पब्लिक फोरम: एयर इंडिया के विनिवेश का निर्णय

पब्लिक फोरम:  एयर इंडिया के विनिवेश का निर्णय

प्रसारण तिथि- 29.06.2017

चर्चा में शामिल मेहमान
हर्षवर्धन
(पूर्व मुख्य प्रबंध निदेशक-वायुदूत)
मनीष आनंद
(वरिष्ठ विशेष संवाददाता-न्यू इंडियन एक्सप्रेस)

 

एंकर- शालिनी वर्मा

सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2: प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन।
(खंड-8: उदारीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, औद्योगिक नीति में परिवर्तन तथा औद्योगिक विकास पर इसका प्रभाव।)

संदर्भ
लंबे समय से चर्चा में रहे सरकारी विमान सेवा एयर इंडिया और इसकी पाँच अनुषंगी इकाइयों (Subsidiaries) के विनिवेश के प्रस्ताव को केंद्र सरकार ने अंततः अपनी सैद्धांतिक स्वीकृति दे दी है| इसे सरकार के बड़े आर्थिक सुधार कदमों में से एक माना जा रहा है| हाल ही में नीति आयोग ने भी इसके विनिवेश की सिफारिश की थी| सरकार के इस निर्णय से निवेशकों को यह संदेश गया है कि वह आर्थिक सुधारों के लिये प्रतिबद्ध है| इसके बाद सार्वजनिक क्षेत्र के एमटीएनएल और बीएसएनएल जैसे घाटे में चल रहे अन्य उपक्रमों में विनिवेश की राह खुल सकती है|

प्रमुख बिंदु 

1-एयर इंडिया की शुरुआत उद्योगपति जमशेदजी टाटा ने की थी, इसका 1948 में राष्ट्रीयकरण किया गया। 

2-वर्ष 2007 में एयर इंडिया और घरेलू एयरलाइंस कंपनी इंडियन एयरलाइंस का नेशनल एविएशन कंपनी लिमिटेड (एनएसीआईएल) में विलय किया गया। इसके बाद दोनों कंपनियों की देनदारी एनएसीआईएल पर आ गई। वर्ष 2010 में एनएसीआईएल का नाम बदलकर एयर इंडिया लिमिटेड कर दिया गया। 

सरकारी स्वामित्व की एअरलाइंस की वित्तीय हालत का अंदाज़ा इसी तथ्य से लग जाता है कि इस पर 52 हज़ार करोड़ से अधिक का कर्ज़ है। 

इसे बचाने के लिये कई बार बेल-आउट पैकेज दिया गया। संप्रग सरकार के कार्यकाल में एयर इंडिया को 30 हज़ार करोड़ रुपए का बेल-आउट पैकेज मिला था|

एयर इंडिया का घाटा लगातार बढ़ रहा है और तमाम प्रयासों के बावजूद इस पर काबू नहीं पाया जा सका। ऐसे में इसके विनिवेश की मांग काफी समय से उठ रही है।

अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के कार्यकाल में 1999 में अरुण जेटली ने पहली बार एयर इंडिया के विनिवेश का प्रस्ताव दिया था|

2017 के आर्थिक सर्वेक्षण में भी एयर इंडिया के विनिवेश का समर्थन किया गया है| 

निजीकरण होने के बाद एयर इंडिया में निर्णय लेने की स्वतंत्रता होगी, जो फिलहाल एक लंबी और उलझाऊ प्रक्रिया है|

निजी क्षेत्र की विमानन कंपनी इंडिगो ने एयर इंडिया की अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों के अधिग्रहण में रुचि दिखाते हुए नागर विमानन मंत्रालय को पत्र लिखा है। वह एयर इंडिया के अंतर्राष्ट्रीय परिचालन व इसकी इकाई एयर इंडिया एक्सप्रेस को खरीदने में रुचि रखती है। यदि यह संभव नहीं होता है तो वह एयर इंडिया के घरेलू परिचालन सहित समूचे परिचालन को खरीदना चाहेगी।

नीति आयोग की सलाह
नीति आयोग ने एयर इंडिया के विनिवेश के सलाह देने से पहले जापान, ब्रिटेन और ऑस्ट्रिया की राष्ट्रीय विमान सेवाओं का अध्ययन किया| इन देशों ने भी अपनी सरकारी विमान सेवाओं को निजी हाथों में सौंपने की प्रक्रिया चलाई है| लेकिन एयर इंडिया के मामले में नीति आयोग ने यह पाया कि इस पर लगभग 50 हज़ार करोड़ रुपए का कर्ज़ है और इसके साथ इसे कोई भी खरीदने को तैयार नहीं होगा| उसने इस कर्ज़ को बट्टे खाते )Write Off) में डालने का सुझाव सरकार को देते हुए शत-प्रतिशत विनिवेश या 24%, 51% तथा 76%--इन तीन चरणबद्ध तरीकों से विनिवेश की सलाह दी है|

1-एयर इंडिया के साथ लोगों की भावनाएँ जुड़ी हैं क्योंकि इसे देश की सर्वप्रथम विमान सेवा होने का गौरव प्राप्त है|

2-एयर इंडिया केवल सरकारी विमान सेवा नहीं है, बल्कि इसने कुवैत, लीबिया और कतर जैसे कई संकटों में देश के संकटमोचक की भूमिका निभाई है|

3-देश और विदेश में एयर इंडिया के पास ऐसे निश्चित गंतव्य हैं, जो अन्य किसी विमान सेवा के पास नहीं हैं| इसे भी  एयर इंडिया का एक सकारात्मक पक्ष माना जाता है |

4-एयर इंडिया स्टार अलायन्स के साथ भी जुड़ा है और इसकी वजह से भी उसे कई प्रकार के लाभ अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों के दौरान मिलते हैं|

5-सरकार ने हाल ही में छोटे शहरों के लिये ‘उड़ान’ योजना की शुरुआत की है| इससे भी देश में हवाई सेवाओं के विस्तार की पर्याप्त संभावनाओं के द्वार खुल रहे हैं|

समिति का गठन
वित्त मंत्री अरुण जेटली मंत्रियों की उस समिति के अध्यक्ष होंगे जो इस विनिवेश प्रक्रिया की निगरानी करेगी| विनिवेश एक ही बार में शत-प्रतिशत हो, या 24%, 51% तथा 76% के क्रम से, बोली लगाने की प्रक्रिया और इसमें शामिल होने वालों की पात्रता की शर्तें क्या हों, कर्मचारियों के हितों की रक्षा कैसे हो, आदि मुद्दों पर समिति को विचार करना है।

एयर इंडिया के विनिवेश को लेकर सरकार के समक्ष दो विकल्प हैं—नीति आयोग एयर इंडिया के पूर्ण विनिवेश का समर्थन करता है। यह सुझाव उन विदेशी एयरलाइनों ( ब्रिटिश एयरवेज़, जापान एयरलाइंस तथा ऑस्ट्रियन एयरलाइंस के पुनरुद्धार के अनुभव पर आधारित(  है, जिन्हें सरकार ने पूरी तरह निजी क्षेत्र को बेच दिया था।इन मामलों में सरकार ने सरकारी एयरलाइनों के संपूर्ण कर्ज़ को अपने ऊपर ले लिया था। 

दूसरा सुझाव नागरिक विमानन मंत्रालय का है, जिसमें एयर इंडिया की विभिन्न अनुषंगी इकाइयों का अलग-अलग विनिवेश करने का प्रस्ताव है। इस प्रस्ताव को अपनाने पर सरकार को एयर इंडिया के 33 हज़ार करोड़ रुपए के कार्यशील पूंजी ऋण से छुटकारा मिल सकता है।

एयर इंडिया की वर्तमान स्थिति

एयर इंडिया के पास 110 विमान हैं|

घरेलू हवाई सफर में 14% और अंतर्राष्ट्रीय हवाई सफर में इसकी 17% हिस्सेदारी है। 

एयर इंडिया 41 अंतर्राष्ट्रीय और 72 घरेलू गंतव्यों के लिये उड़ानों का संचालन करता है|

मध्य मुंबई में 32 एकड़ कीमती ज़मीन और नरीमन पाइंट पर 1600 करोड़ की कीमत वाले मुख्यालय सहित देश-विदेश में काफी अचल संपत्ति है। 

एयर इंडिया को अपने 16 हज़ार कर्मियों को वेतन देने के लिये इसी वर्ष अप्रैल में कर्ज़ लेना पड़ा था|

एयर इंडिया पर केवल ब्याज की मद में लगभग 4500 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष चुकाना पड़ता है, जो इसके कुल टर्न ओवर का 21% है|  

2015-16 में एयर इंडिया ने 105 करोड़ रुपए का परिचालन लाभ दिखाया, लेकिन कुल मिलाकर उसे 3,587 करोड़ रुपये का घाटा हुआ।

अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में तेल की अपेक्षाकृत कम कीमतें भी इसे भारी घाटे से उबार नहीं सकी, जबकि इस मद में होने वाला खर्च विमान सेवाओं की बैलेंस शीट को बेहद प्रभावित करता है| 

देश के अन्य निजी कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा में एयर इंडिया का असफल रहना भी इसके भरी घटे का एक कारण है|

विमानों की खरीद और कार्यशील पूंजी की व्यवस्था करने के लिये भी एयर इंडिया ने भारी मात्रा में कर्ज़ लिया है|एयर इंडिया की पाँच अनुषंगी इकाइयों में से तीन लाभ में चल रही हैं| इस समय विनिवेश करने में आसानी होगी क्योंकि भारत में हवाई यात्रा करने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है और निजी विमानन कम्पनियाँ विस्तार करने की इच्छुक भी हैं|

विनिवेश की राह में चुनौतियाँ
इस सबके बावजूद यह यक्ष प्रश्न अपनी जगह कायम है कि क्या कारोबारी बोली लगाने को उत्सुक होंगे, देनदारियाँ कैसे चुकता होंगी, और हज़ारों कर्मचारियों के भविष्य का क्या होगा? बोली लगाने वालों की दिलचस्पी धनार्जन करने और संपदा में होती है, देनदारियाँ और अन्य परेशानियाँ वे नहीं लेना चाहते। एअर इंडिया के पायलटों ने तो निजीकरण के फैसले का विरोध नहीं किया है, पर कर्मचारियों ने विरोध की आवाज़ उठाई है, जिनकी संख्या हज़ारों में है। 

सीबीआई जाँच: इसके अलावा एयर इंडिया के खिलाफ सीबीआई की कई जाँचें चल रही हैं| कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इनकी वजह से विनिवेश की प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है| सीबीआई इंडियन एयरलाइंस और एयर इंडिया के विलय संबंधी फैसले की जांच करने जा रही है| इन दोनों सरकारी एयरलाइंस के विलय का फैसला 2007 में पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के समय लिया गया था. सीबीआई इन दोनों एयरलाइंस  के लिये 111 यात्री विमान खरीदने संबंधी फैसले की भी जाँच करने वाली है| इस सौदे की लागत करीब 70,000 करोड़ रुपए थी| इसके अलावा एयर इंडिया द्वारा लाभ के मार्गों पर उड़ानें बंद करने या फिर उन उड़ानों का समय बदले जाने संबंधी फैसले की भी जाँच की जा रही है|

क्या होता है विनिवेश?
निवेश की विपरीत प्रक्रिया है विनिवेश| किसी कारोबार में, संस्थान में एवं परियोजना में धन लगाना निवेश कहलाता है और उस धन को वापस निकालना विनिवेश| विनिवेश का प्रमुख उद्देश्य कंपनी का बेहतर प्रबंधन करना होता है|

निजीकरण और विनिवेश में अंतर: इसके अलावा, यह भी समझना ज़रूरी है कि निजीकरण और विनिवेश में अंतर है, निजीकरण में सरकार अपने 51 प्रतिशत से अधिक की हिस्सेदारी निजी क्षेत्र को बेच देती है, जबकि विनिवेश की प्रक्रिया में वह अपना कुछ हिस्सा निकालती है लेकिन उसका स्वामित्व बना रहता है| कहा जा सकता है कि विनिवेश किसी कंपनी का आंशिक निजीकरण होता है|

निष्कर्ष
सरकार का कहना है कि सार्वजनिक क्षेत्र की विमान सेवा एयर इंडिया लगभग 55,000 करोड़ रुपए के घाटे में चल रही है, उसके लिये धन न देकर उस पैसे का प्रयोग देश के निर्माण कार्यों में किया जा सकता है। विमानन के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव हो रहे हैं और निजी एयरलाइंस से हवाई सफर सस्ता हो रहा है, ऐसे में एयर इंडिया लगातार घाटे में जा रही है। फिलहाल एयर इंडिया अपनी वित्तीय स्थिति सुधारने का प्रयास कर रही है। विशेषज्ञों के अनुसार, सरकार के इस फ़ैसले से एयर इंडिया का घाटा कम होगा और लाभ बढ़ेगा। वैसे भी अपने आर्थिक सुधर कार्यक्रम के तहत सरकार विनिवेश की संभावनाएँ तलाशती रहती है। इस ओर कदम बढ़ाने के क्रम में सरकार ने कुछ संस्थानों के निजीकरण की संभावनाएँ तलाशने का काम शुरू किया है, जिसकी शुरुआत एयर इंडिया से हो रही है। 

 

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