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1980 के दशक में भारत ने विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए दोहरे कराधान से सम्बंधित समस्या के समाधान की दिशा में पहल करते हुए मॉरिशस के साथ दोहरे कराधान से बचाव के लिए समझौता (DTAA)संपन्न किया.यह समझौता संसाधनों के साथ-साथ विदेशी मुद्रा के अभाव का सामना कर रही भारतीय अर्थव्यवस्था की ज़रुरत था. इसके जरिये विदेशी निवेश को गति प्रदान कर संसाधनों की किल्लत को दूर करने की कोशिश की गयी.
प्रमुख प्रावधान:
- इस समझौते के तहत् मॉरिशस में पंजीकृत निवेशकों द्वारा भारत में अर्जित पूंजीगत लाभ से होने वाली आय का आकलन मॉरिशस में होता है जहाँ पूंजीगत लाभ को आयकर से मुक्त रखा गया है. अत: मॉरिशस के निवेशकों को भारत में अर्जित पूंजीगत लाभ पर आयकर नहीं देना पड़ताहै।
- इस व्यवस्था का लाभ उठाने के लिए आवश्यक है कि वह फर्म मॉरिशस के फर्म के रूप में पंजीकृत हो. मॉरिशस की उदार अर्थव्यवस्था के अंतर्गत कोई भी विदेशी वहां के किसी नागरिक के साथ मिलकर एक नया फर्म बना सकता है. ऐसे फर्म को मॉरिशस का फर्म माना जाता है और इसके लिए टैक्स-रेजीडेंसी सर्टिफिकेट जारी किया जाता है जिसके आधार पर DTAA के लाभों का दावा किया जा सकता है.
- इस व्यवस्था का लाभ उठाकर विदेशी निवेशकों के साथ-साथ भारतीयों निवेशकों ने अपनी पूंजी को मॉरिशस के रास्ते भारतीय पूँजी बाज़ार में निवेश करना शुरू किया।
समझौते से सम्बद्ध समस्या:
1- इसने प्रगतिशील प्रत्यक्ष करारोपण के जरिये कर-राजस्व जुटाने की भारत की क्षमता को भी प्रतिकूलतः प्रभावित किया. इसके कारण न केवल अवैध राउंड ट्रिपिंग(भारतीय पूंजी का ही चक्कर लगाकर मॉरिशस या किसी देश के रास्ते भारत पहुंचना) को बढ़ावा मिला, वरन भारतीय कर-संरचना पर व्यापक प्रभाव (Cascading Effect) भी पड़ा. इसका अंदाज़ा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि 2012-13 में 90,000 करोड़ की आय लॉन्गटर्म कैपिटल गेन्स के मद में हुई जिसमें 10,000 करोड़ की आय महज एक सौ लोगों के खाते में गयी जो इस बात का संकेत देता है कि यह भारतीय समाज में आय की विषमता को भी बढा रहा है. इसकी भरपाई के लिए सरकार ने अप्रत्यक्ष कर में वृद्धि की है,
2-इस समझौते ने कर-संरचना में जो विकृति उत्पन्न की, उसे दुरूस्त करने के लिए सूचीबद्ध कम्पनियों के शेयरों में निवेश को इस आधार पर 2004 में ही लॉन्गटर्म कैपिटल-गेन्स टैक्स से छूट दिया जा रहा है ताकि मॉरिशस-रूट से निवेश करने वालों के साथ घरेलू निवेशकों को लेवल प्लेइंग फील्ड उपलब्ध करवाया जा सके.अब इसी तर्क के आधार पर जनवरी,2016 में सेबी द्वारा नारायणमूर्ति की अध्यक्षता में गठित समिति ने असूचीबद्ध निजी कम्पनियों के शेयरों में किये गए दीर्घकालिक निवेश (एक साल से अधिक समय के लिए किये गए निवेश) को लॉन्गटर्म कैपिटल-गेन्स टैक्स से छूट देने का सुझाव दिया. ध्यातव्य है कि इन छूटों के कारण होनेवाली राजस्व-हानि की भरपाई के लिए प्रतिभूति लेन-देन कर (Security Transiction Tax) लगाया गया
3-STT की वजह से निवेश की प्रकृति बदली, परिणामस्वरूप निवेशकों का रूझान शेयरों से जोखिम वाले डेरिवेटिव्स की ओर बढ़ा. फलतः 2016 के बजट के जरिये डेरिवेटिव्स के लेन-देन पर लगने वाले कर में वृद्धि की गयी ताकि शेयरों के साथ लेवल प्लेइंग फील्ड सृजित की जा सके.
मतलब यह कि 1983 में मॉरिशस के साथ संपन्न समझौते ने घरेलू कर-संरचना में जो विकृतियाँ उत्पन्न की, उसे दुरूस्त करने की कोशिशें अबतक जारी हैं, पर उन्हें अबतक दुरूस्त नहीं किया जा सका है. यही वह पृष्ठभूमि है जिसमें मॉरिशस के साथ DTAA की समीक्षा की मांग लम्बे समय से की जा रही है. हाल में भारत सरकार द्वारा कालेधन के विरुद्ध चलाये गए अभियान ने इस दबाव को बढाया. परिणामतः मई,2016 में इस समझौते में संशोधन की दिशा में पहल करनी पडी.
मॉरिशस के साथ दोहरे कराधान से बचाव के लिए समझौते (DTAA) की समीक्षा:
इस समझौते के इस दुरुपयोग को रोकने के लिए भारत सरकार ने हाल में इसकी समीक्षा की है। इस समीक्षा के जरिये अब यह व्यवस्था की गई है कि:
- इस समझौते के तहत् भारत में किए जाने वाले निवेश पर कैपिटल गेन्स टैक्स में छूट के लिए मॉरिशस स्थित कंपनी को यह साबित करना होगा कि उसने पिछले साल में मॉरीशस में कम–से–कम27 लाख रुपये का खर्च किया है।
- मॉरीशस का पता, दफ्तर और मॉरीशस में कुछ लेन-देन करना अनिवार्य हो जाएगा।
- इस संशोधन से फर्जी कंपनी बनाकर मॉरीशस के रास्ते भारतीय पूंजी की राउंड ट्रिपिंग पर अंकुश लगेगा और कालेधन के उत्पादक निवेश की सम्भावना भी सीमित होगी.
विश्लेषण:
भारत द्वारा मॉरिशस के साथ दोहरे कराधान से बचाव समझौते, 1983, जिसके तहत् भारत में किये जानेवाले निवेश पर प्राप्त पूंजीगत लाभों पर कर लगाने का एकमात्र अधिकार मॉरिशस को दिया गया, में कार्यपालिका के आदेशों के जरिये किया गया संशोधन आनेवाले समय में भारतीय अर्थव्यवस्था और समाज के लिए दूरगामी प्रभाव वाला साबित साबित होगा. इसे केवल कालेधन और राउंड ट्रिपिंग के परिप्रेक्ष्य में देखे जाने के बजाय भारत के विकृत कर-संरचना और इसके कारण आय-विषमता के परिप्रेक्ष्य में होने वाली वृद्धि के आलोक में देखे जाने की जरूरत है.
जहाँ तक इस समीक्षा के कारण निवेश-प्रवाह पर पड़ने वाले असर का प्रश्न है, तो वर्ष 2015 की पहली छमाही में भारत ने 31 अरब अमेरिकी डॉलर का विदेशी निवेश हासिल किया था, जो कि अमेरिका एवं चीन द्वारा हासिल किए गए विदेशी निवेश से अधिक था, लेकिन इसमें राउंड-ट्रिपिंग की महत्वपूर्ण भूमिका थी। लेकिन, अब कैपिटल गेन्स टैक्स से बचना आसान नहीं होगा.इसीलिये मॉरिशस के साथ समझौते की समीक्षा के बाद विदेशी निवेश में भारी गिरावट आयेगी, इसकी संभावना कम है क्योंकि दीर्घावधिक निवेश का प्रवाह मूल रूप से अर्थव्यवस्था के फण्डामेंटल्स को ध्यान में रखता है, न कि टैक्स-आर्बिट्रेज को। फिर भी, मॉरीशस के साथ एग्रीमेंट में संशोधन सही दिशा में उठाया गया कदम है।