कतर से क्यों नाराज हैं खाड़ी देश?

कतर से क्यों नाराज हैं खाड़ी देश?

सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र -2: शासन व्यवस्था, संविधान, , शासन प्रणाली, सामाजिक न्याय एवं अंतर्राष्ट्रीय संबंध
(खंड- 19: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय)

संदर्भ


आजकल अंतरराष्ट्रीय पटल पर यह सर्वाधिक चर्चित मुद्दा है, इसमें एक तरफ कतर है और दूसरी ओर हैं उससे राजनयिक संबंध खत्म कर नाकेबंदी करने वाले उसके पड़ोसी देश सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, यमन और लीबिया| दूर बैठे मिस्र और मालदीव भी इस जमावड़े में शामिल हैं|

अमेरिका का पक्ष:

व्हाइट हाउस के मुताबिक अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप खाड़ी देशों के बीच पैदा हुये तनाव के जल्द समाप्त होने की उम्मीद कर रहे हैं. हाल ही में सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और मिस्र ने कतर के साथ सभी राजनयिक संबंध तोड़ लिये हैं. अमेरिका ने कहा है कि वह उम्मीद करता है कि खाड़ी देश साथ आकर सही दिशा में आगे बढ़ेंगे. हालांकि वह ट्रंप ही थे जिन्होंने मई में अपनी पहली विदेश यात्रा के लिये रियाद को चुना था और वहां यह जाहिर भी किया कि सऊदी अरब, अमेरिका का समर्थक है.

रियाद में अपने भाषण के दौरान ट्रंप ने सऊदी अरब के कट्टर प्रतिद्वंद्वी ईरान पर आतंकवाद का समर्थन करने का आरोप लगाया. ट्रंप ने कहा कि ईरान हथियारों पर पैसा खर्च करता है और आतंकवादियों, लड़ाकों और अन्य उग्रवादी समूहों को प्रशिक्षित करता है. इसके अलावा, ट्रंप ने इस बात भी जोर दिया था कि अरब राष्ट्रों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी जमीन पर आतंकवादियों को कोई संरक्षण न मिले.

 क्यों नाराज हैं खाड़ी देश?

इन देशों का आरोप है कि विश्व में प्राकृतिक गैस के सबसे बड़े भंडार रखने वाला छोटा-सा देश कतर सुन्नी इस्लामिक राजनीतिक समूह मुस्लिम ब्रदरहुड और ईरान को समर्थन देकर आतंकवाद का समर्थन और वित्तपोषण कर रहा है, जिन्हें सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात दोनों ने गैरकानूनी घोषित किया है| ये आरोप कतर पर पहले भी लगाए जाते रहे हैं|

क्यों लगाए प्रतिबंध

इस्लामिक देशों में सऊदी अरब और ईरान को एक-दूसरे का धुर विरोधी माना जाता है| कतर पर ईरान से सहयोग करने का आरोप सऊदी अरब लगाता रहा है|

दो वर्ष पूर्व अमेरिका ने कतर पर फिलिस्तीनी संगठन ‘हमास’ तथा अल-कायदा के सहयोगी अल-नुसरा का वित्त पोषण करने का आरोप लगाया था।

अफगान तालिबान को शरण देने तथा उसे दूतावास उपलब्ध कराने के लिये भी कतर की आलोचना की जाती है|

अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपनी सऊदी अरब की हालिया यात्रा में ईरान पर क्षेत्रीय आतंकवादी प्रायोजक होने का आरोप लगाया था।

अमेरिका ने यह जानते हुए भी कि पश्चिम एशिया में उसका सबसे बड़ा मिलिटरी बेस कतर में है, ईरान का समर्थक होने के नाते कतर पर प्रतिबंध लगाने की बात कही थी|

कतर का पक्ष तथा उस पर पड़ने वाले प्रभाव

प्रत्यक्ष रूप से कतर न तो सऊदी अरब और न ही ईरान के साथ घनिष्ठता से जुड़ा है।

वह ईरान के साथ दुनिया का सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस क्षेत्र साझा करता है, इसलिये इसकी अनदेखी नहीं कर सकता।

इन प्रतिबंधों का प्रभाव निश्चित रूप से कतर पर पड़ेगा और यह दिखाई भी देना शुरू हो गया है|

कतर जैसे छोटे से देश के पास लगभग 335 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है, इसलिये प्रतिबंधों को वह कुछ समय तक झेल लेगा, लेकिन वह नहीं चाहेगा कि ऐसी स्थिति लंबे समय तक बनी रहे|

कतर अपनी रोजमर्रा की जरूरतों की सड़क मार्ग से सप्लाई के लिये मुख्यतः सऊदी अरब पर निर्भर है, लेकिन शेष सब चीजों के लिए न तो कतर इन देशों पर निर्भर है और न ही ये देश कतर पर निर्भर हैं|

भारत पर पड़ने वाले संभावित प्रभाव

कतर की स्थिति का तुरंत कोई प्रभाव भारत पर पड़ता नहीं दिखाई दे रहा| चूँकि भारत अपनी कुल आवश्यकता की 90% प्राकृतिक गैस कतर से आयात करता है|

भारत और कतर के बीच कई बड़ी परियोजनाओं में परस्पर सहयोग चल रहा है, इसलिये वह नहीं चाहेगा कि यह स्थिति लंबे समय तक बनी रहे|

इसका प्रभाव पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में तेज़ी के रूप में देखने को मिल सकता है, जिसका प्रभाव भारत पर भी पड़ेगा|

भारत से कतर की राजधानी दोहा जाने वाली उड़ानों पर असर पड़ा है, क्योंकि यूएई द्वारा अनुमति न देने की वजह से इन्हें अब ईरान होते हुए जाना पड़ रहा है|

कतर की कुल आबादी करीब 25 लाख है, इनमें करीब साढ़े छह लाख भारतीय हैं। यदि प्रतिबंधों का यह सिलसिला लंबा चला तो कठिनाई हो सकती है|

क्या हो रहे हैं उपाय?

इस मामले में कुवैत मध्यस्थता का प्रयास कर रहा है। कुवैत ने ही वर्ष 2014 में भी खाड़ी देशों के बीच विवाद को सुलझाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

तुर्की के राष्ट्रपति तैयप एर्दोगन ने भी मुद्दे पर कतर, रूस, कुवैत व सऊदी अरब से बात की है।

समूह के सामूहिक एजेंडे को ध्यान में रखते हुए खाड़ी सहयोग परिषद (Gulf Cooperation Council-GCC) भी सदस्य देशों के बीच बातचीत के जरिये समाधान खोजने का प्रयास कर रही है|

                                खाड़ी सहयोग परिषद (Gulf Cooperation Council-GCC)

खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) एक क्षेत्रीय अन्तर्राज्यीय राजनीतिक और आर्थिक संघ है। इस संघ में इराक और कतर को छोड़कर फारस की खाड़ी के सभी देश शामिल हैं। इसके सदस्य देश हैं: बहरीन, कुवैत, ओमान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात। 25 मार्च, 1981 को खाड़ी सहयोग परिषद के चार्टर पर हस्ताक्षर करने के बाद, औपचारिक रूप से GCC की स्थापना की गईं थी। 

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