प्रश्न: “बेहतर फैसले लेने में मददगार है प्रोफेसर रिचर्ड एच.थैलर का सिद्धांत” मानव व्यवहार के आलोक में समझाइए.

प्रश्न: “बेहतर फैसले लेने में मददगार है प्रोफेसर रिचर्ड एच.थैलर का सिद्धांत”  मानव  व्यवहार के आलोक में समझाइए.

सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन
खंड-1: (भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाना, प्रगति तथा विकास)

 

 

उत्तर कि रूपरेखा:

1-    थैलर का सिद्धांत मानव को आत्म-विनाश के फैसले करने से रोकता हैं

2-    डिफाल्ट ऑप्शन का महत्व

3-    लोगों का रुझान आम चलन अपनाने का रहता हैं

4-    अर्थशास्त्र से मिली अंतर्दृष्टि का इस्तेमाल कर लोक प्रशासन में सुधार लाया जा सकता हैं

 

इस साल अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार शिकागो यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रिचर्ड एच.थैलर को दिया गया है। इन्हें मनोविज्ञान से मिलने वाली अंतर्दृष्टि को उन मॉडल्स में विलय करने के लिए सराहना मिली है, जिन्हें अर्थशास्त्री व्यक्तिगत निर्णय प्रक्रिया के अध्ययन के लिए इस्तेमाल करते हैं। हालांकि, मुख्यधारा के अर्थशास्त्री व्यक्तिगत स्तर पर लिए जाने वाले निर्णयों का परीक्षण करने और अनुमान लगाने के लिए अत्याधुनिक मॉडलों का प्रयोग करते हैं पर ये मॉडल मानव के व्यवहार संबंधी कई प्रश्नों के उत्तर देने में नाकाम रहते हैं।

महत्वपूर्ण बिंदु

1-भारत में कई राज्य सरकारें महीने की पहली तारीख को शराब बेचने नहीं देतीं? थैलर का सिद्धांत इस फैसले की व्याख्या कर सकता है। पहली तारीख को वेतन मिलने के बाद खुद पर काबू न रखने वाले असयंमी लोग शराब की दुकान के बाहर कतार में लग आएंगे और कड़ी मेहनत की कमाई शराब में उड़ा देंगे व उनके परिवार परेशानी में पड़ जाएंगे। इसी तरह राजमार्गों पर शराब दुकानें बंद करने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला शराब पीकर वाहन चलाने और दुर्घटनाएं घटाने में मददगार हो सकता है। दूसरे शब्दों में कई बार मानव को आत्म-विनाश के फैसले करने से रोकना पड़ता है।

2-आर्थिक मॉडल तर्कसंगत लोगों को ध्यान में रखकर चलता है। इन लोगों को यह बताने की जरूरत नहीं होती कि उनके लिए क्या सर्वोत्तम है। इसके विपरीत थैलर कहते हैं कि लोगों का खुद पर नियंत्रण नहीं होता और वे भोजन व मदिरा पान, धूम्रपान, सेवानिवृत्ति बाद के लिए बचत और अन्य दूर के लक्ष्यों के बारे में अतार्किक चयन कर लेते हैं। उनके मुताबिक संज्ञानात्मक सीमाएं और मानवीय कमजोरियों के कारण गलत फैसले ले लिए जाते हैं।

3- 2008-09 में दुनिया में मंदी लाने वाले अमेरिकी सब-प्राइम संकट के पीछे का कारण था।

4-किसी सुपरमार्केट में खरीदारी करते समय सारे विकल्पों पर विचार करके सर्वश्रेष्ठ पेशकश चुनने की बजाय लोगों का रुझान वे वस्तुएं खरीदने पर होता है, जिन पर उनकी निगाह सबसे पहले पड़ती है। इसीलिए उपभोक्ता वस्तुओं के निर्माता अपने प्रोडक्ट प्रमुखता से प्रदर्शित करने पर जोर देते हैं। ‘बाय वन गेट वन फ्री’ जैसे मार्केटिंग के तरीके उपभोक्ताओं की इसी ‘अतार्किकता’ को भुनाने के लिए बनाए गए हैं।

5-उनका शोध जिस दूसरी बात पर जोर देता है वह है डिफाल्ट ऑप्शन का महत्व- यानी ऐसा विकल्प, जो तब अपने आप लागू हो जाएगा, जब आप सक्रिय रूप से कोई अन्य चुनाव न करें। मानव आलसी प्राणी है और प्राय : वह डिफाल्ट ऑप्शन से काम चला लेता है, फिर चाहे विकल्प बेहतर क्यों न हो। उदाहरण के लिए स्वास्थ्य बीमा और पेंशन योजनाओं में शामिल होने का विकल्प हो तो वह न शामिल होने के डिफाल्ट विकल्प को ही चुनेगा। ‘एक माह के फ्री ट्रायल’ जैसी पेशकश ऐसे ही व्यवहार को भुनाने के लिए है। अमेजन प्राइम और नेटफ्लिक्स जैसी मनोरंजन प्रदान करने वाली कंपनियां प्राय: ऐसे फ्री ऑफर देती हैं, जिनका नवीनीकरण या अवधि विस्तार ट्रायल अवधि खत्म होने के बाद अपने आप हो जाता है। कंपनियां जानती हैं कि ज्यादातर लोग उसे कैंसल करने की जहमत नहीं उठाएंगे।

6-अध्ययन बताते हैं कि ऐसे ऑफर का नतीजा सबस्क्रिप्शन की 80 फीसदी तक ऊंची दरों में होता है! इसके अलावा क्रेडिट कार्ड कंपनियां, बीमा कराने वाले, बैंक, जोखिमभरे उत्पादों के निर्माता, इंटरनेट सेवाएं देने वाले और सॉफ्टवेयर कंपनियां प्राय: बहुत जटिल और आसानी से समझ में न आने वाली शर्तें बनाती हैं। यह सिर्फ देनदारी से बचने के लिए ही नहीं बल्कि इसके पीछे डिफाल्ट ऑप्शन चुनना भी होता है।अपनी ख्यात किताब ‘नज’ में थैलर और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के कैस सस्टीन दलील देते हैं कि सज्ञानात्मक यानी इन्द्रियों से मिली सूचनाओं के आधार पर किए पक्षपात को डिफाल्ट के उचित नियमों के जरिये दूर किया जा सकता है। ग्राहक के हितों की रक्षा के लिए निजी कंपनियों के डिफाल्ट नियमों का नियमन किया जा सकता है। सरकारी अधिकारी ऐसे डिफाल्ट का चुनाव कर सकते हैं, जिससे व्यक्तिगत निर्णय प्रक्रिया की दिशा वह हो जाए, जो उन्हें ग्राहक के हित में उचित लगती है।

7-भारतीय संदर्भ में बीमा अनुबंध (फसल व थर्ड पार्टी बीमा सहित), प्राइवेट लोन के बेहतर डिफाल्ट नियम बनाने की काफी गुंजाइश है। शोध बताते हैं कि यदि लोगों को रिटायरमेंट बाद की योजनाओं जैसे पेंशन फंड आदि के लिए आवेदन करना हो तो बहुत कम लोग ऐसा करते हैं। लेकिन, यदि शामिल न करने के लिए आवेदन करने वालों को छोड़कर हर किसी का नामांकन करने का नियम हो, तो ज्यादातर लोग नामांकन कराएंगे और उसके लिए आवश्यक भुगतान भी करेंगे। इसका मतलब है कि सरकार को निजी क्षेत्र से कहना चाहिए कि वे ऐसी योजनाओं में कर्मचारियों को अपने आप नामांकित करने का नियम रखे।

8-उनका शोध यह भी बताता है कि लोगों का रुझान आम चलन अपनाने का रहता है। जैसे यह पाया गया है कि अपने इलाके के औसत से ज्यादा बिजली-पानी खर्च करने वाले लोगों को उनकी ज्यादा खपत के बारे में बताया जाए तो ऐसे लोगों को व्यवहार सुधारने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।

नीतिगत दृष्टि से चुनौती यह सुनिश्चित करने की है कि सरकार आमजन व दबे-कुचले लोगों के हितों को बढ़ाने वाली नीति बनाएं। ऐसे में लाख टके का सवाल है : ‘नजर’ (किसी दिशा में धकेलने वाला यानी सरकार) को सही दिशा में नज (धकेलना) कौन करेगा?

 

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