सक्षम भारत : रक्षा क्षेत्र में 'मेक इन इंडिया'

सक्षम भारत : रक्षा क्षेत्र में 'मेक इन इंडिया'

प्रसारण तिथि 23-12.2017

चर्चा में शामिल मेहमान
ले.जन. (से.नि.) नरेंद्र सिंह (पूर्व थल सेना उप-प्रमुख)
रवि गुप्ता (पूर्व वैज्ञानिक, डीआरडीओ)
अजीत दुबे (रक्षा पत्रकार)

 एंकर - अनुराग पुनेठा 

सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3: प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन
(खंड-12: देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास)

संदर्भ

हाल ही में एक खबर आई थी जिसमें बताया गया था कि 'मेक इन इंडिया' के तहत पिछले दो-ढाई वर्षों में रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में काम करने वाले सरकारी उपक्रमों ने मिसाइल और वायु सुरक्षा से जुड़ी कुछ तकनीकों का देश में ही विकास कर लगभग एक लाख करोड़ रुपए की बचत की है।

पृष्ठभूमि

यह सब जानते हैं कि युद्ध में इसकी प्रासंगिकता सबसे महत्त्वपूर्ण होती है और बेहतर  प्रौद्योगिकियों वाला पक्ष ही बाज़ी जीतता है। अन्य वस्तुओं की अपेक्षा रक्षा उपकरणों के घरेलू उत्पादन की अधिक ज़रूरत है, क्योंकि इनसे न केवल बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की बचत होगी, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा चिन्ताओं को भी दूर किया जा सकेगा। देश में 'मेड इन इंडिया' को पूरी तरह से अंगीकार करने के लिये 'स्किल इंडिया' और 'स्टार्ट अप इंडिया' जैसी पहलों से रक्षा क्षेत्र में आवश्यक पारिस्थितिकीय तंत्र का निर्माण किया जा रहा है।

क्या है मेक इन इंडिया?

केंद्र सरकार ने देश में विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये 'मेक इन इंडिया' पहल की शुरुआत 25 सितंबर, 2014 को की थी।

यह पहल उन चार स्तंभों पर आधारित है, जिन्हें न केवल रक्षा विनिर्माण क्षेत्र बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी भारत में उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिये चिह्नित किया गया है। ये चार स्तम्भ हैं:

  1. नई प्रक्रियाएँ, 2. नई अवसंरचना, 3. नए क्षेत्र, 4. नई सोच।

हथियारों का सबसे बड़ा आयातक है भारत 

भारी हथियारों के मामले में भारत विश्व में सबसे बड़ा आयातक देश है। 2012 से 2016 के बीच विश्व में हुए भारी हथियारों के आयात का 13%  भारत ने किया। स्कॉटहोम इंटरनेशनल पीस रीसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) की एक रिपोर्ट के अनुसार आलोच्य अवधि में भारत के हथियार आयात में 43% की वृद्धि हुई। अमेरिका, रूस, चीन, फ्राँस और जर्मनी दुनिया के सबसे बड़े भारी हथियार निर्यातक देश हैं, जिनका कुल निर्यात में 74% हिस्सा है। 

दुनिया में हथियारों के सबसे बड़े आयातक देश के तौर पर हालाँकि भारत विदेशी कंपनियों को सौदे हासिल करने की शर्त में उच्च तकनीक को साझा करने की शर्त जोड़ता है। रक्षा तकनीक के रणनीतिक स्वरूप को देखते हुए एक हद तक इसकी संभावना है, क्योंकि कंपनियाँ व्यावसायिक हितों के आधार पर सौदों के लिये बातचीत करती हैं। लेकिन तकनीक के निर्यात पर नियंत्रण उनकी सरकारों का होता है जो अधिकांशत: तकनीक को सामरिक परिसंपत्ति के तौर पर देखती हैं। दूसरी ओर 'मेड इन इंडिया' में उत्पाद की परिकल्पना, डिज़ाइन और निर्माण की पूरी प्रक्रिया भारत में होती है, जिससे देश में बौद्धिक संपदा बनती है। रक्षा खरीद नीति में 'मेक' श्रेणी की परियोजनाओं में भारतीय कंपनी की अगुआई वाला समूह रक्षा प्लेटफॉर्म विकसित करता है, जिसमें 80% तक लागत रक्षा मंत्रालय वहन करता है।

ऐसे बचाए गए एक लाख करोड़ रुपए

                                     बचत

नौसेना

SR-SAM परियोजना 30 हज़ार करोड़ रुपए की बचत की जा चुकी है। 

 

थल सेना

हेलिना और नाग मिसाइल के स्वदेशीकरण कर 10 हज़ार करोड़ रुपए बचाए गए।

थल सेना

QR-SAM (क्विक रिस्पांस सर्फेस टू एयर मिसाइल) परियोजना में अब तक 30 हज़ार करोड़ रुपए की बचत की जा चुकी है। 

 

वायुसेना

मिसाइल परियोजना में स्वदेशीकरण को अपना कर  लगभग 30 हज़ार करोड़ रुपए बचाए गए।

 

थल सेना से जुड़ी स्वदेश निर्मित बुलेट प्रूफ जैकेट:

थल सेना के लिये भारतीय शोधकर्त्ताओं द्वारा विकसित स्वदेशी बुलेट प्रूफ जैकेट का निर्माण किया जा रहा है। इससे भी 20 हज़ार करोड़ रुपए की बचत होने का अनुमान है। इस जैकेट का वज़न (मात्र 1.5 किलो) अपने विदेशी (15 से 17 किलो) समकक्षों की तुलना में कहीं कम है। स्वदेश निर्मित इस जैकेट को 57 डिग्री तापमान में भी पहना जा सकता है। विदेशी बुलेट प्रूफ जैकेट की कीमत जहाँ लगभग डेढ़ लाख रुपए है, वहीँ इसका स्वदेशी संस्करण मात्र 50 हज़ार रुपए में उपलब्ध होगा। इस जैकेट का निर्माण अमृता यूनिवर्सिटी, कोयंबटूर के एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग ने तैयार किया है और इस कार्बन फाइबर वाले जैकेट में 20 परतें हैं। 

डीआरडीओ क्या है?

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defence Research & Development Organization-DRDO) रक्षा मंत्रालय के रक्षा अनुसंधान और विकास विभाग के तहत काम करता है। डीआरडीओ रक्षा प्रणालियों के डिज़ाइन एवं विकास के क्षेत्र में काम करता है और तीनों रक्षा सेवाओं की अभिव्यक्त गुणात्मक आवश्यकताओं के अनुसार विश्व स्तर के हथियार प्रणालियों और उपकरणों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता बढ़ाने की दिशा में काम कर रहा है । डीआरडीओ सैन्य प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहा है, जिसमें वैमानिकी, शस्त्र, युद्धक वाहन, इलेक्ट्रॉनिक्स, इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियरिंग प्रणालियाँ, मिसाइलें, नौसेना प्रणालियाँ, उन्नत कंप्यूटिंग, सिमुलेशन और जीवन विज्ञान शामिल है । 

हेलीकॉप्टर से छोड़ी जा सकने वाली मिसाइल का विकास भी देश में ही किया जा रहा है।

देश में पहली बार निजी क्षेत्र में निर्मित दो निगरानी पोत नौसेना में शामिल हो चुके हैं, जिनका निर्माण रिलायंस डिफेंस एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड ने किया है। कुछ समय पूर्व गुजरात के पीपावाव में 'शचि और श्रुति' नामक दो ऑफशोर पैट्रोल वेसेल (OPV)  लॉन्च किये गए।

एफ-16 युद्धक विमान: अमेरिका की लॉकहीड मार्टिन ने भारत में एफ-16 युद्धक विमान बनाने का प्रस्ताव किया है। इसे भारत एफ-16 विमानों का रखरखाव करने वाला ग्लोबल हब बन सकता है। संभावना है कि लॉकहीड मार्टिन भारत के टाटा समूह से इसके लिये हाथ मिला सकती है। वर्तमान में विश्वभर में लगभग 3000 ऐसे विमान कार्यरत हैं और भारत इनका सर्विसिंग केंद्र बन सकता है।

लाइसेंस नियमों में बदलाव: रक्षा उत्पादन क्षेत्र में 'मेक इन इंडिया' को बढ़ावा देने के लिये रक्षा उत्पादों की सूची में से कई मदों पर लाइसेंस की आवश्यकता समाप्त कर दी गई है। इस संबंध में बनाए गए नए नियम गृह मंत्रालय द्वारा छोटे हथियारों के निर्माण के लिये प्रदान किये जाने वाले लाइसेंसों पर लागू होंगे। साथ ही ये नियम औद्योगिक नीति एवं संवर्द्धन विभाग के तहत लाइसेंस प्राप्त करने वाले टैंक, हथियारों से लैस लड़ाकू वाहन, रक्षक विमान, स्पेस क्राफ्ट, युद्ध सामग्री और अन्य हथियारों के कल-पुर्जे तैयार करने वाली इकाइयों पर लागू होंगे। 

उत्पादन के लिये दिया गया लाइसेंस अब हमेशा के लिये वैध होगा।

प्रत्येक 5 वर्ष के बाद लाइसेंस के नवीकरण की शर्त को हटा दिया गया है।

हथियार उत्पादकों द्वारा निर्मित छोटे और हल्के हथियारों को केंद्र और राज्य सरकारों को बेचने के लिये गृह मंत्रालय की पूर्व अनुमति की अब ज़रूरत नहीं होगी।

जितने उत्पादन की अनुमति है यदि उससे 15% तक उत्पादन ज्यादा किया जाता है तो इसके लिये सरकार से स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होगी।

सिर्फ उत्पादक इकाई को लाइसेंस देने वाले प्राधिकरण को सूचना देनी होगी।

रक्षा उत्पादों के देश में निर्माण के लिये 100% एफडीआई

पिछले वर्ष जून में केंद्र सरकार ने रक्षा उत्पादन क्षेत्र में 100% एफडीआई की अनुमति दी थी। 

इसमें से 49% तक एफडीआई को सीधे मंज़ूरी देने का प्रावधान है और इससे अधिक के लिये अलग से मंज़ूरी लेनी पड़ती है। 

पहले रक्षा क्षेत्र में अधिकतम 49% विदेशी निवेश की अनुमति थी, लेकिन 'स्टेट ऑफ द आर्ट टेक्नॉलॉजी' में पहले से ही 100% निवेश की अनुमति है। लेकिन अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि आधुनिक तकनीक क्या है और  उन्नत तकनीक क्या है?

एफडीआई के नए नियमों में स्टेट ऑफ द आर्ट टेक्नोलॉजी (अत्याधुनिक तकनीक) साझा करने की शर्त  को हटा लिया गया है। 

आर्म्स एक्ट 1959 में शामिल छोटे हथियारों के निर्माण में भी विदेशी निवेश बढ़ाकर 100% कर दिया गया है।

रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण 

रक्षा क्षेत्र में विदेशों पर निर्भरता कम करना और आत्मनिर्भरता प्राप्त करना सामरिक और आर्थिक दोनों कारणों से आज यह एक विकल्प के बजाय एक आवश्यकता है।

सरकार ने रक्षा क्षेत्र को अपने ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के केंद्र में रखा है। पूरी तरह से स्वदेश में विकसित प्रौद्योगिकी से रक्षा क्षेत्र सही मायने में आत्मनिर्भर होगा।

मेक इन इंडिया' अभियान के तहत हथियार प्रणालियों और गोला-बारूद के स्वदेश निर्मित उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा।

मेक इन इंडिया के तहत सरकार का यह प्रयास है कि विश्व की अत्याधुनिक रक्षा तकनीकों को सीखकर देश में ही रक्षा उत्पादन को बढ़ावा दिया जाए।

सरकार ने रक्षा जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र में प्रौद्योगिकी विकसित करने के लिये कई पहल की हैं। 

रक्षा मंत्रालय में विशिष्ट परियोजनाओं के लिये प्रौद्योगिकीय विकास कोष बनाया गया है।

सेना ने सैन्य डिज़ाइन ब्यूरो भी गठित किया है, जो भारतीय उद्योग तथा शैक्षणिक समुदायों की चर्चाओं और सहभागिता सुविधा उपलब्ध कराने के लिये एक संगठन है।

अर्थव्यवस्था को लाभ

हाल ही में गृह मंत्रालय ने हथियार और गोला-बारूद के उत्पादन को 'मेक इन इंडिया' अभियान के तहत बढ़ावा देने और इस क्षेत्र में रोज़गार बढ़ाने के लिये नियमों को उदार बनाया है। यह सर्वविदित है कि आयातित अत्याधुनिक शस्त्रों से सेना का आधुनिकीकरण तो होता है, लेकिन नवीनतम तकनीक के बढ़ते मूल्यों के कारण इन पर भारी विदेशी मुद्रा खर्च होती है तथा इन्हें  प्राप्त करने में अधिक समय भी लगता है। ऐसे में स्वदेश निर्मित उपकरणों, अस्त्र-शस्त्रों एवं स्वदेश में विकसित तकनीकों का विकास कर देश की अर्थव्यवस्था को और तेज़ी से आगे बढाया जा सकता है।

रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना, सामरिक और आर्थिक दोनों कारणों से आज के समय की एक आवश्यकता है और ‘मेक इन इंडिया' का उद्देश्य आत्म-निर्भरता हासिल करना है। अन्य वस्तुओं की अपेक्षा रक्षा उपकरणों के घरेलू उत्पादन की अधिक ज़रूरत है, क्योंकि इनसे बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की बचत तो होगी ही, देश में अन्य संभावनाओं के द्वार भी खुलेंगे।

इसके अलावा रक्षा क्षेत्र में सरकार ही एकमात्र उपभोक्ता है। अत: 'मेक इन इंडिया' हमारी खरीद नीति द्वारा संचालित होगी। सरकार की घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ावा देने की नीति, रक्षा खरीद नीति में परिलक्षित होती है, जिसमें 'मेक इन इंडिया' को सर्वोपरि रखा गया है।

रक्षा क्षेत्र में घरेलू और विदेशी निवेशकों दोनों के लिये अपार संभावनाएँ मौज़ूद हैं। हमारा देश दुनिया का तीसरा सबसे बड़े सैन्य बल वाला देश है जिसके लिये वार्षिक बजट में भारी-भरकम राशि रखी जाती है, जिसका 40 प्रतिशत पूंजी अधिग्रहण के लिये इस्तेमाल की जाती है। अगले 7-8 वर्षों में 'मेक इन इंडिया' के तहत सैन्य बलों के आधुनिकीकरण के लिये 130 बिलियन डॉलर का निवेश होने जा रहा है।

निष्कर्ष: स्वदेशीकरण किसी भी संगठन के लिये महत्त्वपूर्ण होता है, लेकिन रक्षा क्षेत्र  के लिये यह अधिक आवश्यक है क्योंकि इससे आत्मनिर्भरता बढ़ती है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है। रक्षा क्षेत्र के सरकारी उपक्रम डीआरडीओ की मिसाइल बनाने की क्षमता ने सरकार का भरोसा बढाया है। इसे देख विभिन्न कंपनियाँ देश के अत्यधिक प्रतिभावान और कुशल जनबल का उपयोग कर भारत में निवेश करने की इच्छा व्यक्त कर रही हैं। इस क्षेत्र में काफी संभावनाएँ हैं और मित्र देशों को भी उत्पादों का निर्यात किया जा सकता है। इसके अलावा रक्षा क्षेत्र में 'मेक इन इंडिया' से रोज़गारों का भी सृजन हो रहा है, जो सरकार का एक प्रमुख लक्ष्य है। दूसरी बात यह कि यदि निम्न-तकनीक वाले रक्षा उपकरणों का निर्माण भी होता है तो उससे उच्च गुणवत्ता वाली विनिर्माण क्षमताएं विकसित होंगी, जिससे बड़ी परियोजनाओं के लिये व्यापक ढाँचा तैयार होगा। इससे स्वदेश निर्मित छोटी-छोटी चीजें आसानी से उपलब्ध हो सकेंगी और विदेशों पर निर्भरता भी कम हो जाएगी। 'मेक इन इंडिया' जैसे अभियानों के तहत रक्षा उत्पादन में देश आत्मनिर्भरता की दिशा में अपनी यात्रा के निर्णायक और महत्त्वपूर्ण चरण में है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न प्रारंभिक परीक्षा के लिए:

[1]‘मेक इन इंडिया प्रोग्राम’ के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सत्य है/हैं?
1. इस अभियान की शुरुआत सितंबर 2014 में राष्ट्र-निर्माण पहल के व्यापक समूह के एक हिस्से के रूप में की गई थी।
2. इस अभियान के अंतर्गत वस्त्र, इंजीनियरिंग उत्पाद आदि के साथ-साथ हथियार एवं गोला-बारूद के उत्पादन को भी प्रोत्साहित किया गया है।
कूट:

A)

केवल 1

B)

केवल 2

C)

1 और 2 दोनों

D)

न तो 1 और न ही 2 

उत्तर: (c)
व्याख्या: 

‘मेक इन इंडिया प्रोग्राम’

‘मेक इन इंडिया’ पहल की शुरुआत 25 सितंबर, 2014 को राष्ट्र निर्माण पहल के व्यापक समूह के एक हिस्से के रूप में की गई थी, जिसका उद्देश्य संपूर्ण विश्व से व्यापार को आकर्षित करना है तथा उन्हें भारत में निवेश एवं विनिर्माण हेतु प्रोत्साहित करना है। देश के विभिन्न क्षेत्रों में भौतिक अवसंरचना के विकास के साथ-साथ डिज़िटल नेटवर्क को बेहतर करते हुए यह अभियान देश को एक वैश्विक विनिर्माण हब में परिवर्तित करने को लक्षित है।

गौरतलब है कि हाल ही में  गृह मंत्रालय द्वारा हथियार और गोला-बारूद के उत्पादन को “मेक इन इंडिया” अभियान के तहत बढ़ावा देने तथा इस क्षेत्र में रोज़गार बढ़ाने के लिये नियमों को उदार बनाया गया है। इससे इस क्षेत्र में निवेश को प्रोत्साहन मिलने के साथ-साथ हथियार प्रणालियों तथा गोला-बारूद के देश में उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा। नए नियम गृह मंत्रालय द्वारा छोटे हथियारों के निर्माण को प्रदान किये जाने वाले लाइसेंस पर लागू होंगे। साथ ही, यह नियम औद्योगिक नीति एवं संवर्द्धन विभाग के तहत लाइसेंस प्राप्त करने वाले टैंक, हथियारों से लैस लड़ाकू वाहन, रक्षक विमान, स्पेस क्राफ्ट, युद्ध सामग्री और अन्य हथियारों के पुर्जे तैयार करने वाली इकाईयों पर लागू होंगे। उदाहरणस्वरूप कुछ परिवर्तित नियम निम्नलिखित हैं-

1-उत्पादन के लिये दिया गया लाइसेंस अब लाइफ-टाइम के लिये वैध होगा। यहाँ प्रत्येक 5 वर्षों के बाद लाइसेंस के नवीनीकरण की शर्त को हटा दिया गया है।

2-हथियार उत्पादकों द्वारा निर्मित छोटे और हल्के हथियारों को केंद्र और राज्य सरकारों को बेचने के लिये गृह मंत्रालय की पूर्व अनुमति की अब आवश्यकता नहीं होगी।

3-जितने उत्पादन की अनुमति है, अगर उससे 15 फीसदी अधिक तक का उत्पादन किया जाता है तो इसके लिये सरकार से स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होगी। सिर्फ उत्पादक इकाई को लाइसेंस देने वाले प्राधिकरण को इस संबंध में सूचना देनी होगी, आदि।

उपरोक्त उदार नियमों के कारण वैश्विक स्तर के देश में ही निर्मित हथियारों के ज़रिये सेना और पुलिस बल की हथियार संबंधी आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकेगा।

 

 

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