विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की कि 11वीं मंत्रिस्तरीय बैठक का सार:
प्रसारण तिथि- 12/13.12.2017 |
सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र -2: शासन व्यवस्था, संविधान, शासन प्रणाली, सामाजिक न्याय तथा अंतरराष्ट्रीय संबंध |
संदर्भ
हाल ही में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स में हुई 4-दिवसीय 11वीं मंत्रिस्तरीय बैठक।
पृष्ठभूमि
2015 में नैरोबी में हुई डब्ल्यूटीओ की 10वीं मंत्रिस्तरीय बैठक के घोषणापत्र में दोहा समझौते की दोबारा पुष्टि न होने के मुद्दे पर विश्व व्यापार संगठन के सदस्य देशों के बीच मतभेद सामने आए थे। भारत और अन्य विकासशील देश, विशेषकर जी-33, एलडीसी और अफ्रीका समूह और एसीपी, दोहा दौर के समझौते की दोबारा पुष्टि चाहते थे। इस बार की बैठक भी खाद्य सुरक्षा के मुद्दे पर अमेरिकी विरोध के चलते बेनतीजा रही।
क्या है डब्ल्यूटीओ? विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization-WTO) एक ऐसी संस्था है जो विश्व व्यापार के लिये दिशा-निर्देश जारी करती है तथा नए व्यापार समझौतों में बदलाव और उन्हें लागू कराने के लिये उत्तरदायी है। भारत भी इसका एक सदस्य देश है। कुल 164 देश इसके सदस्य हैं और चीन इसमें 2001 में शामिल हुआ था। डब्ल्यूटीओ की सबसे बड़ी संस्था मंत्रिस्तरीय परिषद (Ministerial Conference) है, जो प्रत्येक दो वर्ष में अन्य कार्यों के साथ संस्था के महासचिव और मुख्य प्रबंधकर्ता का चुनाव करती है। साथ ही यह सामान्य परिषद (General Council) का काम भी देखती है, जो विभिन्न देशों के राजनयिकों से मिलकर बनती है और संस्था के प्रतिदिन के कामों को देखती है। इसमें होने वाले फैसलों को लागू कराने के लिये सभी सदस्य देशों के हस्ताक्षर होने ज़रूरी हैं। विदित हो कि विश्व के सभी देशों को व्यापार के लिये एक मंच उपलब्ध कराने के उद्देश्य से द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1948 में बनाए गए गैट (General Agreement on Tarrifs & Trade-GATT) के स्थान पर 1 जनवरी 1995 को डब्ल्यूटीओ की स्थापना हुई थी। डब्ल्यूटीओ को बनने में काफी समय लगा और 1986 से 1994 तक चले उरुग्वे वार्ताओं के लंबे दौर के बाद ही इसकी स्थापना संभव हो पाई। डब्लयूटीओ का मुख्यालय जेनेवा, स्विट्जरलैंड में है। |
क्या हुआ इस बैठक में?
जब 10 दिसंबर को 164 देशों वाले डब्ल्यूटीओ की मंत्रिस्तरीय परिषद की बैठक शुरू हुई तो इसके एजेंडे में सब्सिडी और आयात शुल्क जैसे मुद्दे सबसे ऊपर थे।
बैठक में विकासशील देशों ने खाद्य समस्या का स्थायी समाधान खोजने पर ज़ोर दिया।
विकसित देशों ने निवेश सुगमता, ई-कॉमर्स और एमएसएमई को डब्ल्यूटीओ के एजेंडा में शामिल करने जैसे नए मुद्दों को बातचीत में शामिल करने पर ज़ोर दिया।
विकसित और विकासशील देश अपने-अपने एजेंडों पर अड़े रहे और बैठक में गतिरोध भी हुआ। अपने-अपने मुद्दों पर विकसित और विकासशील देशों के बीच मतभेद खुलकर सामने आ गए।
बैठक में विकासशील देशों ने आयात शुल्क बढाने के लिये छूट को ज़रूरी बताते हुए कहा कि कृषि उत्पादों का आयात बढ़ने से घरेलू उत्पादों का उचित मूल्य नहीं मिल पाता तथा ऐसे में अतिरिक्त शुल्क लगाने के अलावा अन्य कोई रास्ता नहीं रहता।
हालाँकि मत्स्यन और ई-कॉमर्स के क्षेत्र में प्रगति हुई, क्योंकि इनकी कार्ययोजना पर सहमति बनी।
विवाद का मुद्दा है सब्सिडी सीमा
भारत बार-बार यह कहता रहा है कि उसकी कृषि संबंधी नीतियों को स्थायी तौर पर बहुराष्ट्रीय निगरानी के दायरे से बाहर रखना चाहिये। डब्ल्यूटीओ के नियमों के अनुसार खाद्य सब्सिडी कुल कृषि उत्पादन के 10% से अधिक नहीं होनी चाहिये। इसकी कीमत का आकलन करने के लिये 1986-88 को आधार वर्ष माना जाता है। भारत इसके लिये नियमों में संशोधन की मांग करते हुए कहता रहा है कि आधार वर्ष बदलना भी ये ज़रूरी है, क्योंकि तभी वह देश में खाद्य सुरक्षा मुहैया कराने की स्थिति में होगा। भारत का कहना है कि सब्सिडी की 10% की ऊपरी सीमा लागू हुई तो उसके लिये खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम जारी रख पाना संभव नहीं हो पाएगा। भारत में लगभग 60 करोड़ लोग खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम के दायरे में आते हैं।
ग्रीन बॉक्स सब्सिडी इस मामले में विकसित देशों के दोहरे मापदंड हैं--अमेरिका ने 2012 में कृषि के लिये 130 अरब डॉलर की सब्सिडी दी थी, तो यूरोपीय संघ ने लगभग 90 अरब यूरो की सहायता दी। लेकिन इसमें से अधिकतर सब्सिडी ग्रीन बॉक्स के तहत संरक्षित थी, जिसे विश्व व्यापार संगठन में इसे चुनौती नहीं दी जा सकती। पहले ये सब्सिडियां ब्लू बॉक्स और अंबर बॉक्स में थीं, जिन्हें ग्रीन बॉक्स में बदल दिया गया। हैरत की बात यह है कि डब्ल्यूटीओ की किसी भी बैठक में विकसित देशों द्वारा दी जाने वाली ग्रीन बॉक्स सब्सिडी पर कोई चर्चा ही नहीं हुई, जबकि विकास्स्शेल देशों द्वारा दी जाने वाली अपेक्षाकृत कम सब्सिडी को मुद्दा बनाकर उछाला जाता रहा।
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विश्व व्यापार संगठन का कोई भी सदस्य देश हर साल अपनी पैदावार की कीमत का 10% से ज़्यादा खाद्य सब्सिडी नहीं दे सकता है।
पैदावार की कीमत के आकलन के लिये 1986-88 को आधार बनाया गया है और वर्तमान परिस्थितियों में भारत इसे अप्रासंगिक मानता है।
भारत की आपत्ति यह थी कि देश में खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम लागू करने पर सब्सिडी 10% से ज़्यादा हो जाएगी, इसलिये उसे इस नियम में विशेष छूट दी जानी चाहिये।
इसके समाधान के लिये डब्ल्यूटीओ की 2013 में बाली में हुई बैठक में पीस क्लॉज़ नाम से एक अस्थायी समाधान निकाला गया।
इस पीस क्लॉज़ के अंतर्गत व्यवस्था दी गई कि कोई भी विकासशील देश यदि 10% से ज़्यादा सब्सिडी देता है तो कोई अन्य देश इस पर आपत्ति नहीं करेगा।
चूँकि यह एक अस्थायी व्यवस्था के तौर पर ढूँढा गया विकल्प था, अतः भारत इस मुद्दे का स्थायी समाधान देश की खाद्य सुरक्षा के पक्ष में चाहता था।
इस मुद्दे को लेकर अमेरिका के साथ भारत का गतिरोध जारी रहा और अमेरिका ने इसके स्थायी समाधान के लिये किये जाने वाले किसी भी प्रयास में शामिल होने से इनकार कर दिया।
जब तक इस मुद्दे का कोई स्थायी समाधान नहीं हो जाता तब तक भारत ‘पीस क्लॉज़’ के अंतर्गत मिली छूट का लाभ उठाता रहेगा।
बाली सम्मेलन(2013) में आया था अंतरिम पीस क्लॉज़ 2013 में भारत तथा अन्य विकासशील देशों को किसानों को दी जाने वाली कृषि सब्सिडी की राह में आने वाली समस्या को टालने में तब सफलता मिली थी, जब बाली में हुई डल्ब्यूटीओ के बैठक में अंतरिम पीस क्लॉज को मंज़ूरी मिली थी। बाली वार्ता को असफल होने से बचने के लिये यह सुनिश्चित किया गया कि कोई भी देश सब्सिडी से जुड़े मसले का स्थायी समाधान निकलने तक इस मुद्दे को चुनौती (डब्ल्यूटीओ डिस्प्यूट सेटलमेंट मैकेनिज्म) नहीं देगा। तब इस मुद्दे पर अलग से वार्ता कर 4 वर्ष में इसे सुलझाने की बात कही गई थी। अब ब्यूनस आयर्स में भी इस मुद्दे पर सहमति न बन पाने का अर्थ है कि यह पीस क्लॉज़ जारी रहेगा और भारत को इसके तहत मिलने वाली छूट पहले की तरह जारी रहेगी। |
भारत डब्ल्यूटीओ में ई-कॉमर्स जैसे नए मुद्दों पर विचार-विमर्श के खिलाफ नहीं है, लेकिन यह विकास एजेंडा की कीमत पर नहीं होना चाहिये। कुछ देशों ने ये नए मुद्दे उठाए हैं, यदि इन पर विचार विमर्श करना ही है तो पहले इन पर कार्यक्रम में विचार किया जाना चाहिये, इसे वार्ता की स्थिति में नहीं पहुँचाया जाना चाहिये। इन नए मुद्दों का इस्तेमाल विकास एजेंडा, विशेष रूप से दोहा दौर के महत्त्व को कम करने के लिये नहीं किया जाना चाहिये। दोहा विकास दौर जैसे लंबित मुद्दों को पहले पूरा किया जाना चाहिये। भारत किसी चीज़ के खिलाफ नहीं है, हम सिर्फ यह कह रहे हैं कि इसके लिये प्रक्रियाओं का पालन किया जाए। |
भारत ने खाद्य सुरक्षा के लिये दी जाने वाली सब्सिडी के मुद्दे पर यूरोपीय संघ के देशों के प्रतिनिधियों तथा विकासशील देशों के संगठन जी-33 के प्रतिनिधियों से समर्थन लेने का प्रयास किया।
अमेरिका का पक्ष
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भारत का पक्ष
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1-अमेरिका का मानना हैं कि कुछ देश विकासशील होने के नाम पर नाजायज़ छूट हासिल कर रहे हैं और अमेरिका कुछ कथित विकासशील देशों के नाम पर नियमों में लगातार ढील नहीं दे सकता।
2-बैठक में अमेरिका ने कहा कि वह सब्सिडी की ऊपरी सीमा (10%) में छूट देने का विरोधी है।
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1-भारत को इस बात पर आपत्ति है कि विकास की गणना जीडीपी के आँकड़ों के आधार पर की जा रही है। 2-देश के 60 करोड़ लोग गरीबी की श्रेणी में आते हैं, जिनकी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार की ज़िम्मेदारी है। 3-भारत बेशक विश्व में सबसे तेज़ी से विकास करने वाला देश है, लेकिन देश की वास्तविक प्रतिव्यक्ति आय को भी नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता, जो बहुत कम है। |
डब्ल्यूटीओ द्वारा खाद्य सब्सिडी की गणना के तरीके में संशोधन की मांग भी भारत लगातार करता आ रहा है। इस मुद्दे पर भारत को विकासशील देशों के समूह जी-33 का भी पूरा समर्थन मिला।
भारत ने किया ब्यूनस आयर्स घोषणा-पत्र का विरोध इस मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के दौरान व्यापार में महिलाओं की भागीदारी पर एक संयुक्त घोषणा-पत्र जारी किया गया, जिसे 119 सदस्य राष्ट्रों का अनुमोदन प्राप्त हुआ। महिलाओं और व्यापार पर ब्यूनस आयर्स घोषणा-पत्र का भारत ने विरोध किया। घोषणा-पत्र के संभावित प्रभाव घोषणा-पत्र में शामिल प्रावधानों का पालन होने से महिलाओं को बेहतर वेतन वाले रोज़गार मिलेंगे। संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में भी सहायता मिलेगी। लैंगिक समानता पर आधारित सतत् विकास लक्ष्य की ओर किये जा रहे प्रयासों को भी बल मिलेगा। व्यापार गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी से 2025 तक वैश्विक जीडीपी में 28 ट्रिलियन डॉलर की वृद्धि होने की संभावना है। क्यों किया विरोध: भारत का कहना है कि यह घोषणा-पत्र एक लैंगिक मुद्दे को डब्ल्यूटीओ से जोड़ता है, जबकि इस मुद्दे का व्यापार से कोई लेना-देना नहीं है। यदि आज डब्ल्यूटीओ में किसी लैंगिक मुद्दे को जगह दी जाती है, तो भविष्य में श्रम और पर्यावरणीय मानकों जैसे मुद्दे भी इस मंच पर जगह पाना चाहेंगे। एक विशुद्ध व्यापारिक संगठन होने के नाते डब्ल्यूटीओ को स्वयं को केवल व्यापारिक मुद्दों तक सीमित रखना चाहिये। विकसित देश महिला-व्यापार संबंधी नीतियों में उच्च मानकों का उपयोग कर विकासशील देशों के निर्यात को प्रभावित कर सकते हैं। इससे विकासशील देशों में महिलाओं को मिलने वाले इंसेंटिव या प्रोत्साहन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। भारत महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण और समानता का प्रबल समर्थक रहा है, लेकिन ब्यूनस आयर्स घोषणा-पत्र पर भारत की चिंताएँ सभी विकासशील देशों का प्रतिनिधित्व करती हैं। |
डब्ल्यूटीओ की मंत्रिस्तरीय वार्ताओं का क्रम
डब्ल्यूटीओ की मंत्रिस्तरीय वार्ताओं का क्रम |
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पहली वार्ता- 1996 में सिंगापुर में हुई, दूसरी वार्ता- 1998 में जेनेवा, तीसरी 1999 में सिएटल, चौथी 2001 में दोहा, पाँचवीं 2003 में कानकुन, छठी 2005 में हांगकांग में,
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सातवीं 2009 में जेनेवा, आठवीं 2011 में जेनेवा नौवीं 2013 में बाली दसवीं 2015 में नैरोबी
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निष्कर्ष:
वर्तमान में कृषि के मुद्दे पर भारत परिवर्तन के एक महत्त्वपूर्ण दौर से गुजर रहा है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली, किसानों से अनाज और दालों की खरीद, डब्ल्यूटीओ में भारत की प्रतिबद्धताओं, भारतीय खाद्य निगम द्वारा किये जाने वाले सार्वजनिक भंडारण और डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर जैसे मुद्दों को लेकर काम चल रहा है। ऐसे में भविष्य में डब्ल्यूटीओ के अंतर्गत निवेश तथा ई-कॉमर्स जैसे मुद्दों को शामिल करने से विकसित एवं विकासशील राष्ट्रों के मध्य मतभेद कम होने के बजाय और बढ़ने की संभावना है। यह भी स्पष्ट है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के 'अमेरिका फर्स्ट' नीति के तहत अमेरिका पहले भी अपना एजेंडा आगे बढ़ाने के प्रयास कर चुका है और डब्ल्यूटीओ में भी उसने इसी नीति को आगे बढ़ाया है।
दूसरी ओर भारत सहित अधिकांश विकासशील देशों ने तर्क दिया कि दोहा चक्र के दौरान पहले ही इस प्रकार के मुद्दों को उठाया जा चुका है। अतः नए मुद्दों को विश्व व्यापार संगठन के समक्ष प्रस्तुत करने से पूर्व इन मुद्दों का समाधान किये जाने की आवश्यकता है। प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक एम.एस.स्वामीनाथन का कहना है कि भुखमरी को समाप्त करना तथा आम लोगों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना कृषि संबंधी बातचीत का आधार होना चाहिये। वैसे भी अनाज की सरकारी खरीद और उसका सार्वजनिक भंडारण, दोहा विकास एजेंडा तथा छोटे किसानों के हितों का संरक्षण भारत की वरीयताओं में शामिल है और चाहे वार्ता सफल हो या असफल, इसकी चिंता किये बिना वह इन मुद्दों को डब्ल्यूटीओ के मंच पर बराबर उठाता रहता है।