पब्लिक फोरम: ‘Listen First’—अर्थात ‘पहले सुनो

पब्लिक फोरम: ‘Listen First’—अर्थात ‘पहले सुनो

प्रसारण तिथि- 26.06.2017

चर्चा में शामिल मेहमान
संजीव कक्कड़
(सदस्य-व्यसन मुक्ति पर आर्ट ऑफ लिविंग की राष्ट्रीय समिति)
डॉ. राकेश चड्ढा
(प्रमुख-नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर-NDDTC एम्स)
एंकर- शालिनी वर्मा

सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3: प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन।
(खंड-19: सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ एवं उनका प्रबंधन—संगठित अपराध और आतंकवाद के बीच संबंध।)

संदर्भ


प्रतिवर्ष 26 जून को विश्वभर में संयुक्त राष्ट्र के मादक पदार्थ और अपराध कार्यालय (United Nations Office on Drugs & Crime-UNODC) द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मादक पदार्थ निरोधक दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मादक पदार्थों/द्रव्यों पर नियंत्रण लगाने और समाज में इनके प्रति जागरूकता उत्पन्न करने के लिये 7 दिसंबर, 1987 को एक प्रस्ताव पारित कर 26 जून को पूरी दुनिया में अंतर्राष्ट्रीय मादक पदार्थ निरोधक दिवस मनाने की अपील की थी। इस वर्ष इस दिवस की  थीम है ‘Listen First’—अर्थात ‘पहले सुनो—बच्चों और युवाओं की बात सुनो, यही उन्हें स्वस्थ और सुरक्षित बनाने की दिशा में पहला कदम है|’

 भारत में स्थिति:

सबसे पहले तो यह जानना होगा कि आखिर यह किस प्रकार की समस्या है? कई बार कहा जाता है कि यह एक ‘आदत’ है| यदि यह आदत है तो हमें मानना होगा कि यह ‘बीमारी’ नहीं है| इसे ‘चिकित्सकीय समस्या’ कहना भी ठीक नहीं होगा| इसे  सामाजिक-चिकित्सकीय समस्या कहा जा सकता है| यूं तो देशभर में मादक पदार्थों और नशीली दवाओं का चलन बढ़ रहा है, लेकिन मिजोरम, पंजाब और मणिपुर के लोग सबसे अधिक नशीली दवाओं का इस्तेमाल करते हैं। इसका एक कारण इन राज्यों का अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं और मादक पदार्थों की तस्करी वाले क्षेत्रों—गोल्डन ट्रायंगल  (म्याँमार , थाईलैंड और लाओस) और  गोल्डन क्रीसेंट ( ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान) के निकट होना हो सकता है।

कुछ उपाय:

1-इस समस्या को केवल सरकार और डॉक्टरों की समस्या मान लेना ठीक नहीं, यह एक सामजिक समस्या अधिक है, जिसके निराकरण में एनजीओ भी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर सकते हैं और वे ऐसा कर भी रहे हैं|

2-मनोचिकित्सकों तथा काउंसलरों की कमी इस समस्या के निदान में बाधक बनती है| इसलिये इस समस्या का निदान  आध्यात्मिक, मनश्च, सामाजिक तथा चिकित्सकीय तरीकों से करना चाहिये|

3-अनेक अध्ययनों से पता चलता है कि मादक पदार्थ दुरुपयोग के बदलते परिदृश्य और घटनाक्रम महिलाओं और बच्चों के बीच मादक द्रव्यों के उपयोग में वृद्धि दर्शाते हैं|

4-औषधि मादक द्रव्यों का दुरुपयोग और विशेषकर घूमने वाले बच्चों में सांस से खींचकर मादक द्रव्यों के उपयोग में वृद्धि भी गंभीर चिंता का विषय है। 

5-देश की अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर चौकसी बढ़ाकर ड्रग ट्रैफिकिंग को कम किया जा सकता है| इसके लिये सुरक्षाकर्मियों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये|

6-इस संगठित अपराध से और अधिक कारगर तरीके से निपटने के लिये माफिया जगत के बजाय उनके बाजारों को बाधित करने पर ज़ोर देना चाहिये।  

इसके अलावा, मांग में कमी (Demand Reduction) तथा आपूर्ति में कमी (Supply Reduction) के सिद्धांत पर भी काम किया जाता है|  जनता को यह सचेत करना कि यह हानिकारक ड्रग है, इसे नहीं लेना चाहिये| समस्या का पता जल्दी चल जाए तो उपचार भी जल्दी हो जाता है, यह मांग में कमी का प्रमुख आधार है| आपूर्ति में कमी के सिद्धांत में कड़े कानूनी उपायों से ड्रग्स की उपलब्धता को कम करने का प्रयास किया जाता है| अवैध ड्रग्स के निर्माण पर नियंत्रण लगाकर भी ऐसा करने का प्रयास किया जाता है| 

सरकारी प्रयास:

नशीली दवा दुरुपयोग एक मनो-सामाजिक चिकित्सा समस्या है, जिसके लिये चिकित्सा उपचार और मनो-सामाजिक हस्तक्षेप, दोनों अपेक्षित हैं। 

 1-भारत में स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 की धारा 71 के अंतर्गत सरकार को नशीले पदार्थों/दवा के आदी लोगों की पहचान, इलाज और पुनर्वास केन्द्र की स्थापना करने का अधिकार प्राप्त है। 

2-नोडल एजेंसी के रूप में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय शराब और मादक द्रव्य दुरुपयोग निवारण स्कीम के अंतर्गत इसके आदी लोगों के लिये स्वैच्छिक संगठनों द्वारा चलाए जा रहे एकीकृत पुनर्वास केन्द्र को सहायता प्रदान करता है।

निष्कर्ष
हर साल हर देश इस दिवस के अवसर पर कई संकल्प लेता है, लेकिन केवल संकल्प लेने से काम नहीं चलने वाला; इस दिशा में काफी कुछ ठोस करने की ज़रूरत है, जो धरातल पर दिखाई देना चाहिये| हमारे देश में भी नशीली दवाओं/मादक पदार्थों का दुरुपयोग एक गंभीर चिंता बनकर उभरा है जो देश की भौतिक, सामाजिक-आर्थिक दशा को बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है। आधुनिक जीवन के तनाव और परेशानियों ने व्यक्तियों को मादक द्रव्य दुरुपयोग की समस्या से ग्रसित होने के लिये अधिक असुरक्षित बना दिया है। मादक द्रव्य की आदत न केवल इसके आदी व्यक्तियों को प्रभावित करती बल्कि परिवार और समाज को भी बड़े पैमाने पर नुकसान पहुँचाती है। युवा वर्ग का मादक पदार्थों के प्रति आकर्षण के विभिन्न कारण हो सकते हैं, जो पारिवारिक सामाजिक, व्यक्तिगत एवं मनोवैज्ञानिक हो सकते हैं| इसे देखते हुए विभिन्न लक्षित समूहों के लिये विभिन्न हस्तक्षेपों के माध्यम से पर्याप्त संख्या में प्रयास किए जा रहे हैं फिर भी मादक द्रव्य दुरुपयोग के बदलते परिदृश्य में प्रभावी सेवा आपूर्ति के लिये मानव संसाधन विकास और व्यावसायिक प्रशिक्षण की आवश्यकता है। नशीली दवाओं के दुरुपयोग और उसके परिणामों के प्रति सजग करने के लिये खुले मंच पर चर्चाएँ, विशेषज्ञों द्वारा व्‍याख्‍यान, नुक्‍कड़ नाटक, स्‍कूलों में चित्रकला प्रतियोगिता जैसी गतिविधियाँ आयोजित की जानी चाहियें।

 

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