सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) में रणनीतिक विनिवेश

सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) में रणनीतिक विनिवेश 

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में सार्वजनिक उपक्रमों में विनिवेश से संबंधित सरकार के हालिया निर्णय और उसके प्रभावों पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम जिनेश आई.ए.एस. के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ 

देश में छाई आर्थिक सुस्ती से निपटने के लिये केंद्र सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) में रणनीतिक विनिवेश का फैसला लिया है। गौरतलब है कि रणनीतिक विनिवेश के पहले चरण में भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (BPCL) और शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (SCI) सहित पाँच PSUs के कुछ भाग की बिक्री की जाएगी। सरकार के फैसले के संदर्भ में जानकारी देते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि “सरकार ने निर्णय लिया है कि वह कई सार्वजनिक उपक्रमों में अपनी हिस्सेदारी को 51 प्रतिशत से कम करेगी।” विश्लेषक मान रहे हैं कि सरकार के इस निर्णय से राजकोष में काफी वृद्धि होगी जिसका प्रयोग सरकार द्वारा सार्वजनिक व्यय के रूप में किया जाएगा।

प्रमुख बिंदु 

सरकार द्वारा निम्नलिखित पाँच सार्वजनिक उपक्रमों के रणनीतिक विनिवेश का फैसला लिया गया है;

  • भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (BPCL)
    • केंद्र सरकार के अनुसार, भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड में भारत सरकार की मौजूदा 29 प्रतिशत हिस्सेदारी का रणनीतिक विनिवेश किया जाएगा और साथ ही रणनीतिक खरीददार को प्रबंधकीय नियंत्रण भी सौंप दिया जाएगा। उल्लेखनीय है कि BPCL के तहत आने वाली नुमालीगढ़ रिफाइनरी लिमिटेड को इस विनिवेश में शामिल नहीं किया जाएगा तथा इसका नियंत्रण तेल और गैस क्षेत्र में संलग्न किसी अन्य सार्वजनिक उपक्रम को दे दिया जाएगा।
  • शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (SCI)
    • शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया में भारत सरकार की मौजूदा 75 प्रतिशत हिस्सेदारी का रणनीतिक विनिवेश किया जाएगा और साथ ही रणनीतिक खरीददार को प्रबंधकीय नियंत्रण भी दिया जाएगा।
  • कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (CONCOR)
    • ज्ञातव्य है कि वर्तमान में CONCOR के अंतर्गत भारत सरकार की लगभग 8 प्रतिशत हिस्सेदारी है, जिसमें से रणनीतिक विनिवेश प्रक्रिया के तहत 30.8 प्रतिशत हिस्से की बिक्री का निर्णय लिया गया है। साथ ही रणनीतिक खरीददार को प्रबंधकीय नियंत्रण भी दिया जाएगा।
  • टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन इंडिया लिमिटेड (THDCIL)
    • THDCIL उत्तर प्रदेश और भारत सरकार का एक संयुक्त उपक्रम है, जिसमें तीन-चौथाई हिस्सेदारी भारत सरकार की है जबकि शेष उत्तर प्रदेश सरकार के हिस्से में है। विनिवेश प्रक्रिया के तहत भारत सरकार अपनी 23 प्रतिशत हिस्सेदारी की बिक्री सार्वजनिक क्षेत्र की एक अन्य कंपनी NTPC को करेगी। साथ ही इसका प्रबंधकीय नियंत्रण भी NTPC के हवाले किया जाएगा।
  • नॉर्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पॉवर कॉरपोरेशन लिमिटेड (NEEPCO)
    • विनिवेश प्रक्रिया के तहत NEEPCO में सरकार अपनी 100 प्रतिशत हिस्सेदारी और उसका प्रबंधकीय नियंत्रण NTPC को हस्तांतरित करेगी।

नई प्रक्रिया की आवश्यकता क्यों?

1-बड़ी विनिवेश योजनाओं में बाधा उत्पन्न करने वाले प्रशासनिक मंत्रालयों की भूमिका को कम करने तथा विनिवेश प्रक्रिया को सुव्यवस्थित और तेज़ करने के उद्देश्य से इस नई प्रक्रिया को मंज़ूरी दी गई है।

2-सरकार ने चालू वित्त वर्ष में विनिवेश से 1.05 लाख करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य रखा है।

3- लेकिन निगम कर में छूट के माध्यम से कॉर्पोरेट्स को 1.45 लाख करोड़ रुपए के प्रोत्साहन के बाद यह लक्ष्य प्राप्त करना और अधिक कठिन हो गया है।

4-31 मार्च, 2020 को समाप्त होने वाले वर्तमान वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को GDP के 3.3% की सीमा में रखने के लिये भी विनिवेश से राशि जुटाना सरकार के लिये महत्त्वपूर्ण है।

5-4-5 महीनों की समय-सीमा में बिक्री की प्रक्रिया को पूरा करने के लिये इस प्रक्रिया को मंज़ूरी दी गई है।

6-प्रक्रिया में परिवर्तन, सचिवों के एक समूह द्वारा भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड, भारतीय कंटेनर निगम लिमिटेड (कॉनकॉर), नॉर्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पॉवर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (NEEPCO) सहित कुछ अन्य PSUs में सरकारी हिस्सेदारी की बिक्री के लिये सहमति व्यक्त करने के कुछ दिनों के बाद किया गया है।

क्या है नई प्रक्रिया?

1-वित्त मंत्रालय के तहत निवेश और लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग (Department of Investment and Public Asset Management-DIPAM) को रणनीतिक विनिवेश के लिये नोडल विभाग बनाया गया है।

2-वर्तमान में रणनीतिक बिक्री के लिये सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) की पहचान नीति आयोग द्वारा की जाती है।

3-लेकिन इस नई प्रक्रिया में अब DIPAM और नीति आयोग संयुक्त रूप से रणनीतिक विनिवेश के लिये सार्वजनिक उपक्रमों की पहचान करेंगे।

4-इसके अलावा संबंधित प्रशासनिक मंत्रालयों के सचिव के साथ DIPAM सचिव भी विनिवेश पर अंतर-मंत्री समूह की सह-अध्यक्षता करेगा।

5-रणनीतिक बिक्री में दो चरणों में नीलामी हो सकती है। पहले चरण में रुचि व्यक्त की जा सकेगी और दूसरे चरण में वित्तीय नीलामी शामिल है।

6-बिक्री के हर पहलू पर स्पष्टता प्रदान करने के लिये नीलामी से पूर्व संभावित बोलीदाताओं के साथ मीटिंग्स और संभावित निवेशकों को आकर्षित करने हेतु रोड-शो विनिवेश प्रक्रिया का हिस्सा होंगे।

7-बिक्री के लिये चयनित PSU की जानकारी बोलीदाताओं को उपलब्ध कराने हेतु डेटा सेंटर स्थापित किया जाएगा।

 

निर्णय से संभावित परिणाम

  • सार्वजानिक उपक्रमों के रणनीतिक विनिवेश से प्राप्त होने वाले वित्तीय संसाधनों का उपयोग सामाजिक क्षेत्र और सरकार की विकास योजनाओं के वित्त पोषण हेतु किया जाएगा, जिससे न सिर्फ देश के आम लोगों को फायदा होगा बल्कि देश की समग्र मांग में भी वृद्धि होगी।
  • गौरतलब है कि प्राप्त संसाधन बजट का हिस्सा होगा और इसलिये आम लोग इसके उपयोग की जाँच कर सकेंगे।
  • विश्लेषकों के अनुसार, इन सार्वजनिक उपक्रमों के रणनीतिक खरीददार या प्राप्तकर्त्ता इनके विकास के लिये नया प्रबंधन, नई तकनीक और नया निवेश लाएंगे, जिसे उन्हें नवाचार तथा आर्थिक वृद्धि करने का अवसर मिलेगा।
  • SEBI का भी विचार है कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में विनिवेश से पूँजी बाजार में तेजी आ सकती है।

रणनीतिक विनिवेश की आवश्यकता 

  • उल्लेखनीय है कि वर्ष 2015 में सरकार ने रणनीतिक विनिवेश की नीति को दोबारा शुरू किया था ताकि निजी कंपनियाँ अपनी प्रबंधन दक्षता का उपयोग कर भारत के आर्थिक विकास में योगदान कर सकें।
  • कुछ विश्लेषक मान रहे हैं कि सरकार द्वारा यह निर्णय अपने राजकोषीय अंतर को कम करने के उद्देश्य से लिया गया है, क्योंकि आँकड़ों के अनुसार सितंबर 2019 सरकार को मात्र 5 लाख करोड़ रुपए ही शुद्ध कर राजस्व के रूप में प्राप्त हुए हैं, जो कि बजट में अनुमानित राशि का मात्र 36.8 प्रतिशत ही है।
  • इसके अलावा वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण के दौरान भी कहा था कि आने वाले वर्षों में सार्वजनिक उपक्रमों का विनिवेश सरकार की प्राथमिकताओं में रहेगा। साथ ही सरकार ने 31 मार्च, 2020 को समाप्त हो रहे चालू वित्त वर्ष के लिये 05 ट्रिलियन रुपए का विनिवेश लक्ष्य निर्धारित किया था।

चुनौतियाँ भी हैं मौजूद 

  • गौरतलब है कि चालू वित्त वर्ष की समाप्ति में मात्र चार महीने का समय बचा है और विशेषज्ञों के अनुसार, इतने कम समय में प्रक्रिया को पूरा करना सरकार के लिये अपेक्षाकृत चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
  • आवश्यक समय के अभाव में सलाहकारों की नियुक्ति और मूल्य तंत्र निर्धारण जैसी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता लाना भी सरकार के लिये एक बड़ी चुनौती साबित हो सकती है।

विनिवेश का अर्थ

  • विदित है कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) में सरकार की हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया विनिवेश कहलाती है। परंतु विनिवेश के अंतर्गत सरकार उस उपक्रम पर अपना स्वामित्व अथवा मालिकाना हक बनाए रखती है।
    • आमतौर पर विनिवेश को एक बजट के रूप में ही देखा जाता है, जिसके तहत सरकार चयनित सार्वजनिक उपक्रमों में विनिवेश के लिये वार्षिक लक्ष्य निर्धारित करती है।
  • जबकि रणनीतिक बिक्री में सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई के शेयर्स के साथ ही प्रबंधन नियंत्रण का हस्तांतरण भी किया जाता है अर्थात् स्वामित्व और नियंत्रण को किसी निजी क्षेत्र की इकाई को स्थानांतरित कर दिया जाता है।
  • साधारण विनिवेश के विपरीत रणनीतिक विनिवेश एक प्रकार से निजीकरण होता है

विनिवेश और रणनीतिक बिक्री

1-सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) में सरकार की हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया विनिवेश कहलाती है।

2-इसके लिये सरकार अपने हिस्से के शेयर्स को किसी निजी इकाई को स्थानांतरित कर देती है किंतु उस उपक्रम पर अपना स्वामित्व अथवा मालिकाना हक बनाए रखती है।

3-जबकि रणनीतिक बिक्री में सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई के शेयर्स के साथ ही प्रबंधन नियंत्रण का हस्तांतरण भी किया जाता है अर्थात् स्वामित्व और नियंत्रण को किसी निजी क्षेत्र की इकाई को स्थानांतरित कर दिया जाता है।

4-साधारण विनिवेश के विपरीत रणनीतिक बिक्री एक प्रकार से निजीकरण है।

रणनीतिक बिक्री क्यों?

1-किसी रणनीतिक निवेशक को कंपनी की इक्विटी के हस्तांतरण से प्राप्त होने वाली आय को आवश्यक अवसंरचनाओं के निर्माण में अधिक लाभप्रद तरीके से परिनियोजित किया जा सकता है।

2-यह सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को प्रतिस्पर्द्धात्मक रूप से सक्षम बनाते समय सार्वजनिक ऋण में कमी करने में भी सहायता करेगा तथा ऋण-जीडीपी अनुपात को भी कम करेगा।

 

भारतीय विनिवेश नीति का विकासक्रम 

  • भारत में विनिवेश की शुरुआत सबसे पहले वर्ष 1991 में हुई जब सरकार ने कुछ चुनी हुई सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का 20 प्रतिशत हिस्सा बेचने का निर्णय लिया था।
  • वर्ष 1993 में रंगराजन समिति ने सार्वजनिक क्षेत्र के लिये आरक्षित सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों में से 49 प्रतिशत के विनिवेश तथा अन्य सभी सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के लिये 74 प्रतिशत के विनिवेश का प्रस्ताव दिया था। हालाँकि ये सिफारिशें लागू नहीं हो सकी थीं।
  • वर्ष 1996 में जी.वी.रामकृष्णा के नेतृत्व में एक गैर-सांविधिक व सलाहकारी प्रकृति का विनिवेश आयोग स्थापित किया गया तथा वित्त मंत्रालय के अंतर्गत वर्ष 1999 में एक बड़े कदम के रूप में विनिवेश विभाग स्थापित किया गया।
  • वर्ष 2001 में विनिवेश विभाग का नाम बदलकर विनिवेश मंत्रालय कर दिया गया।
  • वर्ष 2004 में तत्कालीन सरकार ने एक ‘साझे न्यूनतम कार्यक्रम’ के साथ ही तनावग्रस्त सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को पुनर्जीवित करने व उन्हें वाणिज्यिक स्वायत्तता प्रदान करने की घोषणा की।
  • इसके बाद वर्ष 2005 में राष्ट्रीय निवेश कोष स्थापित किया गया, जिसके माध्यम से विनिवेश की प्रक्रिया आयोजित की जाती थी।
  • वर्ष 2014 में नई विनिवेश नीति का सूत्रपात हुआ और विनिवेश के संबंध में सिफारिशी शक्तियाँ नीति आयोग में अधिकृत की गईं।
  • वित्तीय वर्ष 2016-17 के बजट भाषण में वित्त मंत्री ने विनिवेश विभाग के नाम बदलने और पुनर्गठन की घोषणा की। जिसके बाद इसे निवेश और लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग (Department of Investment and Public Asset Management- DIPAM) के रूप में जाना जाने लगा।

आगे की राह 

  • बढ़ती हुई प्रतिस्पर्द्धा के इस नए माहौल में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के कर्मचारियों को अपने अधिकारों की (कल्याणकारी राज्य के अंतर्गत) हिफाज़त करते हुए देखा जा सकता है। ऐसी स्थिति में कर्मचारियों को मिलने वाले संरक्षण तथा किसी भी रणनीतिक सहयोगी को कंपनी चलाने के लिये मिलने वाली संभावित छूट के बीच एक समझौते की ज़रूरत है।
  • रणनीतिक सहभागियों द्वारा परिसंपत्तियों को अलग करना (जैसे कि कंपनियों की परिसंपत्तियों का निपटान), उससे लाभ कमाना और अंततः संबंधित उद्योग का दोहन करने के पश्चात् उसे छोड़ देना सरकार के लिये चिंता का विषय है। इसलिये सरकार के पास ऐसी स्थितियों से निपटने के लिये कानून होना चाहिये।
  • विशेषज्ञों का मानना है कि विनिवेश को मात्र राजकोषीय अंतर को कम करने के उपकरण के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये।
  • सरकार को नियामक ढांचे को मजबूत करने पर ध्यान देना चाहिये जो बाजार की कुशल परिस्थितियों को सुनिश्चित करता है।

निष्कर्ष 

आवश्यक है कि सरकार विनिवेश को राजकोषीय अंतराल कम करने के एक उपकरण के रूप में प्रयोग न करे, बल्कि इस महत्त्वपूर्ण बजटीय व्यवस्था का प्रयोग भारत में वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में सुधार हेतु एक रणनीतिक योजना के हिस्से के रूप में किया जाना चाहिये। 

प्रश्न: सार्वजनिक उपक्रमों में विनिवेश संबंधी सरकार के हालिया निर्णय की समीक्षा कीजिये।

 

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