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1980 के दशक में भारत ने विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए दोहरे कराधान से सम्बंधित समस्या के समाधान की दिशा में पहल करते हुए मॉरिशस के साथ दोहरे कराधान से बचाव के लिए समझौता (DTAA)संपन्न किया.यह समझौता संसाधनों के साथ-साथ विदेशी मुद्रा के अभाव का सामना कर रही भारतीय अर्थव्यवस्था की ज़रुरत था. इसके जरिये विदेशी निवेश को गति प्रदान कर संसाधनों की किल्लत को दूर करने की कोशिश की गयी.