक में अधिकतम 40 प्रतिशत का प्रावधान रखा गया है।
जेटली ने बताया कि किस वस्तु को किसी स्लैब में रखना है इस पर जीएसटी परिषद् अगले महीने से काम शुरू कर देगी। शराब को विधेयक के दायरे से बाहर रखा गया है। पेट्रोलियम उत्पाद विधेयक के दायरे में हैं, लेकिन उन पर जीएसटी के तहत कर लगाना कब शुरू करना है इसके बारे में फैसला जीएसटी परिषद् को बाद में करना है। साथ ही अचल संपत्ति को भी जीएसटी के दायरे में लाने पर चर्चा हुई थी किंतु राज्य सरकारों ने स्टाम्प ड्यूटी से होने वाले राजस्व के नुकसान की आशंका जताई थी। हालांकि, दिल्ली सरकार इसके पक्ष में थी। उन्होंने कहा कि परिषद् में यह सहमति बनी थी कि जीएसटी लागू होने के एक साल के भीतर इस पर पुनर्विचार करेंगे।
केंद्र एवं राज्य सरकार के नज़रिये से जीएसटी
उल्लेखनीय है कि यदि केंद्र एवं राज्य के नज़रिये से जीएसटी की प्रासंगिकता एवं महत्त्व के विषय में विचार किया जाए तो ज्ञात होता है कि जीएसटी के लागू होने के उपरांत केंद्र एवं राज्य की कर-संग्रहण की लागत में (वर्तमान की उपेक्षा) कमी आने की संभावना है।
हालाँकि यह ओर बात है कि वर्तमान ‘कर प्रणाली’ की अपेक्षा जीएसटी के अनुपालन में जटिलता कम होगी। इसका कारण यह है कि केंद्र एवं राज्य दोनों ही स्तरों पर अलग रिटर्न या पंजीकरण की समस्या से छुटकारा मिलेगा।
इसके अतिरिक्त सरल प्रक्रिया एवं तकनीकी प्रयोग से जीएसटी के अंतर्गत कर वंचना पर भी नियंत्रण पाया जा सकेगा।
व्यापार एवं उद्योग जगत के नज़रिये से जीएसटी
उद्योग जगत अत्यंत उत्सुकता से इसकी प्रतीक्षा कर रहा है कि जीएसटी परिषद विशिष्ट उत्पादों को लेकर टैरिफ पर क्या निर्णय लेती है।
ध्य्ताव्य है कि जीएसटी के लागू होने के पश्चात् संपूर्ण देश में वस्तु एवं सेवा कर की एकसमान दर होगी, जिससे पूरा देश एक बाज़ार के रूप में उभरेगा, जिससे व्यापार करने में सरलता होगी।
इसके अतिरिक्त सभी राज्यों में एकसमान कर प्रणाली तथा व्यापार की लागत में आने वाली कमी स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा को उद्योग जगत में बढ़ावा देगी।
हालाँकि इस सबके अतिरिक्त एक ऐसा पक्ष भी है जहाँ उद्योग जगत की प्रतिबद्धता पहले से तय कर दी गई है। वस्तुतः इस प्रतिबद्धता का प्रत्यक्ष संबंध मुनाफाखोरी रोकने से है।
ध्य्ताव्य है कि मुनाफाखोरी वह स्थिति होती है जहाँ कोई व्यक्ति किसी सीमित वस्तु से अत्यधिक लाभ हासिल करने की कोशिश करता है। हालांकि इसके खिलाफ बने प्रावधान बहुत ही अनिश्चित हैं और अगर कंपनियों को पूरा लाभ ग्राहक को ही देना पड़ा तो इससे कंपनियाँ अपनी आपूर्ति शृंखला में किफायती सुधार करने से पीछे हट सकती हैं।
यहाँ गौर करने लायक बात यह है कि जीएसटी से संबंधित जिस अंतिम विधेयक को लोकसभा की मंजूरी प्राप्त हुई है उसमें उक्त विषय के संबंध में कोई विशेष प्रावधान नहीं किये गए है, ऐसे में देखना होगा कि उद्योग जगत इस संबंध में क्या कदम उठाता हैं।
उल्लेखनीय है कि इस विधेयक के लागू होने के उपरांत कोई भी कंपनी जो मुनाफा कमाती है उसे दोषी ठहराया जा सकता है और उस पर यह इल्जाम लगाया जा सकता है कि वह कम ‘कर दर’ और ‘इनपुट क्रेडिट’ का लाभ ग्राहकों को नहीं दे रही है।
इस प्रक्रिया में मुनाफाखोरी रोकने की व्यवस्था न केवल कागजी कार्रवाई में जबरदस्त इजाफा कर सकती है बल्कि यह विवादों, आरोपों और शोषण आदि को भी जबरदस्त बढ़ावा देने की वजह बन सकती है।
स्पष्ट है कि ऐसी किसी भी स्थिति में ‘कर दर’ में रियायत का लाभ उपभोक्ताओं को पहुंचाने की व्यवस्था करने के बजाय बेहतर होगा कि बाज़ार व्यवस्था को और अधिक सशक्त बनाने के साथ-साथ निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा पर अधिक बल दिया जाए।
उत्पादकों एवं निर्यातकों के नज़रिये से जीएसटी
ध्यातव्य है कि जहाँ एक ओर जीएसटी के लागू होने से ‘कर की दरों’ में कमी आयेगी वहीं पूरे देश में एकसमान कर दर रहने से देश के भीतर वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्बाध आवागमन भी सुनिश्चित हो जाएगा। जिससे कीमतों में कमी आयेगी और इसका सीधा लाभ उत्पादकों को प्राप्त होगा।
इसके अतिरिक्त, इनपुट टैक्स क्रेडिट की सुविधा से उत्पादन लागत में कमी आयेगी, जिसका प्रत्यक्ष लाभ भारतीय निर्यातकों को विदेशी बाज़ार में प्राप्त होगा।
उपभोक्ताओं के नज़रिये से जीएसटी
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि अप्रत्यक्ष कर का अंतिम बोझ उपभोक्ता को ही उठाना पड़ता है। ऐसे में जीएसटी ले लागू होने से उपभोक्ताओं को भी लाभ पहुँचेगा।
जीएसटी के अंतर्गत कर दर भी वर्तमान के स्तर से निम्न हो जायेगी। परिणामतः वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतों में कमी आयेगी जिसका सीधा लाभ उपभोक्ताओं को ही होगा।
जीएसटी और रीयल इस्टेट
जीएसटी में रीयल इस्टेट क्षेत्र को शामिल नहीं किये जाने पर कई सदस्यों की आपत्ति पर स्पष्टीकरण देते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें राज्यों को काफी राजस्व मिलता है. इसमें रजिस्ट्री तथा अन्य शुल्कों से राज्यों की आय होती है इसलिए राज्यों की राय के आधार पर इसे जीएसटी में शामिल नहीं किया गया है.
कृषि और जीएसटी
कृषि को जीएसटी के दायरे में लाने को निर्मूल बताते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि कृषि एवं कृषक को पंजीकरण की आवश्यकता नहीं होती है. धारा 23 के तहत कृषक एवं कृषि को छूट मिली हुई है. इसलिए इस छूट की व्याख्या के लिए परिभाषा में इसे रखा गया है. इस बारे में कोई भ्रम नहीं होना चाहिए. जेटली ने कहा कि कृषि उत्पाद जब शून्य दर वाले हैं तब इस बारे में कोई भ्रम की स्थिति नहीं होनी चाहिए.
क्या है दोहरे नियंत्रण का मुद्दा
जीएसटी को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों की बीच एक सबसे बड़े अहम मुद्दा था कि इस कर के प्रशासनिक अधिकारों का बंटवारा क्या और कैसे हो.
तटीय राज्यों की मांग थी कि समुद्री कारोबार के 12 नॉटिकल मील (समुद्र में दूरी मापने की इकाई) तक टैक्स के प्रशासनिक अधिकार राज्य को मिलने चाहिए. पर केंद्र सरकार अपना यह अधिकार छोड़ने को राजी नहीं थी.
लेकिन अब केंद्र सरकार ने राज्यों की मांगों को लगभग जस का तस मान लिया है. वित्त मंत्री अरुण जेटली के अनुसार अब डेढ़ करोड रुपए सालाना कारोबार करने वाली 90 फीसदी इकाइयों के जीएसटी करदाताओं पर राज्य का नियंत्रण रहेगा. बाकी 10 फीसदी इकाइयों पर केंद्र का.
डेढ़ करोड़ रुपए सालाना से अधिक कारोबार करने वाली इकाइयों पर केंद्र और राज्य सरकार बराबर का नियंत्रण रखेगी. यानी 50-50. इसके अलावा तटीय राज्यों की 12 नॉटिकल मील तक टैक्स वसूली की मांग को केंद्र ने अब मान लिया है, जो अप्रत्याशित है. यानी कुल मिलाकर केंद्र ने राज्यों की माँगों के आगे आत्म समर्पण कर दिया है.
अन्य प्रमुख बिंदु
गौरतलब है कि जीएसटी विधेयक के अनुबंध 171 (1) के अनुसार, वस्तुओं या सेवाओं की आपूर्ति से जुड़ी कर दरों में किसी भी तरह की कमी या इनपुट कर क्रेडिट का कोई भी लाभ ग्राहकों तक पहुंचाया जाना चाहिये। ऐसा कीमत में कमी के जरिये किया जा सकता है।
हालाँकि इस संबंध में वास्तव में क्या नियम कायदे बनने चाहिये और ज़ुर्माने की दर क्या तय होनी चाहिये आदि इसके संबंध में अभी अस्पष्टता बनी हुई है।
एक अनुमान के अनुसार, यदि जीएसटी के संबंध में उद्योग जगत से नज़रिये से विचार करें तो हम पाएँगे कि मुनाफाखोरी रोकने के नाम पर कर अधिकारियों के हाथों में पहले की अपेक्षा और अधिक विशेषाधिकार आ जाएंगे, जिससे भ्रष्टाचार के बढ़ने की भी संभावना हैं।
जीएसटी लागू करने के संबंध में देश की वास्तविक स्थिति
ध्यातव्य है कि सरकार ने जीएसटी को 1 जुलाई से लागू करने की समयसीमा निर्धारित कर रखी है। यही कारण है कि देश के सभी राज्य स्वयं को जीएसटी को लागू करने के लिये तैयार करने में जुटे हुए हैं।
चाहे उत्पादक राज्य हो या फिर उपभोक्ता या फिर राज्य सरकारें सभी अपने-अपने स्तर पर इसे सफल बनाने की जुगत में लगे हुए है ।
हालाँकि यदि राज्यों की बात करें तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि जीएसटी को लागू करने के लिये गुजरात इस समय सबसे बेहतर स्थिति में है। ध्यातव्य है कि वर्तमान में गुजरात में मौजूद कर व्यवस्था में राज्य के 87 फीसदी विनिर्माता, डीलर और व्यापारी जीएसटी नेटवर्क पर कार्य करना आरंभ कर चुके हैं। जबकि दूसरे सभी राज्य अभी इस इस होड़ में काफी पीछे चल रहे हैं।
इसी क्रम में यदि बात करें ओडिशा राज्य की तो राज्य से प्राप्त अधिकारिक जानकारी के अनुसार, ओडिशा में केवल जीएसटी विधेयक को उडिय़ा भाषा में अनुवाद करने का ही काम बाकी रह गया है।
वहीं दूसरी ओर तमिलनाडु राज्य भी 1 जुलाई से जीएसटी को लागू करने के लिये पूरी तरह से तैयार है। इतना ही नहीं केंद्र एवं राज्य सरकार के बीच राजनीतिक लड़ाई के बावजूद पश्चिम बंगाल के व्यावसायिक कर विभाग ने भी एक साल पहले से ही जीएसटी को लागू करने संबंधी तैयारी शुरू कर दी थी।
वर्तमान में जीएसटी के संदर्भ की वास्तविक स्थिति के ये कुछ उदाहरण मात्र थे। उक्त परिदृश्य से स्पष्ट है कि देश भर में जीएसटी के अनुपालन के संबंध में एकमत बनता प्रतीत हो रहा है।
निष्कर्ष
स्पष्ट है कि विभिन्न अंशधारकों के नज़रिये से जीएसटी के विषय में अध्ययन करने के पश्चात् हमे ज्ञात होता है कि इसका देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत ही सकारात्मक प्रभाव होगा। साथ ही पारदर्शिता एवं तकनीकी दृष्टि से लाभकारी होने के परिणामस्वरूप इसके लागू होने के पश्चात् देश की कर व्यवस्था एवं जीडीपी अनुपात में भी सकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना व्यक्त की जा रही है। वस्तुतः यह सरकार का एक अत्यंत की प्रशंसनीय कदम सबित होगा। अब देखना यह होगा कि नियत समय एवं संपूर्ण व्यवस्था के साथ लागू होने के उपरांत स्वतंत्रता के पश्चात् बड़े देश के अब तक के सबसे बड़े कर सुधार का देश की अर्थव्यवस्था पर कैसा एवं कितना प्रभाव परिलक्षित होता है।