जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट के न्यायाधीश संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ लेते हैं या नहीं

(खंड- 2 : संघ एवं राज्यों के कार्य तथा उत्तरदायित्व, संघीय ढाँचे से संबंधित विषय एवं चुनोतियाँ)
(खंड-1 : भारतीय संविधान, आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी सरंचना)

दिल्ली उच्च न्यायालय के सामने 2 जनवरी, 2016   को सवाल आया कि क्या संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत राष्ट्रपति आदेश के बिना जम्मू कश्मीर में किसी संवैधानिक संशोधन का लागू नहीं होना न्यायाधीशों के लिए वहां भारतीय संविधान के क्रियान्वयन को अनिवार्य नहीं बनाता? हालांकि मामले के गुणदोष में जाए बिना ही उच्च न्यायालय ने कहा कि वह केन्द्र और राज्य से इस बारे में जवाब चाहता है कि जम्मू कश्मीर के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ लेते हैं या नहीं।

 प्रमुख बिंदु

  • “जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालयके न्यायाधीश संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ लेते हैं या नहीं “ - चीफ जस्टिस जी. रोहिणी और जस्टिस संगीता धींगरा सहगल की पीठ ने जम्मू-कश्मीर राज्य सरकार और केंद्र सरकार से इस सवाल को पूछना ज़रूरी समझा क्योंकि दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर एक जनहित याचिका के अंतर्गत, याचिकाकर्ता के वकील द्वारा यह आरोप लगाया गया था कि जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश भारतीय संविधान को लागू करने के लिये निष्ठा की शपथ नहीं लेते हैं|
  • विदित हो कि इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता रविन्द्र के. रायजादा याचिकाकर्ता के वकील हैं जिन्होंने तर्क दिया था कि जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालयके न्यायाधीश भारतीय संविधान के प्रति सच्ची निष्ठा और इसे विधि द्वारा स्थापित किये जाने की शपथ नहीं लेते हैं ,इसलिये ऐसा कोई भी मामला जो संवैधानिक प्रावधानों से संबंध रखता हो, जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय में नहीं लाया जा सकता| 
  • वस्तुतः यह तर्क उस समय सामने आया जब दिल्ली उच्च न्यायलय ने यह सवाल उठाया कि इस याचिका को आखिर दिल्ली उच्च न्यायालय से पहले जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालयमे दाखिल क्यों नहीं किया गया?
  • याचिकाकर्ता के वकील ने यह तर्क प्रस्तुत किया कि हाईकोर्ट के न्यायाधीशों के शपथ-ग्रहण के प्रारूप भारतीय संविधान की तीसरी अनुसूची और अनुच्छेद 219 में वर्णित हैं, किन्तु इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालयके न्यायाधीशों तक नहीं किया गया, अतः जम्मू-कश्मीर के न्यायाधीश जम्मू-कश्मीर में लागू संविधान के तहत ही शपथ-ग्रहण करते हैं |
  • अतः दिल्ली उच्च न्यायालय ने राज्य एवं केंद्र सरकार से प्रश्न किया है कि क्या संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत राष्ट्रपति के आदेश के बिना जम्मू-कश्मीर में किसी संवैधानिक संशोधन का लागू न होना न्यायाधीशों के लिये वहाँ भारतीय संविधान के क्रियान्वयन को अनिवार्य नहीं बनाता है?
  • हालाँकि, मामले की गहराई में जाने से पहले ही दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि वह केन्द्र और राज्य से इस बारे में जवाब चाहता है कि जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालयके न्यायाधीश संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ लेते हैं या नहीं?

मामले की पृष्ठभूमि

  • ऐसा कोई भी संशोधन जम्मू-कश्मीर के मामले में तब तक प्रभावी नहीं होगा, जब तब कि अनुच्छेद 370 (1) के तहत उसे राष्ट्रपति के आदेश से लागू न किया जाए|
  • ध्यातव्य है भारतीय संविधान के अनुच्छेद  370 के तहत  जम्मू-कश्मीर  को सम्पूर्ण भारत में अन्य राज्यों के मुकाबले विशेष अधिकार अथवा विशेष दर्ज़ा प्राप्त है।
  • धारा 370 भारत के संविधान का अंग है।
  • यह धारा (अनुच्छेद) संविधान के 21वें भाग में समाविष्ट है, जिसका शीर्षक है- ‘अस्थायी, परिवर्तनीय और विशेष प्रावधान’ (Temporary, Transitional and Special Provisions)।
  • धारा 370 के शीर्षक के अंतर्गत - जम्मू-कश्मीर के संबंध में अस्थायी प्रावधान (Temporary provisions with respect to the State of Jammu and Kashmir) शामिल हैं|
  • धारा 370 के तहत जो प्रावधान हैं उनमें समय-समय पर परिवर्तन किया गया है जिनका आरम्भ 1954 से हुआ|
  • दरअसल, 1954 में संविधान के अनुच्छेद 368 (संविधान में संशोधन और उसकी प्रक्रिया के बारे में संसद के अधिकार) में एक नया प्रावधान जोड़ा गया, जिसमें कहा गया कि ऐसा कोई भी संशोधन जम्मू-कश्मीर राज्य के मामले में उस समय तक प्रभावी नहीं होगा जब तब कि अनुच्छेद 370 (1) के तहत उसे राष्ट्रपति के आदेश से लागू न किया जाए|

    अनुच्छेद 370 के तहत विशेष अधिकारों की सूची

    1. जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती है।
    2. जम्मू-कश्मीर का राष्ट्रध्वज अलग होता है।
    3. जम्मू - कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्षों का होता है जबकि भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
    4. जम्मू-कश्मीर के अन्दर भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं होता है।
    5. भारत के उच्चतम न्यायालय के आदेश जम्मू-कश्मीर के अन्दर मान्य नहीं होते हैं।
    6. भारत की संसद को जम्मू-कश्मीर के सम्बन्ध में अत्यन्त सीमित क्षेत्र में कानून बना सकती है।
    7. जम्मू-कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से विवाह कर ले तो उस महिला की नागरिकता समाप्त हो जायेगी। इसके विपरीत यदि वह पकिस्तान के किसी व्यक्ति से विवाह कर ले तो उसे भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जायेगी।
    8. धारा 370 की वजह से कश्मीर में RTI लागू नहीं है, RTE लागू नहीं है, CAG लागू नहीं है। संक्षेप में कहें तो भारत का कोई भी कानून वहाँ लागू नहीं होता।
    9. कश्मीर में महिलाओं पर शरियत कानून लागू है।
    10. कश्मीर में पंचायत के अधिकार नहीं।
    11. कश्मीर में चपरासी को 2500 रूपये ही मिलते है।
    12. कश्मीर में अल्पसंख्यकों [हिन्दू-सिख] को 16% आरक्षण नहीं मिलता।
    13. धारा 370 की वजह से कश्मीर में बाहर के लोग जमीन नहीं खरीद सकते हैं।
    14. धारा 370 की वजह से ही कश्मीर में रहने वाले पाकिस्तानियों को भी भारतीय नागरिकता मिल जाती है।

निष्कर्ष 

हालाँकि, दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा अभी तक इस जनहित याचिका पर औपचारिक नोटिस जारी नहीं किया गया है और फिलहाल इस पर विचार किया जा रहा है कि क्या याचिका अनुरक्षणीय है? इस मामले में अब 13 फरवरी को सुनवाई होगी। तब तक इस मुद्दे से संबंधित दोनों प्रतिवादियों (केन्द्र और जम्मू-कश्मीर सरकार) को  इस संबंध में स्पष्टीकरण देने के लिये कहा गया है|

 

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