सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र -2 : शासन व्यवस्था, संविधान, शासन प्रणाली, सामाजिक न्याय तथा अन्तर्राष्ट्रीय संबंध |
सन्दर्भ
वास्तव में ही अपने पराये की पहचान आपत्तिकाल में ही हुआ करती है। मित्र वही होता है जो आपत्ति में आपके साथ खड़ा हो। यह ठीक है कि आज के विश्व में भारत की आवाज के साथ आवाज निकालने वाले अनेकों देश हैं ऐसे में इजराइल दुनिया के सबसे छोटे व नए राष्ट्रों में से एक है, जो चारों तरफ से दुश्मन देशों से गिरा हुआ है और दुश्मन देश भी ऐसे हैं जो इज़राइल (Israel) को किसी भी तरीके से खत्म कर देना चाहते हैं, लेकिन फिर भी इजराइल से उसके शत्रु देश घबराते है, इजराइल नहीं.
हाल ही में, अमेरिकी जेविश समिति के माध्यम से कहा गया है कि अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन के अंतर्गत भारत-इज़राइल संबंधों में सुधार की सम्भावनाओं को बल मिलेगा| समिति के मुताबिक, नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा पहले से ही भारत-इज़राइल संबंधो में सुधार के प्रयास हो रहे हैं तथा आगे की परिस्थितियाँ और भी अनुकूल नज़र आ रही हैं|
तुलसीदास जी ने कहा है-
धीरज, धर्म, मित्र अरू नारी।
आपतकाल परखिये चारी।।
इतिहास
1- 1992 तक भारत तथा इजराइल के मध्य किसी प्रकार के सम्बन्ध नहीं रहे। इसके मुख्यतः दो कारण थे- पहला, भारत गुट निरपेक्ष राष्ट्र था जो की पूर्व सोवियत संघ का समर्थक था तथा दूसरे गुट निरपेक्ष राष्ट्रों की तरह इजराइल को मान्यता नहीं देता था। दूसरा मुख्य कारण भारत फिलिस्तीन की आज़ादी का समर्थक रहा।
2-यहाँ तक की 1947 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र फिलिस्तीन (उन्स्कोप) नमक संगठन का निर्माण किया परन्तु 1989 में कश्मीर में विवाद तथा सोवियत संघ के पतन तथा पाकिस्तान के गैर कानूनी घुसपैठ के चलते राजनितिक परिवेश में परिवर्तन आया और भारत ने अपनी सोच बदलते हुए इजराइल के साथ संबंधो को मजबूत करने पर जोर दिया और 1992 में नए दौर की शुरुआत हुई।
3-भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की हार के बाद भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आते ही भारत और इजराइल के मध्य सहयोग बढ़ा और दोनों राजनितिक दलों की इस्लामिक कट्टरपंथ के प्रति एक जैसे मानसिकता होने की वजह से और मध्य पूर्व में यहूदी समर्थक नीति की वजह से भारत और इजराइल के सम्बन्ध प्रगाढ़ हुए। आज इजराइल, रूस के बाद भारत का सबसे बड़ा सैनिक सहायक और निर्यातक है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- अमेरिकी जेविश समिति ने इस बात पर बल दिया है कि अमेरिका, भारत और इज़राइल मिलकर परस्पर संबंधो को नई ऊँचाईयों पर ले जाएंगे|
- दरअसल, अरब देशों और फिलिस्तीन के संबंध में भारत की एक स्पष्ट विदेश नीति है, साथ ही इज़रायल के साथ भी अच्छे रिश्ते हैं, जिन्हें वह और आगे बढ़ाना चाहता है।
- भारत की विदेश नीति स्पष्ट है कि उसे साझेदार चाहिये और इज़रायल के रुप में उसे एक भरोसेमंद सहयोगी मिला हुआ है। खास बात यह है कि दोनों देशों के रिश्ते में किसी बाहरी तत्त्व का हस्तक्षेप नहीं है।
- जहाँ तक उपकरणों की खरीद का सवाल है, भारत-इज़रायल संबंध केवल रक्षा खरीदार और विक्रेता भर तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि दोनों देश हमेशा से बाह्य आक्रमण के भुक्तभोगी रहे हैं| अतः रक्षा एवं सुरक्षा क्षेत्र में दोनों की साझेदारी एक-दूसरे की ज़रूरत है।
- गौरतलब है कि भारत को नए रक्षा उपकरण उपलब्ध कराने के संबंध में कोई नया घटनाक्रम सामने नहीं आया है, लेकिन इज़रायल का कहना है कि वह भारत को तमाम रक्षा उपकरण (जिनकी भारत को ज़रूरत है) देने के लिये राजी है।
क्यों जरुरी हैं,इजराइल के साथ रणनीतिक साझेदारी
- इजराइल (Israel) दुनिया का एकमात्र यहूदी राष्ट है तथा इजरायल की यह नीति है कि पूरी दुनिया में अगर कहीं भी कोई भी यहूदी रहता है तो वह इजरायल का नागरिक माना जाएगा।
- इसराइल की राष्ट्र भाषा हिब्रू है तथा हिब्रू के बारे में यह कहा जाता है कि मध्यकाल में हिब्रू भाषा का अंत हो गया था तथा इस भाषा को कोई भी सीखने वाला नहीं बचा था। लेकिन इजरायल की स्थापना के बाद राष्ट्र भक्त यहूदीयो ने अपनी भाषा हिब्रू को इजराइल अधिकारिक भाषा बनाया और इस प्रकार हिब्रू का पुनःजन्म हुआ। इजराइल की दो अधिकारिक भाषा है, हिब्रू और अरबी। यह अपने भारत की तरह नहीं जिसने अपनी राष्ट्रीय भाषा बोलने में ही शर्म आती है।
- इजराइल (Israel) दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहां के प्रत्येक नागरिक को मिलिट्री ट्रेनिंग अनिवार्य है तथा इजराइल का प्रत्येक नागरिक कुछ समय के लिए सेना में काम करना अनिवार्य है, चाहे वह उस देश के प्रधानमंत्री का बेटा क्यों ना हो। इसी प्रकार से इजराइल में महिलाओं को भी मिलिट्री ट्रेनिंग लेना अनिवार्य है।आप समझे मित्रों, हम तो महिलाओं को देवी के रुप में पूजते ही रह गए लेकिन वास्तविक रूप में महिला शक्ति अहमियत इसराइल में मानी जाती है।
- खोखले वोट बैंक के कारण भारत के किसी भी प्रधानमंत्री ने अभी तक इजरायल (Israel) की कोई यात्रा नहीं की है तथा नरेंद्र मोदी जी भारत के पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने सारे वोट बैंक के मिथक तोड़ते हुए इजराइल की यात्रा की।
निष्कर्ष
- ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप-मोदी और नेतान्याहू द्वारा वैश्विक कूटनीति में एक नया गठबंधन देखने को मिलेगा| तीनों देशों के नागरिकों के आपसी स्तर पर विशेष संबंध हैं और वर्तमान वैश्विक परिस्थितियाँ इन रिश्तों को नए आयाम दे सकती हैं|
- गौरतलब है कि पिछले ढाई साल में भारत-इज़रायल संबंध काफी बेहतर हुए हैं, लेकिन मौजूदा सरकार के दौरान संबंध सापेक्ष तौर पर दिख रहे हैं। दोनों देशों के नेतृत्व की राजनीतिक इच्छा शक्ति द्विपक्षीयसहयोग को बढ़ाने को लेकर पहले की तुलना में इस समय कहीं ज़्यादा है।
- निःसंदेह भारत और इज़राइल के व्यावसायिक संबंधों में भी अभूतपूर्व बढोतरी हुई, लेकिन कृषि क्षेत्र में सहयोग सराहनीय नहीं है। ध्यान देने वाली बात है कि पानी की कमी और विकट चुनौतियाँ होने के बावजूद भी इज़रायल ने तकनीकी विकास के माध्यम से फसल उत्पादन के क्षेत्र में नया आयाम स्थापित किया है। भारतीय किसानों को इज़रायली तकनीक का लाभ मिल सके, इसके लिये भारत और इज़राइल को परम्परागत समझौतों से इतर कृषि के तकनीकी विकास से संबंधित समझौतों पर अधिक ध्यान केन्द्रित करने की ज़रूरत है|