वासेनार अरेंजमेंट का सदस्य बना भारत
सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र -2: शासन व्यवस्था, संविधान, शासन प्रणाली, सामाजिक न्याय तथा अंतरराष्ट्रीय संबंध |
संदर्भ
कुछ दिन पूर्व परमाणु हथियार अप्रसार नियंत्रण करने वाले एक बड़े समूह में भारत को प्रवेश मिल गया, जब परमाणु हथियारों के निर्यात पर नियंत्रण रखने वाले वासेनार अरेंजमेंट में भारत की सदस्यता स्वीकार कर ली गई।
पृष्ठभूमि
भारत क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा तथा उत्कृष्ट निर्यात नियंत्रण पर निगरानी रखने वाली संस्था वासेनार अरेंजमेंट (Wassenaar Arrangement-WA) का 42वां सदस्य बन गया है। इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की बड़ी सफलता माना जा रहा है। विकसित देशों के इस एलीट क्लब में शामिल होना भारत की एक बड़ी कूटनीतिक सफलता मानी जा रही है।
वासेनार अरेंजमेंट क्या है? 1-इसकी स्थापना जुलाई, 1996 में वासेनार (नीदरलैंड्स) में की गई थी तथा इसी वर्ष सितंबर से इसने कार्य करना शुरू कर दिया। 2-यह परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह और मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम की तरह ही परमाणु अप्रसार की देखरेख करने वाली संस्था है। 3-वासेनार अरेंजमेंट सदस्य देशों के बीच परंपरागत हथियारों और प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण में पारदर्शिता को बढ़ावा देता है। 4-इसके सदस्यों को यह सुनिश्चित करना होता है कि परमाणु प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण का दुरुपयोग न हो और इसका इस्तेमाल सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने में न किया जाए। साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होता है कि ये प्रौद्योगिकियाँ आतंकवादियों के हाथ न लगे। 5-इसके अलावा परंपरांगत हथियारों और दोहरे उपयोग वाली वस्तु और प्रौद्योगिकी के निर्यात पर नियंत्रण भी इसके उद्देश्यों में शामिल है। 6-इसका मुख्यालय वियना में है। |
चार बड़े निर्यात नियंत्रक समूह
2008 में अमेरिका के साथ परमाणु समझौता होने के बाद से ही भारत
1-परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (एनएसजी), 2-मिसाइल टेक्नॉलजी कंट्रोल रिजीम (एमटीसीआर(
3-ऑस्ट्रेलिया ग्रुप और 4-वासेनार अरेंजमेंट
सहित सभी बड़े निर्यात नियंत्रण समूहों की सदस्यता हासिल करने के लिये प्रयास करता रहा है।
हेग कोड ऑफ कंडक्ट में भारत शामिल
|
यह आचार संहिता स्वैच्छिक है और इसे मानने के लिए कोई भी देश कानूनन बाध्य नहीं है।यह अंतरराष्ट्रीय विश्वास और पारदर्शिता बढ़ाने वाली व्यवस्था है।इससे व्यापक विनाश के हथियारों को ले जाने में सक्षम बैलिस्टिक मिसाइलों के प्रसार को रोका जा सकता है।भारत वियना में एचसीओसी सेंट्रल कांटेक्ट की अधिसूचना जारी होने के साथ बैलिस्टिक मिसाइल प्रसार के लिए हेग कोड ऑफ कंडक्ट (Hague Code of Conduct-HCoC) में शामिल हो गया है।एचसीओसी एक स्वैच्छिक, कानूनी तौर पर अबाध्यकारी अंतरराष्ट्रीय विश्वास बहाली और पारदर्शी मंच है।यह जनसंहार के शस्त्रों की आपूर्ति करने में सक्षम बैलिस्टिक मिसाइलों का प्रसार रोकने के लिए कार्यरत है।इस आचार संहिता पर हस्ताक्षर करने की बाद भी अपनी सुरक्षा जरूरतों के लिए देश का मिसाइल विकास कार्यक्रम चलता रहेगा।
|
क्या है एनएसजी?
एनएसजी 48 देशों का एक समूह है, जिसका लक्ष्य परमाणु सामग्री, तकनीक एवं उपकरणों का निर्यात नियंत्रित करना है। परमाणु हथियार बनाने में इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री की आपूर्ति से लेकर उसका नियंत्रण तक इसी के दायरे में आता है।
देश(असैन्य परमाणु) |
भारतीय स्थल |
फ्राँसीसी परमाणु कंपनी अरेवा |
जैतापुर, महाराष्ट्र |
अमेरिकी परमाणु कंपनी |
मिठी विर्दी, गुजरात |
रूस परमाणु कंपनी |
कुंडकुलम,तमिलनाडु |
वैसे भारत को 2008 में अमेरिका के साथ हुए परमाणु समझौते की वज़ह से एनएसजी सदस्यता के अधिकांश लाभ मिल रहे हैं, जबकि भारत ने परमाणु हथियार बनाए हैं और एनपीटी पर हस्ताक्षर भी नहीं किये हैं। सैद्धांतिक तौर पर एनएसजी के अधिकांश सदस्य देश एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं करने वाले किसी भी देश को इस समूह में शामिल किये जाने के खिलाफ हैं। उनका कहना है कि यदि ऐसा किया जाता है तो सभी के लिये समान रूप से लागू होना चाहिये।
एनएसजी के लिये भारत का दावा और मज़बूत हुआ भारत को वासेनार में सदस्यता देने का ये फैसला वियना में दो दिनो तक चली बैठक में लिया गया। वियना में इस निकाय के पूर्ण अधिवेशन में यह निर्णय लिया गया, जिसमें कहा गया कि कुछ औपचारिकताएँ पूरी करने के बाद भारत विधिवत उसका 42वां सदस्य देश बन जाएगा। इस पूर्ण अधिवेशन में वासेनार अरेंजमेंट के सहभागी देशों ने वर्तमान कई सदस्यता आवेदनों की प्रगति की समीक्षा की और भारत को शामिल करने पर सहमत हुए। वासेनार अरेंजमेंट से जुड़ने की ज़रूरी प्रक्रियाएँ पूरी हो जाने के शीघ्र बाद भारत अरेंजमेंट का 42वां सहभागी देश बन जाएगा। इस निर्यात नियंत्रण निकाय में प्रवेश के बाद परमाणु अप्रसार संधि का हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं होने के बावजूद भारत की परमाणु अप्रसार के क्षेत्र में साख बढ़ जाएगी। चीन का विरोध: चीन लगातार एनएसजी में भारत की सदस्यता का विरोध यह कहते हुए करता आ रहा है कि जब तक भारत परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर नहीं करता तब तक एनएसजी में वह उसका समर्थन नहीं करेगा। विदित हो कि भारत ने एनपीटी समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं। दरअसल, एनपीटी पर भारत के हस्ताक्षर नहीं करने के मामले को उठाकर चीन पाकिस्तान के साथ अपने गठजोड़ में निहित हितों का पालन करता है। वैसे इसके 48 सदस्य देशों में से एक भी देश यदि भारत को शामिल करने का विरोध करता है तो उसे शामिल नहीं किया जाएगा। |
उपरोक्त चारों ही संस्थाएँ परंपरागत, परमाणु, जैविक व रासायनिक हथियारों तथा प्रौद्योगिकी के निर्यात को नियंत्रित करती हैं।
1-28 देश ऐसे हैं जो परमाणु निर्यात नियंत्रक चारों संगठन--एनएसजी, ऑस्ट्रेलिया ग्रुप, वासेनार अरेंजमेंट और एमटीसीआर के सदस्य हैं।
2-इससे पूर्व 2016 में भारत 35 सदस्यों वाले एमटीसीआर में शामिल हुआ था, जो मिसाइल तकनीक व घातक हथियारों के नियंत्रण से जुड़ा हुआ समूह है।
अमेरिका और रूस ने भारत के वासेनार अरेंजेमेंट में शामिल होने का समर्थन किया।
क्या है एमटीसीआर? 26 जून, 2016 को भारत मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (एमटीसीआर) का पूर्ण सदस्य बना था। अप्रैल 1987 में जी-7 देशों सहित 12 विकसित देशों ने मिलकर आणविक हथियार से युक्त प्रक्षेपास्त्रों के प्रसार को रोकने के लिये एक समझौता किया था, जिसे एमटीसीआर कहते हैं। वर्तमान में एमटीसीआर 34 देशों का एक समूह है और चीन तथा पाकिस्तान इसके सदस्य नहीं हैं। फ्राँस, जर्मनी, जापान, ब्रिटेन, अमेरिका, इटली और कनाडा इसके संस्थापक सदस्यों में रहे हैं। 2004 में बुल्गारिया को इस समूह का सदस्य बनाया गया था। इसके बाद किसी नए देश को इसका सदस्य बनने का मौका नहीं मिला। स्वैच्छिक एमटीसीआर का उद्देश्य बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र तथा अन्य मानव रहित आपूर्ति प्रणालियों के विस्तार को सीमित करना है, जिनका रासायनिक, जैविक और परमाणु हमलों में उपयोग किया जा सकता है। एमटीसीआर में शामिल होने के बाद भारत हाई-टेक मिसाइलों का अन्य देशों से बिना किसी बाधा के आयात कर सकता है और अमेरिका से ड्रोन भी खरीद सकता है और अपनी मिसाइलें किसी अन्य देश को बेच सकता है। |
वासेनार अरेंजमेंट से भारत को क्या होगा लाभ?
परमाणु अप्रसार क्षेत्र में देश का कद बढ़ने के साथ-साथ महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों को हासिल करने में भी मदद मिलेगी।
भारत दोहरे उपयोग वाली वस्तुओं और तकनीकों को हासिल कर पाएगा।
48 सदस्यों वाले परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह और ऑस्ट्रेलिया समूह के लिये भी भारत की दावेदारी इससे मज़बूत होगी।
वासेनार अरेंजमेंट में सदस्यता से परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं करने के बावजूद भारत अप्रसार के क्षेत्र में अपनी पहचान बना पाएगा और अप्रसार के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को वैश्विक पहचान मिलेगी।
चीन और पाकिस्तान इसके सदस्य नहीं है। इस प्रकार इसकी सदस्यता प्राप्त कर लेना इन दोनों प्रतिद्वंद्वियों पर भारत की रणनीतिक विजय है।
उल्लेखनीय है कि शर्तों के उल्लंघन के चीन के अतीत को देखते हुए उसकी सदस्यता अभी तक रुकी हुई है।
एनपीटी क्या है? एनपीटी अर्थात् परमाणु अप्रसार संधि परमाणु हथियारों का विस्तार रोकने और परमाणु तकनीक के शांतिपूर्ण ढंग से इस्तेमाल को बढ़ावा देने के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों का एक हिस्सा है। एनपीटी की घोषणा 1970 में हुई थी और अब तक संयुक्त राष्ट्र संघ के 188 सदस्य देशों ने इसके पक्ष में समर्थन दिया है। इस संधि पर हस्ताक्षर करने वाले देश भविष्य में परमाणु हथियार विकसित नहीं कर सकते। हालाँकि, वे शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन इसकी निगरानी अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के पर्यवेक्षक करते हैं। |
ऑस्ट्रेलिया समूह क्या है : भारत ने ऑस्ट्रेलिया समूह में शामिल होने के लिये भी आवेदन किया हुआ है। सबसे पहले तो यह जान लेना ज़रूरी है कि इसे यह नाम क्यों मिला? इसका यह नाम इसलिये है क्योंकि ऑस्ट्रलिया ने यह समूह बनाने के लिये पहल की थी और वही इस संगठन के सचिवालय का प्रबंधन देखता है। ईरान-इराक युद्ध में 1984 में जब इराक ने रासायनिक हथियारों का प्रयोग किया (1925 जेनेवा प्रोटोकोल का उल्लंघन) तब रासायनिक व जैविक हथियारों के आयात-निर्यात और प्रयोग पर नियंत्रण स्थापित करने के लिये 1985 में इस समूह का गठन किया गया। इसकी पहली बैठक जून, 1985 में ब्रसेल्स में हुई और शुरुआत में इसमें 15 सदस्य थे और वर्तमान 42 देश इसके सदस्य हैं ,जिनमें यूरोपीय संघ के सभी 26 सदस्य देश भी शामिल हैं। ऑस्ट्रेलिया समूह का मुख्य उद्देश्य रासायनिक तथा जैविक हथियारों की रोकथाम हेतु नियम निर्धारित करना है। ऑस्ट्रेलिया समूह इन हथियारों के निर्यात पर नियंत्रण रखने के अलावा 54 विशेष प्रकार के यौगिकों के प्रसार पर नियंत्रण रखता है। |
निष्कर्ष: भारत ने काफी पहले ही वासेनार अरेंजमेंट की सदस्यता के लिये कोशिशें करनी शुरू कर दी थी। क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा उत्कृष्ट निर्यात नियंत्रण व्यवस्था देखने वाली संस्था वासेनार अरेंजमेंट का सदस्य बन जाने से भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ी सफलता मिली है। वासेनार अरेंजमेंट का सदस्य बनने से परमाणु अप्रसार क्षेत्र में भारत का महत्त्व बढ़ने के साथ अहम् प्रौद्योगिकियों को हासिल करने में भी मदद मिलेगी। इससे पहले भारत ने वासेनार अरेंजमेंट के तहत अनिवार्य SCOMET(स्पेशल केमिकल्स, ऑर्गेनिज्म, मटीरियल, इक्विपमेंट और टेक्नोलॉजीज़ आइटम्स) को मंज़ूरी दी थी। वस्तुओं की इस संशोधित सूची के ज़रिये भारत ने विश्व में अप्रसार के प्रति अपनी प्रतिबद्धता ज़ाहिर की। पिछले वर्ष भारत को मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम में भी प्रवेश मिला था और अब वासेनार अरेंजमेंट में। यहाँ गौरतलब है कि चीन इन दोनों संगठनों का सदस्य नहीं है और जिस एनएसजी का वह सदस्य है, वहाँ भारत के प्रवेश की राह को बाधित करने के लिये उसने अड़ियल रुख अपनाया हुआ है। वासेनार अरेंजमेंट और एमटीसीआर का सदस्य बनने से भारत के लिये एनएसजी की सदस्यता हासिल करने में आसानी होगी। भारत सामूहिक विनाश के हथियारों के प्रसार को रोकने के लिये प्रतिबद्ध है और बहुपक्षीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्था में भारत की भागीदारी इस प्रतिबद्धता को और मज़बूत बनाएगी।