क्यों न्यायिक स्थानान्तरण रोक रही है केंद्र सरकार

 

सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 2 : शासन व्यवस्था, संविधान, शासन प्रणाली, सामाजिक न्याय तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध
(खंड- 6 : कार्यपालिका और न्यायपालिका की संरचना, संगठन और कार्य- सरकार के मंत्रालय एवं विभाग, प्रभावक समूह और औपचारिक/अनौपचारिक संघ तथा शासन प्रणाली में उनकी भूमिका)

पृष्ठभूमि

2 जनवरी को सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि पिछले कई महीनों से केंद्र सरकार विभिन्न उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीशों के स्थानान्तरण को जानबूझकर रोकने का कार्य कर रही है|

  • भारत के मुख्य न्यायाधीश टी. एस. ठाकुर तथा न्यायाधीश डी. वाय. चंद्रचूड़ की न्यायपीठ के समक्ष श्री राम जेठमलानी सहित कई वरिष्ठ अधिवक्ताओं द्वारा गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एम. आर. शाह के मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में स्थानान्तरण के मामले को फरवरी 2016 से लंबित रखने के मुद्दे को संदर्भित किया गया था|
  • इसके प्रत्युत्तर में केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे भारत के महान्यायवादी (Attorney-General) द्वारा न्यायाधीश शाह की नियुक्ति को प्रक्रिया के तहत” (under process) बताने पर सर्वोच्च न्यायालय ने कड़ा रुख अख्तियार करते हुए कहा कि यदि भारत सरकार किसी न्यायाधीश की नियुक्ति को लेकर संतुष्ट नहीं है तो उसे उक्त मामले से संबंधित फाइलों को पुन: अदालत के पास भेज देना चाहिये| वस्तुतः यह न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित कॉलेजियम व्यवस्था का अपमान करने जैसा है

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से अगले तीन सप्ताह में उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के स्थानान्तरण के लंबित मामलों से संबंधित रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है
  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी बयान में कहा गया कि उपरोक्त मामले में केंद्र सरकार के स्तर पर देरी किये जाने का परिणाम यह हुआ कि इसने न केवल कानूनी समुदाय के भीतर गंभीर आकांक्षाओं को जन्म दिया है, बल्कि  गलतफहमियाँ भी उत्पन्न की हैं|  
  • हालाँकि, महान्यायवादी द्वारा स्पष्ट किया गया कि केंद्र सरकार के पास न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित कोई लंबित फाइल मौजूद नहीं है, बल्कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के लंबित मामलों के लिये काफी हद तक राज्य उच्च न्यायालयों की न्यायिक व्यवस्था ही ज़िम्मेदार है|
  • महान्यायवादी द्वारा स्पष्ट किया गया कि न्यायाधीशों की नियुक्ति हेतु केंद्र सरकार को 77 नामों की एक सूची सौंपी गई थी जिसमें से 43 नामों को सरकार द्वारा कॉलेजियम के पास पुनर्विचार हेतु वापस लौटा दिया गया था|
  • कॉलेजियम द्वारा नवम्बर 2016 में इन 43 नामों में से 37 को पुन: केंद्र सरकार के पास भेज दिया गया, जबकि शेष 6 नामों में से 3 को खारिज कर दिया, जबकि 3 नामों को कॉलेजियम के तहत लंबित रखा गया है

भारत का महान्यायवादी

  • संविधान के अनुच्छेद 76 के अंतर्गत, भारत का महान्यायवादी (Attorney General) भारत सरकार का मुख्य कानूनी सलाहकार तथा उच्चतम न्यायालय में सरकार का प्रमुख अधिवक्ता होता है।
  • महान्ययवादी की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। जो व्यक्ति उच्चतम न्यायालय का न्यायधीश बनने की योग्यता रखता है, राष्ट्रपति ऐसे किसी व्यक्ति को महान्यायवादी के पद पर नियुक्त कर सकता है।
  • महान्यायवादी का कर्तव्य कानूनी मामलों में केंद्र सरकार को सलाह देना तथा कानूनी प्रकृति की उन जिम्मेदारियों का निर्वाह करना है जो राष्ट्रपति द्वारा उनको सौंपी जाती हैं।
  • अपने कर्तव्य के निर्वहन के दौरान उसे देश के किसी भी न्यायालय में उपस्थित होने का अधिकार होता है।
  • उसे संसद की कार्यवाही में भी भाग लेने का अधिकार होता है, हालाँकि उसे सदन में मतदान का अधिकार नहीं होता है।
  • उसके कामकाज में सहायता के लिये सॉलिसिटर जनरल और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल होते हैं।

कॉलेजियम प्रणाली

  • देश की अदालतों में जजों की नियुक्ति की प्रणाली को कॉलेजियम व्‍यवस्‍था कहा जाता है।
  • 1990 में सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों के बाद यह व्‍यवस्‍था बनाई गई थी।
  • कॉलेजियम व्‍यवस्‍था के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश के नेतृत्‍व में बनी सीनियर जजों की समिति जजों के नाम तथा नियुक्ति का फैसला करती है।
  • सुप्रीम कोर्ट तथा हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति तथा तबादलों का फैसला भी कॉलेजियम ही करता है।
  • हाईकोर्ट के कौन से जज पदोन्‍नत होकर सुप्रीम कोर्ट जाएंगे यह फैसला भी कॉलेजियम ही करता है।
  • कॉलेजियम व्‍यवस्‍था का उल्‍लेखन न तो मूल संविधान में है और न ही उसके किसी संशोधन में।

राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी)

एनजेएसी कानून को 99 अधिनयम एक्ट के तहत संविधान में संशोधन कर 13 अगस्त 2014 लोकसभा में पास किया गया था।

    • संविधान (99वां संशोधन) अधिनियम, 2014 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) की संरचना एवं कामकाज का जिक्र था.
    • अधिनियम में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग' द्वारा सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के चयन के लिए एक पारदर्शी एवं व्यापक आधार वाली प्रक्रिया का उल्लेख किया गया था.
    • पूर्ववर्ती कॉलेजियम प्रणाली की तरह ही राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग' के अध्यक्ष भी भारत के प्रधान न्यायाधीश ही होंते.
    • राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग' के सदस्यों में सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठ न्यायाधीश, केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री, भारत के प्रधानमंत्री की समिति द्वारा मनोनीत दो विख्यात व्यक्ति होंगें.

टिप्पणी : सुप्रीम कोर्ट ने सरकार द्वारा जजों की न्युक्ति के लिए संविधान मे संशोधन कर बनाए गए 99 अधिनियम एक्ट, 2014 राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) कानून को असंवैधानिक करार दिया गया।

 

 

 

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