सूर्य पर मानव का पहला कदम पार्कर सोलर प्रोब Parker Solar Probe:

सूर्य पर मानव का पहला कदम पार्कर सोलर प्रोब Parker Solar Probe:

सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र - 3 : विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन।
(खंड - 13 : सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टेक्नोलॉजी, बायो-टेक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरूकता)

चर्चा में क्यों?
अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा की सूर्य की ओर एक अंतरिक्ष यान भेजने की योजना अपने अंतिम चरण में है। सूर्य के विषय में जानने की लालसा के तहत यह दुनिया का अपनी तरह का पहला मिशन है।

पार्कर सोलर प्रोब

पार्कर सोलर प्रोब (Parker Solar Probe) नाम के इस अभियान को 31 जुलाई को फ्लोरिडा के केनेडी स्पेस सेंटर (NASA’s Kennedy Space Center) से लॉन्च किया जाएगा।

इस यान का नाम पहले सोलर प्रोब प्लस था जिसे 2017 में बदलकर खगोलशात्री ड्यूजिन पार्कर के नाम पर पार्कर सोलर प्रोब कर दिया गया।

यह मानव इतिहास में पहली बार होगा जब कोई यान सूर्य के वातावरण में प्रवेश करेगा।

अंतरिक्ष यान ‘पार्कर सोलर प्रोब’ सूर्य की कक्षा के करीब 40 लाख मील के घेरे में प्रवेश करेगा।

लक्ष्य

यह अभियान सौर आँधी के स्रोतों पर मौजूद चुंबकीय क्षेत्र की बनावट और इनके डायनामिक्स की पहल करेगा।

यह सूर्य के सबसे बाहरी हिस्से (कोरोना) को गर्म करने वाली तथा सौर तूफानों को गति प्रदान करने वाली ऊर्जा के बहाव को समझने में सहायक सिद्ध होगा। 

इसकी सहायता से सूर्य के वातावरण से उत्सर्जित होने वाले ऊर्जा कणों को मिलने वाली गति  के विषय में भी जानकारी प्राप्त हो सकेगी।

सूर्य के आस-पास मौजूद धूल प्लाज़्मा को खंगालना और सौर आँधी एवं सौर ऊर्जा कणों पर उनके असर को समझने में मदद मिलेगी।

यान की सुरक्षा

पार्कर सोलर प्रोब को सूर्य की ताप से बचाने के लिये इसमें स्पेशल थर्मल प्रोटेक्शन सिस्टम (thermal protection system - TPS) यानी हीट शील्ड लगाई गई है। यह शील्ड फाइबर और ग्रेफाइट (ठोस कार्बन) से तैयार की गई है।

इस हीट शील्ड की मोटाई 11.43 सेमी. है। सूर्य की बाहरी कक्षा इसकी सतह के मुकाबले सैकड़ों गुना ज़्यादा गर्म होती है। इसका तापमान 5 लाख डिग्री सेल्सियस या इससे भी ज़्यादा हो सकता है।

यह शील्ड यान के बाहर तकरीबन 1370 डिग्री सेल्सियस का तापमान झेल सकेगी।

सभी वैज्ञानिक उपकरणों एवं संचालन यंत्रों को इस शील्ड के पीछे व्यवस्थित किया जाएगा ताकि ये सभी यंत्र सूर्य की रोशनी से सीधे प्रभावित न हों।

प्रमुख बिंदु

सूर्य की पृथ्वी से दूरी 14.96 करोड़ किमी. है।

सूर्य की सतह का तापमान 5,500 डिग्री सेल्सियस है।

सूर्य के कोरोना (corona)  के वातावरण का तापमान 10 लाख से लेकर 1 करोड़ डिग्री सेल्सियस तक है।

इस यान की लंबाई 1 मीटर, ऊँचाई 2.5 मीटर तथा चौड़ाई 3 मीटर है।

डेल्टा 4 नामक राकेट से प्रक्षेपण 

पार्कर सोलर प्रोब का प्रक्षेपण डेल्टा 4 नामक एक राकेट से किया जाएगा।

इस अभियान की समयावधि 6 साल 321 दिनों की होगी।

इसमें चार ऐसे उपकरणों को भेजा जाएगा जो सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र, प्लाज़्मा और ऊर्जा कणों का परीक्षण कर उनकी 3 D तस्वीर तैयार करेंगे। 

भारत का मिशन आदित्य L-1

मंगल अभियान और चंद्रयान-1 की सफ़लता के बाद इसरो के वैज्ञानिक अब 'सन मिशन' की तैयारी कर रहे हैं। सूर्य के कोरोना का अध्ययन करने एवं पृथ्वी पर इलेक्ट्रॉनिक संचार में व्यवधान पैदा करने वाली सौर पवनों की जानकारी हासिल करने के लिये भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने आदित्य L-1 उपग्रह का प्रक्षेपण वर्ष 2020 में करने की योजना बनाई है।

क्या करेगा आदित्य L-1?

आदित्य L-1 सोलर कोरोनोग्राफ की सहायता से सूर्य के सबसे भारी भाग का अध्ययन करेगा। 

अभी तक वैज्ञानिक सूर्य के कोरोना का अध्ययन केवल सूर्य ग्रहण के समय ही कर पाते हैं।

इससे कॉस्मिक किरणों, सौर तूफानों और विकिरण के अध्ययन में मदद मिलेगी। 

सौर पवनों के अध्ययन से जानकारी मिलेगी कि ये किस तरह से पृथ्वी पर इलेक्ट्रिक प्रणालियों और संचार नेटवर्क को प्रभावित करती हैं। 

इससे सूर्य के कोरोना से धरती के भू-चुम्बकीय क्षेत्र में होने वाले बदलावों के बारे में घटनाओं को समझा जा सकेगा। 

लगभग 200 किग्रा. वज़नी आदित्य L-1 सूर्य के कोरोना का अध्ययन कृत्रिम ग्रहण द्वारा करेगा और इसका अध्ययन काल 10 वर्ष रहेगा। 

सौर मैक्सिमा (Solar Maxima) के अध्ययन में सहायक 

आदित्य L-1 से वैज्ञानिकों को सौर मैक्सिमा (Solar Maxima) के अध्ययन का मौका मिलेगा सौर मैक्सिमा एक ऎसी खगोलीय घटना है, जो प्रत्येक 11 वर्ष बाद घटित होती है। पिछली बार सौर मैक्सिमा की घटना 2012 में हुई थी। इस दौरान सूर्य की सतह से असामान्य सौर लपटें उठती हैं और उनका पृथ्वी के मौसम पर व्यापक प्रभाव होता है। 

लग्रांज बिंदु के निकट स्थापित होगा 

आदित्य L-1 को सूर्य के प्रभामंडल के कक्षा में एल-1 लग्रांज बिंदु के निकट स्थापित किया जाएगा। यहाँ से यह सूर्य पर लगातार नज़र रख सकेगा और सूर्य ग्रहण के समय भी इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। 

सूर्य के केंद्र से पृथ्वी के केंद्र तक एक सरल रेखा खींचने पर जहाँ सूर्य और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल बराबर होते हैं, उसे लग्रांज बिंदु कहते हैं। 

दरअसल, सूर्य का गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी की तुलना में काफी अधिक है, यदि कोई वस्तु इस रेखा के बीचों-बीच रखी जाए तो वह सूर्य के गुरुत्वाकर्षण से उसमें समा जाएगी। 

लग्रांज बिंदु पर सूर्य और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल समान रूप से लगने से दोनों का प्रभाव बराबर हो जाता है। 

इस स्थिति में वस्तु को न तो सूर्य अपनी ओर खींच पाएगा, न पृथ्वी अपनी ओर खींच सकेगी और वस्तु अधर में लटकी रहेगी। 

लग्रांज बिंदु को एल-1, एल-2, एल-3, एल-4 और एल-5 से निरूपित किया जाता है। इसरो की योजना पृथ्वी से 800 किलोमीटर ऊपर एल-1 लग्रांज बिंदु के निकट आदित्य L-1 को स्थापित करने की है। 

200 किलोग्राम वज़नी आदित्य L-1 को पीएसएलवी (एक्सएल) से प्रक्षेपित किया जाएगा। 

ये पेलोड होंगे आदित्य L-1 में 

आदित्य L-1 से प्राप्त आँकड़ों और अध्ययनों से इसरो भविष्य में सौर मैक्सिमा से अपने उपग्रहों की रक्षा कर सकेगा। इसरो ने इसके लिये कुछ उपकरणों का चयन भी किया है, जो आदित्य-1 के पेलोड होंगे। इनमें विज़िबल एमिशन लाइन कॅरोनोग्राफ, सोलर अल्ट्रा-वॉयलेट इमेजिंग टेलीस्कोप, प्लाज़्मा एनालाइज़र पैकेज, आदित्य सोलर विंड एक्सपेरिमेंट, सोलर एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर और हाई एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर शामिल हैं। 

 

 

 

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