प्रश्न 2: “मॉर्ले मिंटो सुधार(भारतीय परिषद अधिनियम, 1909) योजनाओं का यह उद्देश्य कदापि नहीं था कि भारत में उत्तरदायी अथवा प्रतिनिधिक व्यवस्था को प्रारंभ किया जाए। वस्तुतः मॉर्ले मिंटो भारत में उत्तरदायी शासन असंभव और अनुपयुक्त समझते थे”इस कथन पर चर्चा करे. (GS 2)
उत्तर की रुपरेखा : 1- मॉर्ले मिंटो सुधार की पृष्ठभूमि 2- भारत में उत्तरदायी अथवा प्रतिनिधिक व्यवस्था का प्रारंभ न होने देना3- पृथक् निर्वाचक मंडल के द्वारा नरमपंथियो एवम मुसलमानों को लालच4- किस प्रकार यह अधिनियम राष्ट्रवादी एकता और स्वतंत्रता आंदोलन के मार्ग में बाधा बना। 5-निष्कर्ष में इस अधिनियम के प्रभाव
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सन् 1905 में बंग-भंग के विरोध में शुरू हुए स्वदेशी आंदोलन ने महिलाओं सहित व्यापक जनभागीदारी, निष्क्रिय और उग्रवादी प्रतिरोध के माध्यम से भारतीयों ने जिस दृष्टिकोण का परिचय दिया, वह अंग्रेज़ों के लिये अप्रत्याशित था। साथ ही नरमपंथी सुधारवादियों द्वारा भी दबाव बनाया जा रहा था। इन दोनों ही उद्देश्यों को साधने के लिये अंग्रेज़ों द्वारा सन् 1909 में भारतीय परिषद अधिनियम लाया गया।
भारतीय परिषद अधिनियम,1909 में केन्द्रीय विधान परिषद एवं प्रांतीय विधान परिषद में निर्वाचित सदस्यों की संख्या बढ़ाने का प्रावधान रखा गया। इस अधिनियम द्वारा चुनाव प्रणाली के सिद्धांत को भारत में पहली बार मान्यता मिली। गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद में पहली बार भारतीयों को प्रतिनिधित्व मिला तथा केंद्रीय एवं विधानपरिषदों के सदस्यों को सीमित अधिकार भी प्रदान किये गए।
इस अधिनियम के अंतर्गत जो चुनाव पद्धति अपनाई गई वह बहुत ही अस्पष्ट थी। कुछ लोग स्थानीय निकायों का चुनाव करते थे, ये सदस्य चुनाव मंडलों का चुनाव करते थे और ये चुनाव मंडल प्रांतीय परिषदों के सदस्यों का चुनाव करते थे। फिर, यही प्रांतीय परिषदों के सदस्य केंद्रीय परिषद के सदस्यों का चुनाव करते थे। अधिनियम द्वारा संसदीय प्रणाली तो दे दी, लेकिन उत्तरदायित्व नहीं दिया गया। इसके पीछे अंग्रेज़ों की मंशा उग्रवादी प्रतिरोध का विरोध करने वाले नरमपंथियों को संतुष्ट करना था।
इस अधिनियम के माध्यम से विधायिकाओं के अधिकारों को विस्तृत किया गया, लेकिन यहाँ अंग्रेज़ आम लोगों का विश्वास हासिल करना चाहते थे ताकि उग्र राष्ट्रवाद को दबाया जा सके। परंतु, अप्रत्यक्ष चुनाव, सीमित मताधिकार और विधान परिषद की सीमित शक्तियों ने प्रतिनिधि सरकार को मिश्रण-सा बना दिया।
भारतीय परिषद अधिनियम,1909 के सामाजिक और राजनीतिक विभाजन के उद्देश्य से मुसलमानों के लिये पृथक निर्वाचन प्रणाली की व्यवस्था शुरू की गई। इस अधिनियम द्वारा मुसलमानों को प्रतिनिधित्व के मामले में विशेष रियायतें दी गई, यथा-मुसलमानों को केंद्रीय एवं प्रांतीय विधान परिषद में जनसंख्या के अनुपात में अधिक प्रतिनिधि भेजने का अधिकार दिया गया तथा मुस्लिम मतदाताओं के लिये आय की योग्यता को भी हिंदुओं की तुलना में कम रखा गया। अंग्रेज़ों ने इस कदम के द्वारा मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति अपनाई जिससे कि ये लोग आज़ादी की लड़ाई से ही जुड़ न सके।
भारतीय परिषद अधिनियम,1909 का भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में दूरगामी प्रभाव पड़ा। इस अधिनियम के परिणामस्वरूप भारत में सांप्रदायिक राजनीति की नींव पड़ी। नरमपंथियों और गरमपंथियों के बीच मतभेद काफी उभर गया। अतः कहा जा सकता है कि भारतीय परिषद अधिनियम,1909 के द्वारा अंग्रेजों का उद्देश्य स्वतंत्रता के लिये बनी एकता को बाधित करना था।
वास्तव में तो सरकार इन सुधारों द्वारा नरमपंथियों एवं मुसलमानों का लालच देकर राष्ट्रवाद के उफान को रोकना चाहती थी। सरकार ने मुस्लिम लीग और नरमपंथियों के तुष्टिकरण को राष्ट्रवाद के विरूद्ध मजबूत हथियार के तौर पर आजमाना चाहा और वे इसमें कुछ हद तक सफल भी रहे। 1909 के सुधारों से जनता को नाममात्र के सुधार ही प्राप्त हुए। इसमें सबसे बड़ी विडंबना यह थी कि शासन का उत्तरदायित्व एक वर्ग को और शक्ति दूसरे वर्ग को सौंपी गई। ऐसी परिस्थितियाँ बनी कि विधानमंडल और कार्यकारिणी के मध्य कड़वाहट बढ़ गई तथा भारतीयों और सरकार के आपसी संबंध और ज्यादा खराब हो गए। 1909 के सुधारों से जनता ने कुछ और ही चाहा था और उन्हें मिला कुछ और।
इन सुधारों के संबंध में महात्मा गांधी ने कहा ‘मार्ले-मिंटो सुधारों ने हमारा सर्वनाश कर दिया’।